BHOPAL. साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा के चुनाव होना हैं। इस बार उम्मीदवारों के खर्च की सीमा 28 लाख रुपए से बढ़ाकर 40 लाख रुपए कर दी गई है। अनुमान है कि अकेले मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में इस बार 2,500 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होने की संभावना है।
निर्वाचन आयोग की दिल्ली से आई टीम ने मुख्य सचिव, डीजीपी और अन्य अधिकारियों से चर्चा की। बैठक में सामने आया कि 2018 में हुए सीजर को आधार नहीं बनाया जाए। चुनाव आयोग ने प्रदेश के 52 जिलों के कलेक्टर और एसपी से चुनाव तैयारियों की चर्चा के बाद आयकर विभाग के अफसरों से चर्चा की और खर्च पर निगरानी रखने को कहा है।
6 या 8 अक्टूबर को जारी हो सकती है अधिसूचना
मध्यप्रदेश की 15वीं विधानसभा का गठन 13 दिसंबर 2018 को हुआ था। इस लिहाज से 13 दिसंबर के पहले 16वीं विधानसभा का गठन जरूरी है। आयोग का कमीशन जल्द मप्र आ सकता है। माना जा रहा है कि 6 से 8 अक्टूबर के बीच चुनाव कार्यक्रम जारी हो जाएगा। वोटिंग 25 से 30 नवंबर के बीच संभावित है। चुनावों में अवैध धन का उपयोग न हो इसलिए सतर्कता बरती जा रही है। आयोग ने बुधवार को आयकर, प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), नारकोटिक्स, सेंट्रल जीएसटी, स्टेट जीएसटी, एयरपोर्ट अथॉरिटी, स्टेट सिविल एविएशन, सीआईएसएफ और आरपीएफ अफसरों के साथ बैठक की।
31 जुलाई तक कर दिए जाएंगे ट्रांसफर
इधर मुख्य सचिव इकबाल सिंह बैंस ने कहा कि चुनाव आयोग के जो भी निर्देश होंगे, उनका पालन किया जाएगा। आयोग के निर्देशानुसार तीन साल से जो भी अधिकारी एक जगह पर हैं उनके ट्रांसफर और होम डिस्ट्रिक्ट वाले अफसरों के ट्रांसफर अन्य स्थानों पर 31 जुलाई तक कर दिए जाएंगे। डीजीपी सुधीर सक्सेना ने कहा कि बालाघाट, डिंडौरी और मंडला जिले में अतिरिक्त बल की जरूरत होगी। इस पर चुनाव आयोग ने बल देने को कहा।
इधर , पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा है कि चुनाव में उम्मीदवार का तो चुनाव खर्च तय है, लेकिन पार्टी का खर्च तय नहीं है। इससे जनता में खर्च को लेकर भ्रम होता है। चुनावों में राजनीतिक दल का चुनाव खर्च भी तय होना चाहिए। वर्तमान स्थिति में राजनीतिक दल का खर्च तय नहीं है, जिससे उनका खर्च सामने नहीं आ पाता।