BHOPAL. अजय बोकिल, मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के गर्भ में पल रही भावी सरकार के दो महीने पूरे हो चुके और ‘जन्म’ के लिए सात महीने बाकी हैं। हिंदू धर्म में दो माह बाद गर्भवती स्त्री का अनवलोभन संस्कार करने की परंपरा है। इसका उद्देश्य है गर्भपात का रोकना और भावी संतान के पराक्रमी होने की कामना करना। मध्यप्रदेश में इस समय जिस तरह शीर्ष नेताओं में जुबानी जंग छिड़ी है और वार पर वार हो रहे हैं, उससे लगता है कि अब ठोस मुद्दों का तरकश रीत गया है और दोनों मुख्य प्रतिद्वंदियों में भय है कि कहीं उम्मीदों का गर्भपात न हो जाए। एक तरफ भाजपा ने अपने ‘ब्रह्मास्त्र’ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जरिए विंध्य क्षेत्र में चुनावी महासमर का ऐलान पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के सीएम प्रत्याशी कमलनाथ पर वार के साथ करदिया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस भी कोशिश में लगी है कि सरकार के प्रति जनता की नाराजी को वोटों में भुनाया जाए। इस बीच प्रदेश में ‘आम आदमी पार्टी’ के चुनाव प्रचार का आगाज भी हो गया है। पार्टी का नारा है ‘एक मौका केजरीवाल को दो।‘ ‘आप’ की चुनावी एंट्री से दोनों पार्टियों के दिलो में खुटका है कि वो कहां कहां किसको नुकसान पहुंचा सकती है।
वादे हैं वादों का क्या ?
अगर घोषणाओं और लोकलुभावन वादों की बात की जाए तो मुख्यमंत्री शिवराज और बीजेपी कांग्रेस से मीलों आगे है। शिवराज तो मानो हर वो घर नहीं छोड़ रहे हैं, जहां से वोटों के झरने की संभावना है। जात, बिरादरी, समुदाय, संप्रदाय, नर-नारी बच्चे युवा, यानी शायद ही कोई बचा होगा कि उन्होंने किसी न किसी को कुछ न कुछ प्रसाद न बांटा हो। बीजेपी का मानना है कि इसी तरह बूंद-बूंद से वोटों का घड़ा भरेगा और भाजपा पांचवीं बार सत्ता में लौटेगी। दूसरी तरफ मुख्य प्रतिद्ंद्वी कांग्रेस और उसके नेता घोषणाओं का जवाब प्रति घोषणाओं से और आरोपों का उत्तर प्रत्युत्तर से देने में लगे हैं। या यूं कहें कि वो अपनी तरफ से केवल रेवड़ी का वजन बढ़ाते जाते हैं।
गिरता जा रहा है नेताओं के बीच भाषा का स्तर
ताजा मामला सीएम शिवराज का रीवा में पीएम मोदी की मौजूदगी में किया गया यह दावा है कि राज्य में भाजपा राज में किसानों की आय दोगुनी हो गई है। कमलनाथ ने तुर्की ब तुर्की जवाब दिया कि आय का तो पता नहीं, लेकिन किसानों की ‘हाय’ जरूर बढ़ी है। वैसे कमलनाथ सरकार पिछले विस चुनाव में किसान कर्ज माफी के मुददे पर सत्ता में आई थी। लेकिन वो कर्जमाफी आधी अधूरी ही हुई और सरकार गिरने के बाद हुए उपचुनावों में भी कांग्रेस को उसका लाभ नहीं मिला। इसके पहले दोनो नेताओं में 'पागल' और 'सड़क छाप गुंडे' पर भी जमकर शाब्दिक युद्ध चला। कमलनाथ ने कहा था कि शिवराज ‘गुंडो जैसी भाषा’ बोल रहे हैं। इस पर शिवराज का जवाब आया कि कमलनाथ दंगें भड़काना चाहते हैं। यही दो माह पहले यानी भावी सरकार के ‘गर्भधारण’ के वक्त भी दोनों नेताओं में खासी जुबानी जंग हुई थी। शिवराज ने कमलनाथ पर ‘छल’ करने का आरोप लगाया था तो कमलनाथ ने शिवराज को उनका ‘महापाप’ याद दिलाया था।
भला भगवान किसकी सुनेंगे?
जुबानी जंग का यह अखाड़ा अब वरिष्ठ कांग्रेस नेता व सांसद दिग्विजय सिंह और केंद्रीय मंत्री तथा तीन साल पहले कांग्रेस में रहे ज्योतिरादित्य सिंधिया तक फैल गया है। दोनों के बीच भगवान महाकाल जबरन उलझ गए। शुरूआत दिग्विजय की उज्जैन में महाकाल दर्शन से हुई। बाहर निकलकर मीडिया के सवालों के जवाब में दिग्विजय ने कहा कि मैंने महाकाल से यही मांगा कि आगे से कांग्रेस में कोई दूसरा ज्योतिरादित्य पैदा न हो। उन्होंने तंज किया कि राजा महाराजा तो बिक गए, लेकिन कांग्रेस का आम विधायक नहीं बिका। इस घातक वार का जवाब ज्योतिरादित्य ने ट्वीट के जरिए दिया। उन्होंने कहा कि ‘हे प्रभु महाकाल ! दिग्विजय सिंह जी जैसे देश विरोधी और मध्यप्रदेश के बंटाढार भारत में पैदा न हों।’ इसी बात को ज्योतिरादित्य के बाकी समर्थकों ने भी दोहराया। जाहिर है कि दिग्विजय अभी भी कांग्रेस की पिछली सरकार गिराए जाने की फांस को नहीं भूले हैं। वो इसके लिए ज्योतिरादित्य की बगावत को जिम्मेदार मानते हैं। जबकि ज्योतिरादित्य उसे कांग्रेस में अपने अपमान का बदला समझते हैं। इस जुबानी जंग पर भाजपा के वरिष्ठ नेता कैलाश विजयवर्गीय ने यह कहकर नसीहत दी कि दिग्विजय व ज्योतिरादित्य को भाषा की मर्यादा का ख्याल रखना चाहिए।
असल मुद्दों की कमी
बहरहाल एक बात साफ है। चुनाव होने में अभी सात महीने हैं। लेकिन नेताओं के सामने चुनावी माहौल का टेम्पो कायम रखने के लिए मुददों का टोटा अभी से महसूस होने लगा है। ऐसे में निरर्थक बातों को हवा देने की होड़ मची है। गर्भ धारण के दो माह बाद धर्म में तो ‘अनवलोभन संस्कार’ का उपाय है, लेकिन राजनीति में इसका पर्याय क्या है?