चर्चाओं में कांग्रेस लेकिन तैयारियों में बीजेपी आगे

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Anand Pandey
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चर्चाओं में कांग्रेस लेकिन तैयारियों में बीजेपी आगे

BHOPAL. मध्यप्रदेश में अब मौसम की गर्मी और चुनाव की सरगर्मी बहुत तेजी से बढ़ रही है। राहुल सांसद नहीं रहे..उमा भारती शिवराज का नागरिक अभिनंदन कर रही हैं...लाड़ली बहना फॉर्म भरने में व्यस्त हैं..युवा आठ हजार रूपए पाने के सपने देख रहे हैं...यानी प्रदेश में बुहत कुछ हो रहा है। खुद सरकार, सरकारी कर्मचारी, तमाम संगठन, पार्टियां, बेरोजगार युवा, नेता सब अपने-अपने स्तर पर कमर कस रहे हैं। कई सारे संगठन हैं जिन्हें लग रहा है कि ये एकदम सही वक्त है सरकार पर दबाव बनाने का। इसलिए वो या तो मैदान में उतर गए हैं या उतरने की तैयारी में हैं। टिकट की हसरत  रखने वाले नेता भी एकदम से सक्रिय हो गए हैं। पार्टियों ने भी युद्ध स्तर पर तैयारियां शुरू कर दी हैं। बड़े नेताओं के दौरे तेज हो गए हैं। बैठकों का दौर जोर पकड़ने लगा है। बीजेपी एक कैडर बेस्ड पार्टी है। उसका संगठन उसकी शक्ति का स्रोत है। साथ ही उसके राजनीति कार्यक्रमों और क्रियाकलापों के पीछे उसका वैचारिक अभिभावक संघ पूरी ताकत के  साथ  खड़ा रहता है। विधानसभा चुनाव की तैयारियों में भी ये तथ्य एकदम से उभरकर सामने आ रहा है। 



पूरी बीजेपी तैयारियों में जुटी



बीजेपी में खुद मुख्यमंत्री, प्रदेशाध्यक्ष और केंद्रीय मंत्रियों के सिवाए दिल्ली के कम से कम आधा दर्जन ऐसे नेता हैं जो लगातार प्रदेश का दौरा कर रहे हैं और तैयारियों को चाक-चौबंद करने में पूरी ताकत से जुटे हुए हैं। इनमें प्रदेश प्रभारी मुरलीधार राव, क्षेत्रीय संगठन मंत्री अजय जामवाल, राष्ट्रीय सह संगठन मंत्री शिव प्रकाश, सह प्रभारी पंकजा मुंडें और रामशंकर कठेरिया खास तौर से शामिल हैं। संघ की ओर से पार्टी के संगठन महामंत्री हितानंद शर्मा तो भोपाल में रहते हुए ही पार्टी पर सीधी नजर रखे ही हैं। यानी हम कह सकते हैं कि शिवराज की ओर से पूरी की पूरी एक जबरदस्त टोली चुनाव की तैयारियों में जुटी हुई है।



राजा-रौली के कंधे पर टिकी कांग्रेस



इसके ठीक उलट कांग्रेस की ओर से मैदान में अपनी छोटी सी टीम लेकर डटे हुए हैं रोली (कमलनाथ को उनके स्कूल के दोस्त रोली कहकर ही बुलाते हैं )। बेशक उनका भरपूर साथ निभा रहे हैं राजा..यानी दिग्विजय सिंह। बल्कि अगर ये कहा जाए कि पार्टी के वरिष्ठ नेताओं में एकमात्र राजा ही हैं जो कमलनाथ का मनसा..वाचा..कर्मणा साथ निभा रहे हैं तो कतई अतिशयोक्ति नहीं होगी। हालांकि रोली (कमलनाथ) का साथ देने के लिए पार्टी ने 79 साल के जयप्रकाश अग्रवाल को प्रदेश प्रभारी बनाया है लेकिन उनकी मौजूदगी प्रदेश में कम ही दिखाई देती है। अगर हम यहां सिर्फ साल के शुरुआती तीन महीनों की ही बात करें तो अग्रवाल इन तीन महीनों में केवल दो या तीन ही बार मध्यप्रदेश के दौरे पर आए हैं। वहीं बीजेपी के राष्ट्रीय नेता इस दौरान लगभग एक दर्जन बार प्रदेश के दौरे पर आ चुके हैं। वैसे आमतौर पर ये कहा भी जाता है कि बीजेपी में संगठन चुनाव लड़ता है और कांग्रेस में कैंडिडेट। इस बार भी प्रदेश में इससे इतर कुछ देखने को मिलेगा ऐसा कम से कम अभी तो दिखाई नहीं दे रहा है।



घर वापसी में लगी बीजेपी



उधर बीजेपी में रूठे हुए नेताओं के मान-मनौव्वल का दौर भी समय के साथ तेज होता जा रहा है। जिस तरह से उमा भारती लगातार हमलावर होने के बाद अब शिवराज पर लाड़ उड़ेल रही हैं उससे साफ है कि वो अब भले ही पार्टी का भला न कर पाएं, लेकिन कम से कम बुरा तो नहीं ही करेंगी।  भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की मौजूदगी में प्रीतम लोधी की भी पार्टी में वापसी हो ही गई है।



दोनों पार्टी में कार्यकर्ता पर फोकस ज्यादा



होली के दूसरे दिन शिवराज का प्रदेश अध्यक्ष वीडी शर्मा के घर जाना भी महज संयोग भर नहीं है, ये भी-हम साथ-साथ हैं..जैसा संदेश देने की रणनीतिक कोशिश है। कार्यकर्ताओं की नाराजगी के मसले को भी बीजेपी युद्ध स्तर पर सुलझाने की तैयारी कर रही है।  हालांकि इस मुद्दे को यानी कार्यकर्ताओं की नाराजगी के मसले पर कांग्रेस भी बेहद गंभीर प्रयासों में जुटी हुई है। इस मसले को कांग्रेस के बड़े नेता दिग्विजय सिंह खुद देख रहे हैं। वो जिस शिद्दत से कार्यकर्ताओं से मिल रहे हैं वो काबिले तारीफ है। प्रदेश के राजनीतिक विश्लेषकों का आंकलन है कि पिछली दफा बीजेपी के सत्ता से बाहर होने के पीछे तीन बड़े कारण थे। पहला-पार्टी मुगालते या कहना चाहिए अति आत्मविश्वास में थी। दूसरा-कांग्रेस किसानों की कर्ज माफी का मुद्दा ले आई थी और तीसरा-टिकट वितरण में गड़बड़ी हो गई थी। मुगालते वाली बात तो हाल ही में खुद पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव कैलाश विजयवर्गीय ने भी मानी है।



महिला वोटर्स पर है सभी की निगाहें 



वैसे बीते पखवाड़े की बात करें तो बीजेपी ने सबसे बड़ा मास्टर स्ट्रोक लाड़ली बहना योजना का खेला है। हालांकि ये योजना बीजेपी के लिए कितनी मददगार साबित होगी ये तो वक्त ही बताएगा लेकिन शुरूआती तौर पर ऐसा लग ही रहा है कि ये निर्णायक भूमिका अदा कर सकती है। इसकी गंभीरता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि कमलनाथ को भी कहना पड़ा है कि अगर उनकी सरकार बनी तो वो बहनों को 1500 रुपए महीना देंगे। बेरोजगार युवाओं को भी लुभाने के लिए शिवराज हर संभव कोशिश में जुटे हुए हैं। ट्रेनिंग के साथ आठ हजार रुपए महीना देने का वादा इन्हीं कोशिशों की एक कड़ी है । 



कुर्सी का रास्ता मालवा-निमाड़ से होकर गुजरेगा



इधर कांग्रेस, राजभवन घेराव जैसे आयोजन करके कार्यकर्ताओं में जोश भरने की कोशिश कर रही है। राहुल का मुद्दा भी कांग्रेस अगर सड़क पर ले आई तो फायदे में रहेगी। वैसे प्रदेश के इलाकों के हिसाब से बात करें तो लगातार खबरें आ रही हैं कि ग्वालियर-चंबल इलाके में कोई बड़ा फेरबदल होगा ऐसा फिलहाल तो कतई नजर नहीं आ रहा है। यानी बीजेपी पिछली बार की तरह ही नुकसान में ही रहेगी। पिछली बार यहां कि कुल 34 में से केवल 7 सीटें ही बीजेपी के हाथ लग पाई थीं। बाकी 26 सीटों पर कांग्रेस ने अपना परचम लहरा दिया था। इसी वजह से इस बार सारा दारोमदार मालवा-निमाड़ पर रहेगा। अगर इस इलाके में कांग्रेस पिछली बार जैसा ही परफॉर्मेंस दिखाने में कामयाब हो गई तो फिर उसे सत्ता में आने से कोई नहीं रोक पाएगा। पिछली दफा यहां की कुल 66 सीटों में से कांग्रेस ने 34 सीटें जीती थीं जबकि गढ़ होने के बावजूद बीजेपी को 29 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा था। तीन सीटें निर्दलियों के खाते में गई थीं। यही वजह है कि बीजेपी इस इलाके और खासकर के आदिवासी वोटों पर बहुत ज्यादा फोकस कर रही है। प्रदेश में कुल 47 सीटें आदिवासियों के लिए आरक्षित हैं। इनमें से 22 सीटें मालवा-निमाड़ इलाके में ही आती हैं। पिछली बार इन में से 14 कांग्रेस और 7 सीटें बीजेपी के खाते में गई थीं। यानी कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि अभी प्रदेश में सियासी संतुलन बना हुआ है...एकदम सधा हुआ। जो मालवा-निमाड़ को साध लेगा वो सरकार बना लेगा।


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