मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा बीजेपी के गढ़ पर कब्जा करना, जानिए ऐसा क्यों

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Ravindra Vyas
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मध्यप्रदेश के बुंदेलखंड में कांग्रेस के लिए आसान नहीं होगा बीजेपी के गढ़ पर कब्जा करना, जानिए ऐसा क्यों

Chhatarpur. 2023 के विधानसभा चुनाव को लेकर बुंदेलखंड क्षेत्र में अपना वर्चस्व कायम करने के लिए , बीजेपी और कांग्रेस कितने गंभीर हैं, इसका अंदाजा चुनाव के सालभर पहले से चल रहे राजनैतिक अभियान को देख कर लगाया जा सकता है। शिवराज के बाद हाल ही में बुंदेलखंड इलाके में दिग्विजय की एंट्री के बाद चुनावी  जोड़ तोड़ का अभियान तेजी पकड़ेगा। बुंदेलखंड इलाके के सागर संभाग में 26 विधानसभा और चार संसदीय  सीटें आती हैं। जिनमें कांग्रेस 2018 के चुनाव में तमाम सकारात्मक राजनैतिक हालात के बाद भी अपेक्षित सफलता नहीं पा सकी थी। इस बार भी  कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह ने बुंदेलखंड की कमान संभाली है। अब वे कोंग्रेसियों को मंत्र दे रहे हैं कि " डरो नहीं लड़ो " में तुम्हारे साथ हूं | सुप्त कांग्रेस को संजीवनी देने आए दिग्विजय कितने सफल होंगे यह तो वक्त ही बताएगा। दूसरी तरफ बीजेपी के संगठन ने अपने नेताओं को जो सन्देश दिया है उससे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं की बेचैनी बढ़ गई है।



बीजेपी पलड़ा इस इलाके में भारी



बुंदेलखंड के सागर संभाग के सागर ,छतरपुर ,दमोह, टीकमगढ़, निवाड़ी और पन्ना जिले की 26 विधान सभा सीटों में से कांग्रेस के पास सिर्फ सात और बसपा के पास एक 18 विधानसभा सीटों पर बीजेपी का कब्जा है। सागर जिले में सर्वाधिक आठ विधान सभा सीटें आती हैं, 8 में से 6 पर बीजेपी का कब्जा है। यहां के 6 विधायकों में से तीन मंत्री हैं, पिछले 40 साल से रहली सीट पर चुनाव जितने वाले गोपाल भार्गव, खुरई से भूपेंद्र सिंह और ज्योतरादित्य सिंधिया के साथ बीजेपी में आए सुरखी के गोविंद सिंह राजपूत प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं। 



कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का अभाव! 



दअरसल सागर जिले की बीना विधानसभा क्षेत्र से दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस जोड़ो अभियान की शुरुआत की। अजा के लिए सुरक्षित इस विधानसभा सीट पर पिछले 25 सालों से बीजेपी का कब्जा है, यहां के वर्तमान विधायक महेश राय 2018 का चुनाव  मात्र 460 मत से जीते थे | बीना और खुरई विधानसभा सीट अशोकनगर से लगी हुई होने के कारण यह ज्योतिरादित्य सिंधिया के प्रभाव वाले क्षेत्र माने जाते हैं। सियासत के जानकार लोगों को यह बात अच्छे से पता है कि सिंधिया घराने से दिग्विजय की पुरानी अदावत है। ज्योतिरादित्य सिंधिया के बीजेपी में आने के बाद यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनावी रण में उतरने वाले शशि कथोरिया ने भी बीजेपी की सदस्यता ले ली थी।  इस बार यहां से बीजेपी शशि कथोरिया को टिकट दे सकती है। खुरई में दिग्विजय सिंह का चार माह में यह दूसरा दौरा है,17 दिसंबर 22 को वे यहां आये थे। उस समय वे पीड़ित और प्रताड़ित कांग्रेसी कार्यकर्ताओं से मिले थे। खुरई के पूर्व विधायक और कांग्रेस के प्रदेश उपाध्यक्ष अरुणोदय चौबे के पार्टी छोड़ने के बाद से यहां  कांग्रेस के पास कोई सशक्त प्रत्शीसी नहीं है जो भूपेंद्र सिंह का मुकाबला कर सके। असल में अरुणोदय चौबे की प्रताड़ना के बाद भी कांग्रेस ने उनका साथ नहीं दिया था। जिसके चलते इस इलाके में कांग्रेस कार्यकर्ता यहां बुरी तरह से हतोत्साहित हुआ। आज जब चुनाव सर पर हैं तो कांग्रेस के आला नेता कार्यकर्ताओं का दुःख दर्द बांट रहे हैं, उनके सुख दुःख में साथ रहने की बात कह रहे हैं। 



निचले स्तर के कार्यकर्ता पर कांग्रेस का फोकस



अब दिग्विजय विधानसभा सीट के मंडल कार्यकर्ताओं के साथ बैठक कर उनको एक जुट करने और उनको संजीवनी देने का प्रयास किया। हर जगह वे पत्रकारों के सवालों के जवाब भी दे रहे हैं। उन्होंने बीजेपी सरकार पर हमला बोला, उनके निशाने पर सागर जिले के तीनों मंत्री भूपेंद्र सिंह, गोविंद सिंह और गोपाल भार्गव थे। मंत्रियों पर दादागिरी के आरोप लगाते हुए उन्होंने कहा कि कुर्सी किसी की नहीं हुई, भगवान से तो डरो । कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को सताने और और उन पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने के आरोप लगाते हुए उन्होंने अपने मुख्यमंत्री काल की भी याद दिलाई। वे आपातकाल का जिक्र करने से भी नहीं चुके उन्होंने कहा कि राघौगढ़ क्षेत्र में कई लोगों को जेल जाने से हमने बचाया। कार्यकर्ताओं से भी कहा की डरो नहीं लड़ो, अगर किसी से शिकायत नहीं कर सकते तो हमें बातएं हम आपके साथ खड़े हैं। गोविंद राजपूत के बीजेपी में आने के बाद वे बिगड़ गए हैं। दरअसल दिग्विजय सिंह कार्यकर्ताओं से यह जानना चाहते थे कि क्या वजह है कि एक समय कांग्रेस का गढ़ रहा सागर जिला की सागर ,बीना ,नरयावली, रहली और खुरई विधानसभा सीट वर्षों से हम हार रहे हैं? उन्होंने फर्जी वोटरों के जुड़ने पर चिंता जताते हुए कार्यकर्ताओं को नसीहत दी की वे बूथ स्तर पर जांच करें और फर्जी वोटरों के नाम कटवाएं। वे लगभग हर बैठक में अपने को आम कार्यकर्ता प्रदर्शित करने का प्रयास करते रहे और कार्यकर्ताओं के साथ नीचे बैठे। 



बुंदेलखंड से निकलेगी सत्ता की राह



बुंदेलखंड कभी कांग्रेस का गढ़ रहा है, आज हालात ये है कि बुंदेलखंड की एक एक सीट पाने के लिए कांग्रेस को कडा संघर्ष करना पड़ रहा है। बुंदेलखंड की 26 विधानसभा सीटों पर हार जीत का समीकरण ही अब प्रदेश में सत्ता की चाभी बन गया है। यही कारण है 2018 के चुनाव से ज्यादा आक्रामक रणनीति के साथ कांग्रेस चुनावी मैदान में है। दिग्विजय के दौरे के पहले यहां दिग्विजय सिंह के पुत्र जयवर्धन सिंह भी दौरा कर चुके हैं और आने वाली 20 अप्रैल को कमलनाथ आ रहे हैं। बीजेपी भी अपने चुनावी अभियान में कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहती है। मंडल बूथ और पन्ना प्रमुख की तैयारी के बाद अब बीजेपी के संगठन स्तर पर कसावट का सिलसिला शुरू हो गया है। बीजेपी की पिछले दिनों खजुराहो में हुई एक बैठक में पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को साफ संकेत दिए गए कि पार्टी को अपने अनुभव का लाभ दें और नई पीढ़ी को आगे बढ़ाने में सहयोग दें। इशारा साफ है कि पार्टी बड़े स्तर पर परिवर्तन की ओर बढ़ रही है।



'बीजेपी के प्रति नाराजगी बनेगी जीत की वजह'



दिग्विजय सिंह सागर जिले में शोषण, महंगाई , भ्रष्टाचार, कानून व्यवस्था की बात तो करते रहे किंतु बुंदेलखंड के किसानों की समस्या पर उन्होंने एक तरह से मौन साध लिया। जबकि बुंदेलखंड जहां के किसान इन दिनों ओला और पानी से फसलों की हुई बर्बादी को लेकर दुखी है। सियासत में अगर तात्कालिक मुद्दों को दरकिनार कर दिया जाए तो यह पार्टी के लिए नुकसानदेह साबित होता है। पिछले कुछ वर्षों में कांग्रेस यह सब करती रही है, जिसका खामियाजा उसको भुगतना पड़ा। बुंदेलखंड में कांग्रेस के नेता ही एक दूसरे को हराते हराते इतने नीचे पहुंच गए की उसे अपने वजूद को साबित करने के लिए संघर्ष करना पढ़ रहा है। वह आज भी इस आशा में है कि लोगों की बीजेपी से बढ़ती नाराजगी उसकी जीत की वजह बनेगी। खुद दिग्विजय सिंह यह बात स्वीकारने में संकोच नहीं करते कि सागर में संगठन कमजोर है, कमजोरियों को दुरुस्त करने के लिए हम लोग आये हैं।


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