छत्तीसगढ़ में मुख्य लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच, दोनों घेरने की कोशिश में, बसपा-छजकां का सीमित दायरा, ''भगवा'' को फायदे की आस 

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Sushil Trivedi
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छत्तीसगढ़ में मुख्य लड़ाई बीजेपी और कांग्रेस के बीच, दोनों घेरने की कोशिश में, बसपा-छजकां का सीमित दायरा, ''भगवा'' को फायदे की आस 

RAIPUR. कर्नाटक की विधानसभा के चुनाव के लिए भारत निर्वाचन आयोग ने 29 मार्च को यह घोषणा की कि वहां चुनाव 10 मई को होंगे और उसकी आधिकारिक अधिसूचना 13 अप्रेल को जारी की जाएगी। कर्नाटक को लेकर आमतौर पर यह धारणा बन रही है कि वहां भाजपा को नुकसान हो सकता है और कांग्रेस बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। ऐसी स्थिति में वहां जेडीएस की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। कर्नाटक के चुनाव की घोषणा के बाद से पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा राजनीतिक माहौल बना है कि मानो यहां चुनाव नवंबर में नहीं, बल्कि उसके पहले ही होने की घोषणा हो गई हो। पिछले कई दशकों में चुनाव पूर्व अप्रेल के महीने में कभी भी इतनी राजनीतिक सक्रियता नहीं रही। इस सक्रियता का आधार धार्मिक और सांप्रदायिक उत्तेजना भी रही। आम नागरिकों के लिए सामाजिक रूप से यह स्थिति बेहद कष्टकारक और चिंता का विषय बन गई है।





प्रदेश में हिंसा-अपराध की घटनाओं से प्रशासन की छवि को आघात पहुंचा 





अप्रैल माह में बेमेतरा जिले में दो किशोर बालकों के बीच का एक मामूली विवाद एक ऐसे सांप्रदायिक हिंसक घटनाचक्र में परिवार्तित हो गया कि जिससे प्रदेश का प्रशासन भौंचक रह गया। पूरे देश में शांति के द्वीप रूप में ख्यात और सरलता, सहजता के साथ भाईचारे को निभाने वाले छत्तीसगढ़ में पहली बार राजनीतिक आयाम वाला सांप्रदायिक दंगा हुआ। इस दंगे को लेकर पूरे प्रदेश में बंद आंदोलन आयोजित किया गया। इस बंद की वजह से जगह-जगह सामान्य जन को कष्टकर स्थिति का सामना करना पड़ा। यद्यपि पिछले कुछ माहों से प्रदेश के मैदानी इलाकों को धार्मिक उन्माद की घटनाएं लगातार हो रही हैं किंतु उनका इतना जहरीला और घातक रूप नहीं रहा जितना कि बेमेतरा की हिंसा का हुआ। बेमेतरा की घटना ने यह स्पष्ट संकेत दिया है कि आने वाले समय में चुनावी लाभ लेने के लिए धर्म, जाति, संप्रदाय और आरक्षण के मामलों को लेकर बड़े तथा गंभीर परिणाम वाले घटना चक्रों को अंजाम दिया जा सकता है। प्रदेश में बढ़ती हिंसा और अपराध की घटनाओं से प्रशासन की छवि को आघात पहुंचा है। इन घटना चक्रों से मैदानी इलाकों में कांग्रेस को चुनाव की दृष्टि से हानि पहुंच सकती है।





चुनावी राजनीति का मुख्य केन्द्र बस्तर संभाग में सर्वाधिक ध्यान





चुनावी राजनीति का मुख्य केन्द्र बस्तर संभाग बना रहा जहां राजनेताओं ने अपना सर्वाधिक ध्यान केन्द्रित किया हुआ है। यह उल्लेखनीय है कि मार्च के अंतिम सप्ताह में भारत के गृहमंत्री अमित शाह सीआरपीएफ के 84वां स्थापना दिवस समारोह में भाग लेने के लिए दो दिवसीय यात्रा पर बस्तर आए थे। कभी भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़े खतरे के रूप में पहचाने जाने वाले नक्सलगढ़ बस्तर में रात्रि विश्राम कर उन्होंने बेहतर सुरक्षा व्यवस्था स्थापित होने का संदेश दिया। अमित शाह ने इस यात्रा के दौरान कोई चुनावी सभा नहीं की और न कोई राजनीतिक वक्तव्य दिया। वे छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ भाजपा नेताओं से भी दूर रहे। लेकिन उन्होंने सीआरपीएफ के औपचारिक कार्यक्रम में जिस तरह का संबोधन किया वह छत्तीसगढ़ में राजनीतिक दृष्टि से संभावित कठोर प्रशासनिक कार्रवाई के संकेत देने वाला था।





अब देखना होगा कि ये असंतुष्ट क्या कदम उठाते हैं





शायद उसी यात्रा का राजनीतिक प्रति उत्तर देने के लिए इसी सप्ताह कांग्रेस ने बस्तर में ‘भरोसे का सम्मेलन’ का एक बड़ा आयोजन किया। इस सम्मेलन में कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी को लाकर नेहरू-गांधी परिवार से बस्तर से पुराने संबंधों को मजबूत करने की कोशिश की गई। इसके साथ ही आदिवासी संस्कृति के प्रति श्रद्धा और समर्थन बतलाने के लिए कई शासकीय घोषणाएं की गईं। इस सम्मेलन के पहले राज्य के एक मंत्री द्वारा बस्तर में शराब बंदी न करने की अनौपचारिक घोषणा का भी राजनीतिक उद्देश्य बड़ा स्पष्ट रहा है। इस सम्मेलन में प्रियंका गांधी ने जिस तरह का भाषण दिया उससे छत्तीसगढ़ में भूपेश बघेल के नायकत्व के प्रति कांग्रेस हाई कमांड के निरंतर विश्वास और पूर्ण समर्थन की पुष्टि हुई। इससे कांग्रेस के असंतुष्ट तत्वों को स्पष्ट संकेत मिल गया है कि छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं भूपेश बघेल। अब देखना होगा कि ये असंतुष्ट क्या कदम उठाते हैं?





सरगुजा में कमजोर पड़ती कांग्रेस को एक और झटका लगा है 





इस दौरान बस्तर के साथ-साथ, सरगुजा संभाग भी राजनीतिक दृष्टि से गरम बना रहा। वहां एक कांग्रेसी विधायक ने, जो अपने असंयत और विवादास्पद बयानों के लिए जाने जाते हैं, सहकारी बैंक के कर्मचारियों की पिटाई कर भाजपा के हाथ में एक बड़ा मुद्दा दे दिया। यह मामला इतना बढ़ा कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को हस्तक्षेप करना पड़ा और संबंधित विधायक को कर्मचारियों से माफी मांगनी पड़ी। बहरहाल, कर्मचारियों की हड़ताल के कारण आम लोगों को जो असुविधा उठानी पड़ी उससे सरगुजा में क्रमशः कमजोर पड़ती कांग्रेस को एक और झटका लगा है। 





भाजपा इन प्रदर्शनों से सरकार के विरुद्ध असंतोष जताना चाहती है





भाजपा निरंतर यह प्रयास कर रही है कि केंद्रीय योजनाओं के क्रियान्वयन में देरी और अक्षमता प्रदर्शित करने के मामलों को लेकर लगातार तेज प्रदर्शन आयोजित किए जाए। भाजपा इन प्रदर्शनों के द्वारा छत्तीसगढ़ सरकार के विरुद्ध असंतोष और रोष जागृत करना चाहती है। इस संदर्भ में विशेष कर ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’, ‘स्मार्ट सिटी’ और ‘जल जीवन मिशन’ में लक्ष्यपूर्ति में पिछड़ने को मुद्दा बनाया जा रहा है। राज्य सरकार ने युवाओं को बेरोजगारी भत्ता देने की घोषणा की है किंतु उसका लाभ बहुत सीमित संख्या में ही युवाओं को मिल पायेगा। इस आधार पर भाजपा युवाओं को आगे लाकर जोशपूर्ण आंदोलन कर रही है। इधर राज्य में विभिन्न विभागों में नियुक्त अनियमित कर्मचारियों को नियमित करने और संविदा या ठेके पर काम कर रहे कर्मचारियों को अधिक सुविधाएं देने की मांग को लेकर कर्मचारियों द्वारा लगातार पूरी शक्ति के साथ लंबे समय से आंदोलन किया जा रहा है। भाजपा ने इन कर्मचारियों के प्रति अपना समर्थन देकर उनके आंदोलनों को तेज कर दिया है।





संभावना है कि सरकार के भ्रष्टाचार के मामले पर बीजेपी बड़ा अभियान चलाए 





छत्तीसगढ़ में धान और चावल के व्यापार को लेकर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहते हैं। जहां कांग्रेस पिछले भाजपा शासन के दौरान नागरिक आपूर्ति निगम में हुए 36,000 करोड़ रु. के घोटाले को लेकर रमन सिंह और कुछ आईएएस अधिकारियों के विरुद्ध जांच की मांग कर रही है, वहीं अब रमन सिंह ने सस्ते अनाज की सरकारी दुकानों से वितरित होने वाले चावल के स्टॉक में हुए घोटोले को लेकर कांग्रेस सरकार पर गंभीर आरोप लगाए है। रमन सिंह का कहना कि खाद्य विभाग के इस्पेक्टरों और अधिकारियों की मिलीभगत से 600 करोड़ रु. के चावल घोटाले को अंजाम दिया गया है। उन्होंने सरकार पर आरोप लगाया है कि इस घोटाले की जानकारी होने पर भी लंबे समय से सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की है। यह पूरी संभावना है कि कांग्रेस सरकार के भ्रष्टाचार का मामले रूप में इस मुद्दे पर भाजपा एक बड़ा अभियान चलाए।





कांग्रेस-भाजपा दोनों ही बसपा के वोटरों को अपने पक्ष में करने में लगे हैं





यूं तो छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा ही मुख्य प्रतिद्वंद्वी दल हैं किंतु बहुजन समाज पार्टी का अपना एक निश्चित समर्थक वर्ग है। इस समय बहुजन समाज पार्टी राजनीतिक दृष्टि से निष्क्रिय दिखाई दे रही है। उसके विधायक और कुछ नेता अन्य दल में जा सकते हैं। इस लिहाज से कांग्रेस और भाजपा दोनों ही दल बहुजन समाज पार्टी के समर्थक वोट बैंक को अपने-अपने पक्ष में करने में लगे है। इसी तरह अमित जोगी की जनता कांग्रेस छत्तीसगढ पार्टी भी मैदान में नजर नहीं आ रही है। आम आदमी पार्टी को यह लग रहा है कि बहुजन समाज पार्टी और जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के मैदान से लगभग बाहर होने का लाभ उसे मिल जाएगा। बहरहाल, यह संभावना है कि इस स्थिति का लाभ किसी अन्य पार्टी की अपेक्षा भाजपा को ज्यादा मिले। 





इस समय छत्तीसगढ़ में जो सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियां चल रही हैं उनसे यह संकेत मिल रहा है कि कांग्रेस और भाजपा दस बिन्दुओं के स्केल में 5.5 बिन्दु और 4.5 बिंदु के स्तर पर हैं।



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