जयपुर से मनीष गोधा की रिपोर्ट
दिल्ली के एआईसीसी (AICC) मुख्यालय में गुरुवार को राजस्थान कांग्रेस की चार घंटे चली बैठक के बाद पार्टी के असंतुष्ट नेता सचिन पायलट के बयान से पार्टी खुश है। पार्टी के नेताओं का दावा है कि अब सब ठीक हो गया है और राजस्थान कांग्रेस में कोई खींचतान नहीं बची है। यानी इस बैठक से पार्टी जो चाहती थी, वह मिल गया है, लेकिन सवाल यह है कि खुद सचिन को क्या मिला? क्या उन्होंने जो तीन मांगें उठाई थीं, उन पर आधी-अधूरी कार्रवाई से वे संतुष्ट हैं ? और क्या पार्टी और अपनी ही सरकार से उनकी अदावत सिर्फ इन तीन मांगों तक ही सीमित थी? ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि 29 मई को दिल्ली में जो बैठक हुई थी, उसके बाद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सहमति के एक फार्मूले की बात कही जा रही थी, लेकिन पार्टी ने यह फार्मूला ना तब उजागर किया और ना अभी उसकी कोई बात कही गई। यानी यह बात अभी भी स्पष्ट नहीं है कि पार्टी सचिन को राजस्थान में क्या भूमिका देने जा रही है? ऐसे में क्या वास्तव में यह माना जा सकता है कि दोनों नेताओं के बीच साढे़ चार साल से चल रही खींचतान का पटाक्षेप हो गया है और अब पार्टी में सब ठीक है?
आखिर क्यों लड़ रहे थे सचिन
अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच अदावत को समझने के लिए साढे़ चार साल पहले जाना होगा, जब सचिन पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व में ही पार्टी ने बहुमत के आसपास की सीटें जीत कर राजस्थान में सरकार बनाई थीं। चूंकि वे पार्टी के अध्यक्ष थे, इसलिए सीएम पद के वे स्वाभाविक उम्मीदवार माने जा रहे थे। गुर्जर बाहुल्य पूर्वी राजस्थान ने सचिन के चेहरे पर कांग्रेस को वोट दिया और भाजपा को वहां से सिर्फ एक सीट मिल पाई। इसके बावजूद सीएम की कुर्सी अशोक गहलोत को मिली और पायलट को डिप्टी सीएम पद से संतोष करना पड़ा।
वहां से जो खटास शुरू हुई वो पिछले पूरे साढे़ चार साल में खत्म ही नहीं हुई। सरकार बनने के बाद डेढ़ साल बाद ही सचिन ने बगावत का झंडा उठा लिया और जुलाई 2020 में अपने कुछ साथी विधायकों के साथ मानेसर चले गए। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का सूचना तंत्र बेहद मजबूत है और उन्होंने प्रदेश में कोविड के संकट के बावजूद सरकार को राजनीतिक संकट से बाहर निकाल लिया। पार्टी में वर्चस्व की यही लड़ाई पिछले साढे़ चार साल से सचिन लड़ रहे थे, लेकिन गहलोत जैसे द़क्ष राजनीतिज्ञ के सामने वे सफल नहीं हो पाए।
इंतजार से थके सचिन ने दिए बगावत के संकेत
पार्टी के फैसले के इंतजार से थके सचिन ने इस साल अप्रेल और मई में अपनी ही सरकार के खिलाफ पहले एक दिन का अनशन और फिर पांच दिन की यात्रा निकाली। 11 मई को इस यात्रा की समाप्ति के बाद ही सचिन ने तीन मांगें सरकार से की थीं
- राजस्थान लोक सेवा आयोग (RPSC) को भंग कर इसका पुनर्गठन किया जाए।
पायलट ने यह मांगें उठाते हुए सरकार को मई अंत तक का अल्टीमेटम दिया था और चेतावनी दी थी कि मांगें नहीं मानी गईं तो वे राज्यव्यापी आंदोलन करेंगे। पार्टी आलाकमान ने मई का महीना यानी अल्टीमेटम का समय पूरा होने से पहले पायलट और गहलोत को बुलाकर बात की और इसके बाद सचिन का आंदोलन टल गया। हालांकि उनकी मांगों पर गहलोत ने पूरे जून के दौरान कोई कार्रवाई नहीं की। इस दौरान भी सचिन इंतजार ही करते रहे और इस दौरान अपने अगले कदम के बारे में लोगों से सलाह मश्विरा करते रहे। इस बीच 11 जून भी आई जब यह माना जा रहा था सचिन नई पार्टी बनाने से संबंधित कोई बड़ा ऐलान कर सकते हैं, लेकिन हुआ कुछ नहीं।
अब क्या हुआ
पार्टी सूत्रों का कहना है कि सचिन को उनके शुभचिंतकों और पार्टी आलाकमान से यही मश्विरा मिला है कि पार्टी छोड़कर जाने से कुछ हासिल नहीं होगा। पार्टी में बने रहोगे तो फिर भी कुछ उम्मीद है, क्योंकि भविष्य के नेता आप ही हो। माना जा रहा है कि भविष्य की इसी उम्मीद के सहारे सचिन ने “बीती तांहि बिसार दे, आगे की सुध ले“ की कहावत पर अमल किया है। वरना देखा जाए तो ना तो उनकी मांगों पर कुछ ठोस कार्रवाई हुई है और ना उन्हें क्या मिलने वाला है, यह स्पष्ट हुआ है।
क्या हुआ है सचिन की तीनों मांगों पर
1 - राजस्थान लोकसेवा आयोग को भंग किया जाए-संवैधानिक संस्था होने के कारण यह आसान नहीं था, गहलोत ने मुख्य सचिव को निर्देश दिए हैं कि संस्था के काम में पारदर्शिता लाने के लिए काम करें।
2 - पेपर लीक से प्रभावित अभ्यर्थियों को मुआवजा दिया जाए- यह अव्यवहारिक मांग है। इसकी जगह गहलोत ने पेपर लीक को रोकने के लिए बनाए गए कानून में उम्र कैद का प्रावधान डालने की बात कही है।
3- वसुंधरा राजे के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच की जाए- इस पर गहलोत की ओर से अभी तक कोई एक्शन सामने नहीं आया है। सचिन ने ही दावा किया है कि पार्टी और सरकार काम करेगी और हम भ्रष्टाचार को मुद्द बनाएंगे।
क्या पिक्चर अभी बाकी है?
यानी साफ जाहिर हो रहा है कि भविष्य की उम्मीद पर सचिन ने स्थितियों को जैसे-तैसे स्वीकार तो कर लिया है, लेकिन पूरी तरह स्थिति तभी साफ होगी, जब पार्टी की ओर से उन्हें दी जाने वाली जिम्मेदारी की बात स्पष्ट होगी। जानकारों का मानना है कि पार्टी उन्हें दी जाने वाली जिम्मेदारी की बात पर शायद इसीलिए अभी कुछ स्पष्ट नहीं कर रही है कि इससे बनती बात और बिगड़ ना जाए। वरना जैसा छत्तीगढ़ में टीएस सिंहदेव के मामले में किया गया, वैसा ही एक स्पष्ट फैसला यहां भी किया जा सकता था। यानी यह अभी भी नहीं माना जा सकता कि राजस्थान कांग्रेस की खींचतान वाली यह पिक्चर खत्म हो गई है।
सचिन के हाथ मुस्कुराहट ही लगी है
वरिष्ठ आर्थिक और राजनीतिक विश्लेषण अनिल शर्मा का मानना है कि इस पूरी कवायद में सचिन पायलट के हाथ अभी भी खाली ही दिख रहे हैं। उन्होंने कहा कि मीटिंग के बाद सचिन जब मीडिया से बात कर रहे थे तो काफी मुस्कुरा रहे थे और उनकी मुस्कुराहट देखकर मुझे एक गीत याद आ रहा था कि तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो क्या गम है जिसको छुपा रहे हो। पार्टी में पिछले साढ़े 4 साल में जो कुछ हो रहा था वह तीन मांगों के लिए नहीं हो रहा था। और ये मांगें भी पूरी तरह नहीं मानी गई हैं। पार्टी उन्हें क्या जिम्मेदारी देने वाली है, यह बात अभी तक भी साफ नहीं है इसलिए जब तक पार्टी की बात सामने नहीं आ जाती, तब तक यही माना जाएगा कि सचिन बहुत कुछ हासिल नहीं कर पाए हैं।