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Raipur. एक पखवाड़ा और बीत गया। चुनाव कुछ क़रीब और आ गया है। लेकिन कार्यकर्ता को सक्रिय करें कैसे यह मुंहबायां सवाल बीजेपी कांग्रेस दोनों के साथ है। दोनों ही दलों का जो अपने कार्यकर्ताओं से संवाद का अंदाज है उससे लग रहा है कि दोनों ही दल एक हाथ से ताली बजाने का नया प्रयोग करने पर ही पूरी ताक़त झोंक रहे हैं। यह मसला उत्तर से लेकर दक्षिण छत्तीसगढ़ तक विस्तारित है। कांग्रेस के संभागीय कार्यकर्ता सम्मेलन हों या फिर बीजेपी की बैठकों का दौर जिसमें लोकसभा महासंपर्क अभियान है सबका मसला कुछ ऐसा ही है। बीजेपी महासंपर्क के ज़रिए अपने काडर वोटर तक पहुँचने की क़वायद कर रही है, काग़ज़ पर बनी योजना इतनी आकर्षक है कि मन मोहा जाए। पर मैदान में योजना नौ दिन चले अढ़ाई कोस की है। वजह है कार्यकर्ता का ग़ुस्सा गुसाई होना। संगठन प्रभारी सह प्रभारी सभी उत्तर से दक्षिण बैठकें ले रहे हैं लेकिन संवाद वन वे है। याने मंच से संवाद निर्देश, अब कार्यकर्ता को सुनना है तो फ़िलहाल तो बीजेपी को इसी बात पर खुश होना चाहिए कि चलो भई हमारा कार्यकर्ता हमारी बात सुन तो रहा है।पर यह ख़ुशी चुनावी समर में उतनी सफल होगी ये उम्मीद कम से कम आज तो उतनी बेहतर नहीं है। कार्यकर्ता का मानस पढ़ें समझे बग़ैर फिर से प्रवचन सुनाने की मानसिकता से बीजेपी के रणनीतिकार बाहर ही नहीं आ रहे हैं। शहरी इलाक़ों में तो फिर भी मसला ठीक है लेकिन ग्रामीण परिवेश में बीजेपी को बहुत ही ज़्यादा मेहनत की जरुरत है, और उसकी शुरुआत ही उस दो तरफ़ा संवाद से होगी जिसमें सबसे ज़्यादा अवसर कार्यकर्ता को मिले। यही आलम बल्कि इससे भी दुष्कर हालात कांग्रेस में है। कांग्रेस प्रदेश के सभी पाँच संभागों में कार्यकर्ता सम्मेलन कर चुकी है। और एक भी कार्यकर्ता सम्मेलन ऐसा नहीं है जिसमें कार्यकर्ता को मंच या माइक मिला हो। कार्यकर्ता के हाथ माला थी जो पहनानीं थी,ज़िंदाबाद के नारे और ताली बजाना उसके हिस्से था, और कांग्रेसी कार्यकर्ताओं ने वह दायित्व निभा दिया। कांग्रेस के भीतर कांग्रेस याने हर क्षत्रप के गढ़ में एक नया क्षत्रप पनपाने की रणनीति सीएम भूपेश बघेल के लिए साढ़े चार साल सफल रही लेकिन अब यही नीति सबसे बड़ी मुसीबत की तरह सामने है। बिलासपुर में तो कार्यकर्ता ही सम्मेलन में पूछ बैठे कि कार्यकर्ता सम्मेलन है कार्यकर्ता कब बोलेगा।सरगुजा में सिंहदेव ने ढाई साल से लेकर तालमेल संगठन की अवहेलना कार्यकर्ताओं के अपमान सारे मसले सधे तरीक़े से उठा दिए। ये भी ग़ौरतलब है कि सम्मेलन के बाहर मीडिया से सिंहदेव यह भी कह गए कि, बड़ी बातें करना मेरी आदत नहीं है, लोग 90 या फिर पचहत्तर की बातें करते हैं यहाँ सरगुजा की ही चौदह सीटें वापस आएगी या नहीं वे दावे से नहीं कह सकते। कांग्रेस सत्ता में है और संगठन के लोग हताश निराश नाराज़ हैं। पूरा समय गुजर गया है और सत्ता में होने का लाभ कांग्रेस के कार्यकर्ता को नहीं मिला यह शिकायत बेहद पुरज़ोर तरीक़े से कांग्रेस कार्यकर्ता कहते हैं। कार्यकर्ता सम्मेलन के हवाले से एक कार्यकर्ता ने कांग्रेस के ही व्हाट्सएप ग्रुप में लिख दिया कि, साढ़े चार साल जिनके ज़रिए सरकार चलाई गई और जो लाभान्वित हुए उनकी ही बैठक करें हमारी क्या जरुरत। मसला जैसा बीजेपी में है वैसा ही कांग्रेस में हुआ है। याने दोनों ही दल के नीति नियंता एक हाथ से ताली बजाने की जुगत लगा रहे हैं। कांग्रेस में तो मसला यह भी है कि कार्यकर्ता को बोलने का मौक़ा मिलता तो सत्ता शीर्ष जो मंच पर ही मौजूद थे उन्हें असहज होना पड़ जाता।
आने वाले दिनों में बीजेपी के राष्ट्रीय नेताओं के दौरे छत्तीसगढ़ में आना तय है। इनमें नरेंद्र मोदी,अमित शाह और जे पी नड्डा शामिल है।लोकसभा महासंपर्क अभियान के तहत ये बड़े चेहरे आ रहे हैं। कांग्रेस में अभी कोई ऐसी हलचल नहीं है। संगठन को लेकर कसी करारी नज़र रखने वाले अमित शाह हर नीति में माहिर हैं। क्या तब वे एक हाथ से ताली बजाने की तकनीक को समझ कर उसे सुधार पाएँगे यह देखने की बात होगी।
इन सबसे अलग राज्य में सधे तरीक़े से बल्कि हर आने वाले दिन और तेज़ी से बसपा आम आदमी पार्टी और छजका सक्रिय हैं। आप का फ़ोकस शहरी और कस्बाई मतदाता है। जबकि बसपा और छजका अनुसूचित जाति वोट पर केंद्रित है। वोट का खेल बिगाड़ने याने जीतने वाले को हरा देने और हारने वाले को जीता देनें में इन दलों की भुमिका होगी ही, कोई अचरज नहीं कि सीटें भी चली आएँ। पर इसके साथ साथ अरविंद नेताम के आदिवासी समाज के बैनर तले चुनाव लड़ाए जाने के फ़ैसले और पूरी गंभीरता से चल रही क़वायद भी मुकम्मक ध्यान खींच रही है।