शेखावत के बयान से राजस्थान की राजनीति में “चक्रवात”, मुद्दा ऐसा कि निगलते बन रहा ना ही उगलते…

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Chakresh
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शेखावत के बयान से राजस्थान की राजनीति में “चक्रवात”, मुद्दा ऐसा कि निगलते बन रहा ना ही उगलते…

(जयपुर से मनीष गाेधा की रिपाेर्ट)





दिसंबर में राजस्थान में होने जा रहे  विधानसभा चुनाव की दृष्टि से देखा जाए तो राजस्थान बीजेपी के लिए इसकी गुटबाजी से भी बड़ी समस्या पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना यानी ईआरसीपी बनी हुई है। बीजेपी के लिए यह ऐसी गले की हड्डी बन गई है जो ना निगलते बन रही है और न उगलते। ऊपर से दिलचस्प बात यह है कि बीजेपी एक के बाद एक इससे जुड़े विवादों से घिरती नजर आ रही है।





ताजा मामला केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत का वो वायरल वीडियो है, जिसमें वे कहते नजर आ रहे हैं कि 46 हजार करोड़ भी दे दूंगा, ईआरसीपी भी दे दूंगा, बस राजेंद्र जी का राज ला दो।





यह वीडियो यूं तो एक कार्यकर्ता से बातचीत का सामान्य वीडियो है, लेकिन इसने ईआरसीपी  ( ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्राेजेक्ट ) के मुद्दे पर चल रही सियासत को गर्मा दिया है। इसके पीछे सबसे बड़ा कारण यह है कि यह वीडियो कहीं ना कहीं इस बात की तस्दीक करता है कि केन्द्र सरकार भले ही कई तरह के तर्क दे रही हाे, लेकिन वह चाहे तो इस परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना के रूप में मंजूरी दे सकती है। यह वीडियो कांग्रेस के इस आरोप को भी पुष्ट करता है कि केन्द्र सरकार इस परियोजना पर कुंडली मारकर बैठी है। कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता स्वर्णिम चतुर्वेदी कहते हैं कि इस वीडियो से साफ हो गया है कि प्रदेश में बीजेपी की सरकार नहीं होने का दंड यहां की जनता को दिया जा रहा है। बीजेपी इस मामले में पूरी तरह से बेनकाब हो गई है।





ईआरसीपी पर अब तक यह रहा है गजेंद्र सिंह का स्टैंड





ईआरसीपी को राष्ट्रीय परियोजना घोषित करने की मांग को केन्द्र सरकार मान नहीं रही है और इसके पीछे केन्द्रीय जलशक्ति मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत यह कहते रहे हैं कि पहले चरण में सीडब्ल्यूसी यानी केन्द्रीय जल आयोग द्वारा तकनीकी स्वीकृति तभी दी जाती है, जब परियोजना को भारत सरकार के दिशा-निर्देशों के अनुसार 75 प्रतिशत निर्भरता पर बनाया गया हो जो सुनिश्चित करता है कि चार वर्षों में से कम से कम तीन वर्षों के दौरान हेडवर्क्स पर नियोजित पानी यानि 75 प्रतिशत पानी उपलब्ध हो, लेकिन गहलोत सरकार महज 50  प्रतिशत पर नियोजन करना चाहती है।





गजेन्द्र सिंह का कहना है कि इसे लेकर मध्य प्रदेश सरकार ने कई बार आपत्ति दर्ज कराई है, पर गहलोत सरकार इस मानक को पूरा करने के बजाय केंद्र को बदनाम करते हुए पूर्वी राजस्थान के साथ ही मध्य प्रदेश के लोगों के हितों पर भी कुठाराघात करने का काम कर रही है। शेखावत ने यह भी कहा था कि ईआरसीपी को उन्होंने उन टॉप 5 प्राथमिकता वाले राष्ट्रीय प्रोजेक्ट्स की सूची में शामिल किया है, जिन पर भारत सरकार प्राथमिकता के साथ इंटरलिंकिंग ऑफ रिवर्स यानी नदियों को जोड़ने की योजना में काम करेगी। अब उनका ताजा वीडियो कहीं ना कहीं यह बताता है कि सरकार आ जाए तो यह सारे तर्क एक तरफ रख दिए जाएंगे और ईआरसीपी को मंजूर कर दिया जाएगा। 





गौरतलब है कि इससे पहले भी गजेन्द्र सिंह शेखावत ईआरसीपी के मामले में एक दावा कर फंस गए थे। उस समय उनके मंत्रालय से जुड़े एक कार्यक्रम में जब राजस्थान के जलदाय मंत्री महेश जोशी ने ईआरसीपी का मुद्दा उठाते हुए प्रधानमंत्री द्वारा पिछले चुनाव में किए गए वादे की बात की थी तो गजेन्द्र सिंह शेखावत ने दावा कर दिया था कि पीएम ने ऐसा कोई वादा नहीं किया। बाद में वे इस दावे पर फंस गए थे, क्योंकि कांग्रेस ने इसे बड़ा मुद्दा बना लिया था।





वसुंधरा सरकार की बनाई योजना है





दरअसल पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना वसुंधरा राजे के पिछले कार्यकाल में बनाई गई थी। उस समय रजो ने जहां गांवों में पानी की समस्या को दूर करने के लिए मुख्यमंत्री जल स्वावलम्बन योजना लागू की थी, वहीं प्रदेश के दक्षिण पूर्वी हिस्से के 13 जिलों में पानी की समस्या को हमेशा के लिए खत्म करने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना का खाका तैयार किया था। ये योजना तैयार कर केन्द्रीय जल आयोग को भेजी गई थी और तब केन्द्रीय जल आयोग ने इसके लिए सिद्धांततः सहमति भी दे दी थी। राजे के समय यह योजना 37 हजार करोड़ रुपए की थी। चूंकि एक वृहद परियोजना थी, इसलिए राजे भी यही चाहती थीं कि इसे  राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा मिल जाए ताकि यह योजना समय पर पूरी हो, इसे अच्छी तकनीकी विशेषज्ञता मिले और राज्य सरकार पर इसका पूरा भार ना आए। चूंकि योजना चुनाव के समय के आसपास ही बनी थी, इसलिए 2018 के चुनाव में एक-दो जगह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के भाषणों में भी इसका उल्लेख हुआ और उन्होंने भरोसा दिलाया कि केन्द्र सरकार इस परियोजना के महत्व को देखते हुए इस  पर विचार करेगी।





केन्द्र की चुप्पी से गहलोत को मिला मौका





प्रदेश में सरकार बदली तो परियोजना शुरुआत में तो ठंडे बस्ते में चली गई और दो साल तक इस पर कोई बात नहीं हुई। सीएम अशेाक गहलोत ने परियोजना के महत्व और राजनीतिक फायदे को देखा तो अपने तीसरे बजट से इसके बारे में बात करना शुरू कर दिया। इसके बाद भी ना प्रदेश बीजेपी चेती और ना ही केन्द्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत चेते जो राजस्थान से ही सांसद हैं। केन्द्र व बीजेपी की चुप्पी से गहलोत को इस परियोजना को बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनाने का मौका मिल गया और अपने पिछले दो बजटों में तो उन्होंने योजना के लिए राज्य के बजट से राशि का प्रावधान कर इसे बड़ा राजनीतिक मुद्दा बना दिया।





गहलोत को हर तरह से फायदा





इस परियोजना के मामले में गहलोत और कांग्रेस राजनीतिक दृष्टि से हर तरह से फायदे में दिख रही है। केन्द्र सरकार इस परियोजना को लटकाए रखती है तो पूर्वी राजस्थान में कांग्रेस इसे लेकर बीजेपी को घेरेगी और यह काम पिछले डेढ़ दो साल से चल भी रहा है। वहीं यदि केंद्र सरकार इसे परियोजना को मंजूरी देती है या कोई ठोस फैसला करती है तो भी गहलोत क्रेडिट लेने से पीछे नहीं हटेंगे और कहा जाएगा कि हमने दबाव डाला तो केन्द्र सरकार ने काम किया। अब हालत यह है कि इस मुद्दे पर बीजेपी के नेता ऑन रिकाॅर्ड कुछ भी बोलने से कतराते हैं, हालांकि आपसी बातचीत में मानते हैं कि इसे लेकर की गई ढिलाई का बड़ा नुकसान हो सकता है।  





पूर्वी राजस्थान से सिर्फ एक सीट मिली थी बीजेपी को





इस परियोजना में वैसे तो दक्षिण-पूर्वी राजस्थान के 13 जिले झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर शामिल हैं, लेकिन इनमें से सवाई माधोपुर, दौसा, करौली, भरतपुर और धौलपुर विशुद्ध तौर पर पूर्वी राजस्थान के जिले हैं। इन जिलों में पिछली बार बीजेपीका प्रदर्शन बेहद खराब रहा था। यह गुर्जर-मीणा बाहुल्य इलाका है और पिछले चुनाव में सचिन पायलट फैक्टर के चलते बीजेपीका गुर्जर वोट बैंक छिटककर कांग्रेस के खेमे में चला गया था। नतीजा यह हुआ कि इन जिलों की 24 सीटों में से बीजेपीसिर्फ एक धौलपुर की सीट जीत पाई थी। हालांकि यहां से चुनी गई विधायक शोभारानी कुशवाहा भी अब कांग्रेस के खेमे में चली गई हैं और पार्टी ने उन्हें निष्कासित कर दिया है। ऐसे में तकनीकी रूप से इन पांच जिलों में बीजेपीका अभी एक भी विधायक नहीं है। ऐसे में समझा जा सकता है कि चुनाव की दृष्टि से पूर्वी राजस्थान बीजेपीके लिए कितना अहम है और यह परियोजना कैसे उसके लिए परेशानी का सबब बनी हुई है।





ईआरसीपी एक नजर में







  • अनुमानित लागत लगभग 46,000 करोड़ रुपए।



  • राज्य की 41.13 प्रतिशत आबादी और 23.67 प्रतिशत क्षेत्र को कवर करेगी।


  • राज्य के उत्तर पश्चिमी हिस्से की पेयजल और सिंचाई जरूरतों को पूरा करने वाली इंदिरा गांधी नहर जैसी ही परियोजना है।


  • इसके लिए पानी चंबल नदी से लिया जाएगा, क्योंकि इसके बेसिन में अधिशेष जल की उपलब्धता है। इसके अलावा उसकी सहायक नदियों (कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध) में वर्षा ऋतु के दौरान उपलब्ध अधिशेष जल का उपयोग किया जाएगा।


  • इससे राजस्थान के 13 जिलों में पीने का पानी मिल सकेगा। 


  • 26 विभिन्न बड़ी एवं मध्यम परियोजनाओं के माध्यम से 2.8 लाख हेक्टेयर भूमि की सिंचाई की जा सकेगी।


  • 13 जिलों में झालावाड़, बारां, कोटा, बूंदी, सवाई माधोपुर, अजमेर, टोंक, जयपुर, करौली, अलवर, भरतपुर, दौसा और धौलपुर शामिल हैं। 




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