संजय गुप्ता, INDORE. मप्र की सत्ता के गलियारे मालवा-निमाड़ में बीते 15 दिनों में घटनाएं बहुत तेजी से घटी है। महू में आदिवासी की मौत का मामला थमा भी नहीं था कि कि रामनवमी पर इंदौर में बावड़ी हादसा हुआ, तो वहीं सीएम से लेकर पूर्व सीएम के कई दौरे हुए, यूपी के पूर्व सीएम तक के दौरे हो गए। मौसम के हिसाब से अप्रैल भले ही ठंडा जा रहा है लेकिन राजनीति का पारा बहुत हाई है। सोशल मीडिया की बात करें तो बीजेपी और कांग्रेस को बस हाथापाई करना बाकी रह गया है, बाकी तो सब कुछ हो रहा है। इस दौरान मेरी पूर्व सीएम कमलनाथ से बात हुई तो बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं कृष्णमुरारी मोघे, कृषि मंत्री कमल पटेल और भी कई नेताओं से, निकलकर मुद्दा यही आ रहा है कि बाकी सारी बाते बेकार है, सभी को चुनाव जीतने वाले उम्मीदवार की तलाश है। यानि आईपीएल भाषा में कहें तो इम्पैक्ट प्लेयर चाहिए। मालवा-निमाड़ से सत्ता में आने के लिए यहां की 66 सीटों के लिए कम से कम 40 इम्पेक्ट प्लेयर चाहिए।
राजनीतिक रूप से लाड़ली बहना को शूर्पनखा भारी ना पड़ जाए
सबसे पहले इन 15 दिनों राजनीतिक रूप से एक अहम बात बीजेपी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय का महिलाओं को शूर्पनखा कहने वाला बयान, राजनीतिक गलियारों में इसे जितना तूल दिया गया है, उस हिसाब से जानकारों का यह भी कहना है कि यह सीएम की लाड़ली बहना योजना के बड़े गुब्बारे में पिन चुभाने जैसा नहीं हो जाए। खासकर युवा वर्ग को यह बयान किसी भी तरह से उचित नहीं लगा है और खुद पार्टी के पास इस बयान के बचाव के कोई खास तर्क नहीं है सिवा इसके कि वह कांग्रेसी नेताओं के ही पुराने बयानों को यहां-वहां ट्वीट कर रही है।
टिकट को लेकर क्या है नेताओं के विचार
- पूर्व सीएम कमलनाथ कहते हैं कि काम करने वाले में कई लोग हो सकते हैं लेकिन टिकट देते समय सामाजिक समीकरण भी देखना होते हैं, इसमें देखना होता है कि स्थानीय स्तर पर क्या फीडबैक है और किसकी जीत की संभावना बनती है।
बीजेपी के लिए यह है चिंताएं
- सर्वे बढ़ा रहे चुनौती, केवल कमल के फूल से नहीं बनेगी बात- बीजेपी और संघ के बार-बार कहे जा रहे सर्वे की बात करें तो मालवा-निमाड़ में 66 में से 35 सीटों पर स्थिति डांवाडोल कही जा रही है जिसमें 14 डेंजर जोन में बताई जा रही है। साल 2018 के चुनाव की बात करें तो पार्टी यहां पर 57 सीटों से 29 सीटों पर समिट गई थी, उपचुनाव के बाद यह 33 पर पहुंच सकी है। बीजेपी को पता है विंध्य और ग्वालियर दोनों जगह राजनीतिक दिक्कते हैं, मालवा-निमाड़ में फिर वही रूतबा, दबदबा चाहिए, लेकिन वह दूर की कौड़ी दिख रही है। ऐसे में किसी भी हाल में जीतने वाला चेहरा चाहिए ही, केवल कमल के फूल से कमलनाथ को पटखनी देना आसान नहीं होने वाला।
अब बात कांग्रेस की चिंताओं की
- शायद पहली बार होगा जब किसी राष्ट्रीय दल ने इस तरह का नोटिस जारी किया कि प्रदेश में नेता खुद को विधानसभा चुनाव प्रत्याशी बताते हुए खुद का प्रचार नहीं करें। जी हां यह कांग्रेस मप्र का ही लैटर है जो दल ने इनर सर्कुलर के रूप में निकाला है। यानि साफ है कि कांग्रेस भी अंदरूनी तौर पर एक अनार सौ बीमार वाली कहावत से परेशान है और उम्मीदवारों की भरमार हो रही है। पहले से ही अपनी गुटबाजी के लिए मशहूर कांग्रेस के लिए इससे पार पाना सबसे बड़ी चुनौती होगी, क्योंकि वोट कटुव्वा सामने आए तो फिर जीती बाजी हारने में देर नहीं लगेगी।
फिर वही बात जो 50 फीसदी सीट जीतेगा सरकार उसी की
मालवा-निमाड़ की 66 सीटों से सीधा फार्मूला तो यही हमेशा बनता है 50 फीसदी सीट जीतो और सत्ता में आओ और यदि 60 फीसदी से ज्यादा जीतो तो पूरे पांच साल सत्ता में रहो। जैसे साल 2018 में कांग्रेस 50 फीसदी जीती लेकिन 51 फीसदी पर ही सीमित रही 34 सीट जीतकर, नतीजतन सरकार चली गई, बीजेपी जब भी जीती तो 40 से ज्यादा सीट यानि 60 फीसदी से ज्यादा जीतकर आई तो वह पूरे पांच साल सत्ता में रही।
सारांश यह है- 40 इम्पेक्ट प्लेयर की तलाश
कुल मिलाकर सारांश यही है कि दोनों दलों को 66 में से कम से कम 40 ऐसे चेहरे चाहिए जो जीत सकें, यानि 40 इम्पेक्ट प्लेयर चाहिए, यही प्लेयर उन्हें आईपीएल की ट्राफी यानि सत्ता दिलवाएंगे। फिलहाल इस मामले में बीजेपी ज्यादा इंपेक्ट प्लेयर के कारण संकट में हैं, क्योंकि जिसे नहीं चुनेंगे वह टीम को मुश्किल में ला सकता है। हम बार-बार कह रहे हैं कि कांग्रेस बीजेपी से बहुत नहीं लेकिन फिलहाल कुछ सेंटीमीटर तो रेस में आगे है ही।