JAIPUR (मनीष गाेधा की रिपाेर्ट) . राजस्थान विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर बीजेपी असमंजस में नजर आ रही है। पार्टी, चुनावी समर में कूद तो चुकी है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सहित केन्द्रीय नेताओं के दौरे भी शुरू हो गए हैं, लेकिन पार्टी को अपने चुनाव अभियान को आगे बढ़ाने के लिए एक मास लीडर की जरूरत शिद्दत के साथ महसूस हो रही है।
पार्टी में केन्द्रीय स्तर से जिस तरह की खबरें निकलकर आ रही हैं, उससे यह संकेत मिल रहे हैं कि पार्टी यहां सीएम पद के लिए किसी चेहरे को प्रोजेक्ट नहीं करेगी। पार्टी के नेता साफ तौर पर कहते हैं कि मोदी सरकार का काम और कमल का निशान ही हमारा चेहरा होगा और हम इसी के आधार पर चुनाव लड़ेंगे। पार्टी के प्रदेश प्रभारी अरुण सिंह से लेकर प्रदेश अध्यक्ष और अन्य पदाधिकारी भी यही कह रहे हैं कि सामूहिक नेतृत्व के आधार पर चुनाव लड़ा जाएगा, लेकिन पार्टी के भीतर ही एक धड़ा यह भी मानता है कि सिर्फ केन्द्रीय नेताओं के भरोसे चुनाव की वैतरणी पार नहीं होगी। अनुशासन के चलते ये नेता ऑन रिकाॅर्ड तो इस बारे में कुछ नहीं बोलते, लेकिन आपसी बातचीत में यह स्वीकार करते हैं कि कर्नाटक चुनाव के परिणााम ने यह साबित कर दिया कि बड़े स्थानीय चेहरे को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक-आर्थिक विश्लेषक अनिल शर्मा कहते हैं कि वसुंधरा राजे अकेली नेता हैं जो पूरी स्टेट की नेता हैं। बीजेपी के बाकी सभी नेता विधानसभा क्षेत्रों तक सीमित हैं और राजे से काफी पीछे हैं। बीजेपी अगर राजे या किसी और को चेहरा नहीं बनाती है तो यह उसके लिए परेशानी का कारण बन सकता है। क्योंकि ज्यादातर राज्यों में बीजेपी स्थानीय क्षत्रपों के बिना चुनाव जीत नहीं पाई है। उनका कहना है कि गहलोत और पायलट आपस में मिल गए तो राजे को आगे लाना पार्टी की मजबूरी हो जाएगी। वैसे भी नरेन्द्र मोदी गुजरात के अलावा किसी अन्य राज्य में सिर्फ अपने दम पर चुनाव नहीं जिता पाए हैं, क्योंकि पीएम अकेले कहां-कहां जाएंगे, उन्हें एक स्थानीय नेता तो चाहिए ही…
पार्टी के पोस्टरों पर लौटी राजे
साढे़ चार साल के दौरान लगभग चार साल तक वसुंधरा राजे पार्टी के पोस्टरों से गायब थीं। इस बारे में पूछने पर कहा जाता था कि पार्टी का नियम है कि पोस्टर पर सिर्फ प्रधानमंत्री, राष्ट्रीय अध्यक्ष, प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष का चेहरा ही दिखेगा, लेकिन पिछले साल दिसम्बर में जब पार्टी ने जन आक्रोश यात्राएं निकालनी शुरू की ताे यह नियम टूटता नजर आया और प्रदेश अध्यक्ष व नेता प्रतिपक्ष के बीच राजे का चेहरा भी पोस्टरों पर लौट आया। आज भी स्थिति यह है कि पीएम या राष्ट्रीय अध्यक्ष या केन्द्रीय नेताओं की सभाओं में राजे की कुर्सी उनके साथ ही लगती है जो इस बात की तस्दीक कर रही है कि पार्टी उनके महत्व को स्वीकार कर रही है।
जल्द फैसला होने की उम्मीद
पार्टी सूत्रों का कहना है कि जल्द ही पार्टी के आंतरिक चुनाव की जिम्मेदारियों को लेकर बहुत चीजें तय होंगी। पार्टी का प्रदेश चुनाव प्रभारी तय किया जाएगा। इसके साथ ही चुनाव अभियान समिति, प्रबंधन समिति आदि के नाम भी तय किए जाएंगे। पिछले दिनों में राजे की दिल्ली में पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष सहित कुछ नेताओं से मुलाकातें हुई हैं और माना जा रहा है कि जल्द ही पार्टी की राजे को कोई अहम जिम्मेदारी सौंप सकती है।
और इधर… सीएम पद की दौड़ में राजस्थान में कई नेता
सीएम पद के चेहरे की दौड़ में वसुंधरा राजे अभी भी सबसे आगे हैं, लेकिन इस पद को लेकर बीजेपी का राष्ट्रीय नेतृत्व जिस तरह के अप्रत्याशित फैसले करता रहा है, उसे देखते हुए कई और चेहरे भी दौड़ में माने जा रहे हैं। इनमें से कुछ प्रमुख चेहरे निम्न हैं-
गजेंद्र सिंह शेखावत
पृष्ठभूमि- सीएम अशोक गहलोत के गृह नगर जोधपुर से दो बार के सांसद और केन्द्र में जलशक्ति विभाग के कैबिनेट मंत्री।
ताकत- गहलोत के बेटे वैभव गहलोत को पिछली बार हराया, पार्टी आलाकमान के करीबी और निर्वाचन क्षेत्र में अच्छी स्थिति। राजपूत समुदाय से आते हैं, जो पार्टी का मुख्य वोट बैंक है।
कमजोरी- गहलोत सरकार को गिराने और संजीवनी क्रेडिट को-ऑपरेटिव घोटाले में शामिल होने के आरोपों का सामना करना पड़ रहा है।
सीपी जोशी
पृष्ठभूमि- दो बार के सांसद, पार्टी संगठन में विभिन्न पदों पर रहे, अभी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष
ताकत- उदयपुर संभाग में पार्टी का इकलौता बड़ा चेहरा, जहां पिछले चुनाव में पार्टी ने अच्छा प्रदर्शन किया था। ब्राह्मण समुदाय से आते हैं और अन्य सभी की तुलना में युवा हैं।
कमजोरी- ज्यादा आक्रामक नहीं हैं। राज्य भर में जाना-पहचाना चेहरा बनने में समय लगेगा।
अर्जुन राम मेघवाल
पृष्ठभूमि- पूर्व आईएएस, तीन बार के सांसद और दो बार के केंद्रीय मंत्री
ताकत- हाल ही में स्वतंत्र प्रभार के साथ केंद्रीय कानून मंत्री के रूप में पदोन्नत, पार्टी के प्रमुख दलित चेहरे और एक लो-प्रोफाइल नेता।
कमजोरी- बहुत आक्रामक नहीं हैं और उनका चेहरा पार्टी के सवर्ण वोट बैंक को नाराज कर सकता है।
राजेंद्र राठौड़
पृष्ठभूमि- सात बार के विधायक और चार बार के मंत्री।
ताकत- राजपूत होने के बावजूद लगातार जाट बहुल निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव जीतते हैं। उत्कृष्ट राजनीतिक कौशल और पूरी तैयारी के साथ विधानसभा में आने वाले नेता।
कमजोरी- पिछले तीन दशकों से बीजेपी में रहने के बावजूद अभी भी उन्हें बाहरी माना जाता है, क्योंकि वह मूल रूप से जनता दल से हैं।
दीया कुमारी
पृष्ठभूमि- जयपुर के राजघराने की सदस्य, कभी विधायक और अभी राजसमंद से सांसद।
ताकत- जयपुर से हैं, लेकिन सवाई माधोपुर से विधायक और राजसमंद से सांसद के रूप में सफलतापूर्वक चुनाव लड़ कर जीत चुकी हैं। एक युवा और सक्रिय नेता, जिसने केवल 10 वर्षों की अवधि में पार्टी में अच्छी स्थिति बनाई।
कमजोरी- शाही परिवार का एक टैग और राज्य के अन्य हिस्सों के लोगों के साथ सीधे सम्पर्क की कमी।
ओम बिरला
पृष्ठभूमि: दो बार विधायक, सांसद और फिलहाल लोकसभा अध्यक्ष
ताकत- कोटा में मजबूत जनाधार वाले नेता। सभी वर्गाें में अच्छी पैठ रखते हैं और अब तो केन्द्रीय नेतृत्व के बहुत करीब हैं।
कमजोरी- बड़ा संवैधानिक पद सम्भाल चुके हैं। ऐसे में फिर से एक बड़ा पद दिए जाने को लेकर संशय।