मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की टेंशन का फायदा उठाएगी कांग्रेस

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Raman Rawal
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मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की टेंशन का फायदा उठाएगी कांग्रेस

BHOPAL. संपत्ति, सत्ता, शक्ति, संसाधन, साम्राज्य जिसके भी पास होता है, वह ज्यादातर समय खुद को असुरक्षित, भयभीय महसूस करता है। इस समय ऐसी ही कुछ स्थिति मध्यप्रदेश की बीजेपी सरकार की है, जिसके सामने विरोधी दल के नाते कांग्रेस किसी भी तरह से चुनौतीपूर्ण स्थिति में नहीं है, फिर भी बीजेपी राहत की सांस नहीं ले पा रही है, जिसका फायदा आज नहीं तो कल कांग्रेस उठा ही लेगी।



बीजेपी की घबराहट का फायदा कांग्रेस को मिलेगा



यानी कांग्रेस अपने बूते तो आगामी विधानसभा चुनाव जीतने के भरोसे में नहीं है, किंतु बीजेपी की घबराहट उसे विजय दिला सकती है। इस तरह के फोबिया ने अतीत में अनेक जीती हुई बाजी पलटा दी हैं और मैदान छोड़कर भागने को तैयार बैठे योद्धा विजयश्री का वरण कर जाते हैं। देखना दिलचस्प होगा कि भारतीय जनता पार्टी का प्रादेशिक नेतृत्व और मुख्यमंत्री अपने कमतरी के अहसास से उबरकर पांचवीं जीत को प्राप्त होते हैं या अति सुरक्षा के भय से ग्रस्त होकर वीरगति को प्राप्त हो जाते हैं।



मध्यप्रदेश में चुनावी महाभारत



मध्यप्रदेश में चुनाव की शतरंज बिछ चुकी है, पासे फेंके जा रहे हैं और जनता को अभी यह तय करना बाकी है कि शकुनी कौन और युधिष्ठिर कौन है? वैसे महाभारत काल के बाद किसी ने खुद को शकुनी के तौर पर पेश नहीं किया, जबकि युधिष्ठिर कहलाने के उतावलों की फौज हमेशा तैयार रही। जनता तो कौरव वंश के उन दरबारियों की तरह है जो चीर हरण होते देखती रहती है, मूक रहकर। लोकतंत्र हर बार द्रौपदी की तरह त्रासदपूर्ण हालात में पहुंचता है और जनता जनार्दन श्रीकृष्ण बनकर उसकी रक्षा को आते भी हैं, लेकिन अगले 5 साल तक वही जनता फिर मूकदर्शक बनने को विवश हो जाती है। मध्यप्रदेश की जनता अपनी दोहरी भूमिका के चक्रव्यूह में धर्म या धृष्टता में से किसका चयन करे, समझ नहीं पाती। बहरहाल।



बीजेपी बनाम कांग्रेस



चलिए तो सीधे बात कर लेते हैं शिवराज सिंह चौहान बनाम कमलनाथ यानी बीजेपी विरुद्ध कांग्रेस की। जहां बीजेपी के भीतर एक और बीजेपी है, वहीं कांग्रेस के भीतर तो 5-10 कांग्रेस हैं। यही उसकी बड़ी कमजोरी है और इससे ही उबरने की सूरत नजर नहीं आ रही। वहीं बीजेपी का भी अंतर्द्वंद्व कम नहीं। आश्वस्त होकर भी संशकित दिखते शिवराज अपने विजय रथ को हांकते-हांकते थकान महसूस करने लगते हैं। दूसरी तरफ कमलनाथ जितने क्षत्रपों को इकट्‌ठा करने लगते हैं, उतने ही नए जागीरदार-जमादार खड़े हो जाते हैं। चक्रवर्ती सम्राट बनने का सपना देखने वाले कमलनाथ जिस दिन दल के भीतर सर्वमान्य और सर्व शक्तिमान हो जाएंगे, चुनावी मोर्चे पर उस दिन वे आधी सफलता हासिल कर लेंगे।



बीजेपी तमाशे की तरह देख रही कांग्रेस का खेल



अभी तो कांग्रेस के अंदर से आवाज यह आ रही है कि कमलनाथ प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर चुनाव की जिम्मेदारी निभा भी पाएंगे? इस पसोपेश में कमलनाथ जितने होंगे, उससे कहीं अधिक उनके प्रतिद्वंद्वी भी हैं। इस खेल को बीजेपी तमाशे की तरह देख रही है। मई में जब तस्वीर साफ होगी, तब तक बीजेपी कितने इलाके पर कब्जा जमा लेगी और कांग्रेस के हाथ से क्या-क्या निकल जाएगा, यह भी मायने रखेगा। ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी या शिवराज सिंह चौहान पूरी तरह से बेफिक्रमंद हैं। वहां भी नेतृत्व परिवर्तन की हल्की-हल्की बयार चलती रहती है और दल के भीतर अपनी बारी का इंतजार करने वाले नाउम्मीद होने को तैयार नहीं हैं। इस असमंजस की स्थिति में शिवराज सिंह चौहान कभी वीडी शर्मा को साधते हैं, कभी दीदी उमा भारती की मनुहार करते हैं, कभी ज्योतिरादित्य सिंधिया के कंधे से कंधा मिला देते हैं। कुल मिलाकर शिवराज भी रस्सी पर संतुलन के खेल के माहिर खिलाड़ी की तरह अभी तो कदम आगे-पीछे लेते हुए रस्सी पर टिके हैं।



बीजेपी और कांग्रेस की टक्कर



नवंबर 2023 में होने वाले विधानसभा चुनाव को यूं देखें तो खास समय नहीं बचा है, किंतु दोनों ही दलों में, उनके नेताओं में, कार्यकर्ताओं में जो एक बात काफी समान नजर आती है वह है शर्तिया भरोसे की नितांत कमी की। बीजेपी के सामने 2003 के बाद करीब 19 साल की सत्ता से उपजा असंतोष परेशान करने लगता है तो कभी शिवराज तुल्य हर वर्ग और क्षेत्र में लोकप्रिय नेता की कमी खलती है। वह अपनी तैयारी के दम पर अधिक आश्वस्त होने की बजाय कांग्रेस की कमतरी, कमजोरी, अंतर्कलह को ज्यादा महत्वपूर्ण मानती है। कांग्रेस अभी तक करंट नहीं पकड़ पाई है। वह यदि सोचती है कि राजभवन घेरने जैसे आयोजन कर वह जनता का समर्थन, सहानुभूति पा लेगी तो यह उसकी नादानी होगी। बीजेपी यदि कांग्रेस की कलह, कमलनाथ का एकछत्र ना रहने को अपने एकतरफा हक में मानती है तो यह भी अपरिपक्वता ही होगी। तब ये दोनों ही दल ऐसा क्या करें , जिससे जनता के बीच उनके अंक बढ़ें, जो उन्हें सत्ता सिंहासन के नजदीक पहुंचाए और अपने विरोधी को चारों खाने चित कर दे। ऐसी कोई जादू की छड़ी अभी तक तो किसी के पास नहीं है। अभी तो मदारी ने डमरू बजाना शुरू किया है, जमूरा मैदान के बीच में नहीं आया है, लेकिन दर्शकों के बीच ही कहीं छुपकर मदारी के सवाल के जवाब देकर अपने होने का भान भर करा रहा है। जब मजमा पूरे शबाब पर होगा और मदारी मुर्दे में जान फूंक देने का दावा करते हुए जोर-जोर से डमरू बजाने लगेगा, तब जाकर जनता में जिज्ञासा और हलचल मचेगी कि जमूरा अचानक उठ खड़ा होगा या चादर के नीचे से गायब हो जाएगा?


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