BETUL. वर्ष 2023 में होने वाले मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव परिणाम का आकलन प्रारंभ किए हुए 2 महीने व्यतीत हो चुके हैं। बीते इन दो महीने में राजनीतिक पटल पर जितने प्रभावी बदलाव हुए हैं, आइए! उन सबका का चुनावी परिणाम की दृष्टि से आकलन करते हैं।
एनडीटीवी के डिबेट सर्वे में 87% ने कांग्रेस का फायदा बताया
राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता से अयोग्य ठहराने के बाद देश की राजनीति पटल में स्थिति तेजी से बदल रही है। राहुल गांधी द्वारा कुछ समय तक अपील दायर न करने से राजनैतिक क्षेत्र में चिंता लिए एक नई चिंतन पर सोचने के लिए विवश कर दिया था। अभी अपील कर दी गई है, परंतु वह उच्च न्यायालय में न की जाकर सत्र न्यायाधीश में किए जाने को भी सियासी रूप दिया जा रहा है। एनडीटीवी द्वारा राहुल गांधी की अयोग्यता से उत्पन्न जन प्रतिक्रिया जानने के लिए कराए एक डिबेट सर्वे में 87 प्रतिशत लोगों की प्रतिक्रिया अनुसार पार्टी और राहुल गांधी को इसका निश्चित रूप से इसका लाभ मिलेगा। तब निश्चित रूप से इसका फायदा मध्यप्रदेश में कांग्रेस को भी होगा। प्रश्न जरूर यह है कि फायदा कितना होगा? यह देखने की बात होगी।
मोदी का सामना करने विपक्ष के पास कोई व्यक्तित्व नहीं है
राहुल गांधी की अयोग्यता से उत्पन्न घटनाक्रम से अभी तक चल रही देश की राजनीति में एक नये तरह का महत्वपूर्ण बदलाव देखने के संकेत मिल रहे हैं। वह यह है कि, अभी तक समस्त विपक्षी दल राज्यों के चुनावों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर सीधा हमला (अटैक) नहीं करते थे, मोदी का सीधा सामना करने से बचते थे। मतलब वे मोदी विरूद्ध विपक्ष की बजाए भाजपा विरूद्ध विपक्ष को चुनावी मोड में लाने का प्रयास अभी तक करते रहे हैं। क्योंकि मोदी के व्यक्तित्व का सामना करने के लिए समस्त विपक्ष के पास फिलहाल ऐसा कोई भी समकक्ष व्यक्तित्व नहीं है।
प्रधानमंत्री की स्वच्छ छवि मलिन कर महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बना सके
याद कीजिए! पिछले 5 वर्षों में अरविंद केजरीवाल जो वर्तमान में राजनीति के नैरेटिव व सिनारियो (परिदृश्य) को तय करते हुए दिखते रहे हैं, ने मोदी पर सीधा अटैक लगभग नहीं के बराबर किया था। जबकि इसके पूर्व ऐसा करने के कारण उनको इसका भुगतान भी उठाना भी पड़ा था। लोकसभा चुनाव और नगर निगम चुनाव में वे सफलता प्राप्त नहीं कर सके थे। राहुल गांधी की अयोग्यता के बाद अभी अचानक दिल्ली विधानसभा में मोदी को लेकर जिस तरह का भाषण अरविंद केजरीवाल ने दिया है, वह अचंभित करने वाला है। तथ्यों की सत्यता पर जाए बिना प्रधानमंत्री पर भ्रष्टाचार का तीव्रतम हमला आरोप लगाकर करने के साथ ही कर्नाटक में कांग्रेस द्वारा अदाणी मुद्दे में मोदी को भ्रष्टाचारी का साथ देने के आरोपों से मोदी की स्वच्छ छवि को धूमिल करने का प्रयासों में अचानक तेजी आ गई है। इससे यह बिल्कुल सुनिश्चित लग रहा है कि अब विपक्षी पार्टियों के पास वह ताकत, बल और साहस आ गया है। जब वे सीधे प्रधानमंत्री की स्वच्छ छवि को भ्रष्टाचार के मुद्दे पर हमला कर कुछ मलिन कर महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बनाना सके, जिससे वे अभी तक समकक्ष समतुल्य नेतृत्व के अभाव में बचते रहे हैं। हालांकि, यह आज भी एक सत्य है कि सम्पूर्ण विपक्ष के पास मोदी के समकक्ष कोई नेता ठहर नहीं पा रहा है। यद्यपि इसका उत्तर इंदिरा गांधी के बाद कौन? प्रश्न व बाद की परिस्थितियों से दिया जा सकता है। तथापि इस महत्वपूर्ण परिवर्तन का एक फायदा विपक्षी दलों को यह हो सकता है कि, जिस तरह भाजपा मोदी की छवि को बेरोक टोक प्रदेश विधानसभा चुनाव में भुनाते चली आ रही थी, उसमें कहीं न कहीं रुकावट आ सकती है। इसका फायदा निश्चित रूप से कांग्रेस को मध्यप्रदेश चुनाव में मिल सकता है।
आज की राजनीति सिद्धांत के लिए नहीं, बल्कि स्वार्थ के लिए अपनाई जाती हैं
एक और महत्वपूर्ण घटना जो मध्यप्रदेश में घट रही है व अभी तक की जो राजनैतिक दिशा व चलन रही है, जहां कांग्रेस से लोग भाजपा में जाते रहते थे, उस पर अब कुछ विराम लगकर, विपरीत होकर नेतागण भाजपा से कांग्रेस में आ रहे हैं। राव देशराज सिंह यादव व यादवेंद्र सिंह पूर्व विधायक के बाद पूर्व सांसद मान सिंह सोलंकी भाजपा छोड़कर ‘हाथ’ का दामन थाम लिए हैं। यदि ऐसा ही चुनाव तक चलता रहा तो यह परिणाम के पहले ही अपने आप एक निश्चित संकेत होगा कि कांग्रेस भाजपा पर हावी हो रही है। क्योंकि आज की राजनीति सिद्धांत के लिए नहीं, बल्कि विशुद्ध राजनीतिक स्वार्थ के लिए आयाराम गयाराम की नीति अपनाई जाती हैं। यही झुकाव (ट्रेड) फिलहाल कर्नाटक में देखने को मिल रहा है, जिससे मध्यप्रदेश कांग्रेस के उत्साह में भी वृद्धि होगी। यद्यपि केरल में कांग्रेस के कुछ बड़े नेता रहे के सुपुत्र व परपोते के बीजेपी में जाने से बीजेपी का उत्साह भी केरल में बढ़ेगा।
मुख्यमंत्री शिवराज के चौथे कार्यकाल की 44% घोषणाएं शेष है
एक ओर तथ्य जिसका प्रभाव अभी तो नहीं लेकिन चुनाव के वक्त देखने को मिल सकता है, वह वादों की पूर्ति/ खानापूर्ति/ आपूर्ति/ अप्राप्ति ? मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के चौथे कार्यकाल में अभी तक 2385 घोषणाएं हुई है जिसमें 1195 पूरी हो पाई है। अर्थात लगभग 44 प्रतिशत शेष है। इनमें दीर्घकालीन योजनाएं भी शामिल है। मुद्दा यह है कि मुख्यमंत्री इन बची अवधि में कितनी घोषणाओं को पूरा कर पाते हैं? विपरीत इसके कांग्रेस इसे कितना प्रभावी चुनावी मुद्दा बना पाती है? परफॉर्मेंस (परिणाम) के मुद्दे के चुनावी परिणाम पर आकलन के लिए कुछ समय तो और इंतजार करना ही होगा।
बीजेपी की संभावनाओं में बढ़ोतरी पर विचार किया जा सकता है
हाल ही में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मध्यप्रदेश में कार्यकर्ताओं के बीच फैले असंतोष व संवादहीनता को दूर करने के लिए 14 ब्रह्मोस मिसाइल जिसमें पूर्व प्रदेश अध्यक्ष से लेकर केंद्रीय मंत्री व पूर्व संगठन महामंत्री शामिल को उतारा है। हालांकि, उनमें से कुछ तो स्वयं ही असंतुष्ट है? और संतुष्ट हुए बिना दूसरों को वे कैसे संतुष्ट कर पाएंगे। पार्टी द्वारा उन्हें उतारे जाने के बाद इन मिसाइलों के धरती पर उतरने के बाद ही इनके द्वारा किए गए कार्य का मूल्यांकन तदनुसार बीजेपी की संभावनाओं में बढ़ोतरी पर विचार किया जा सकता है।
पूरे परिप्रेक्ष्य में आज की स्थिति में मुकाबला बराबरी का है
भाजपा की दृष्टि से एक महत्वपूर्ण घटना हाल ही में इंदौर में भी हुई है। जहां चुनाव को देखते हुए राजनीतिक विचार विमर्श के लिए बुलाई गई संघ-परिवार की बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को नहीं बुलाया गया, जबकि प्रदेश अध्यक्ष को बुलाया गया। क्या यह पैदा की गई अनुपस्थिति शिवराज के भविष्य पर प्रश्नवाचक चिन्ह लगाकर चुनाव के पूर्व ‘परिवर्तन’ का कोई संकेत होगा? इसके लिए कुछ समय और कुछ जरूर इंतजार करना होगा। पूरे परिप्रेक्ष्य में आज की स्थिति में आकलन का झुकाव कभी एक अंक ऊपर तो एक अंक नीचे हो रहा है। मतलब मुकाबला बराबरी का है।