JAIPUR. राजस्थान की राजनीति में लाल डायरी का तूफान लाने वाले राजेन्द्र गुढ़ा झुंझुनूं जिले की उदयपुरवाटी सीट से विधायक हैं। राजनीति में उनका प्रवेश 2008 में हुआ था, जब उन्होंने इसी सीट से बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत कर विधानसभा में पहुंचे। उस समय बसपा के कुल छह विधायक जीते थे और गुढ़ा सहित सभी कांग्रेस में शामिल हो गए थे, क्योंकि कांग्रेस को उस समय बहुमत से पांच सीट दूर थी। गहलोत ने गुढ़ा को मंत्री बनाकर साथ देने का ईनाम दिया था।
इसके बाद 2013 में गुढ़ा को कांग्रेस ने इसी सीट से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वे 11 हजार वोटों से हार गए। इसके बाद 2018 में गुढ़ा ने फिर बसपा से टिकट लिया और यह संयोग कहें या कुछ और लेकिन इस बार भी उन सहित बसपा के छह विधायक जीते और सभी फिर से कांग्रेस में शामिल हो गए, हालांकि इस बार इन्हें ईनाम देर से मिला और इस बार इन विधायकों के सम्बन्ध भी कांग्रेस से बहुत अच्छे नहीं रहे। खासकर गुढ़ा जो इनका नेतृत्व कर रहे थे, उनकी नाराजगी गाहे-बगाहे सामने आती रही। गहलोत ने इन्हें 2021 नवंबर में मंत्री पद दिया, लेकिन ये अपने विभाग से खुश नहीं थे। इन्हें रमेश मीण के अधीन पंचायतीराज विभाग में राज्यमंत्री बनाया गया, जबकि ये खुद को रमेश मीणा से सीनियर मानते हैं। ये नाराजगी इस हद तक रही कि कुछ दिनों तक तो इन्होंने काम ही नहीं सम्भाला। बाद में काम तो सम्भाला, लेकिन नाराजगी के सुर बने रहे और अंततः ये सचिन पायलट के गुट में शामिल हो गए।
गुढ़ा को आखिर क्या फायदा मिला
जानकार मानते हैं कि इस पूरे प्रकरण से गुढ़ा को व्यक्तिगत तौर पर अच्छा फायदा मिला है। वे कांग्रेस के साथ बने रहने के इच्छुक नहीं थे और पार्टी ने उन्हें मंत्री पद से हटा कर उन्हें जनता की सहानुभूति हासिल करने का मौका दे दिया। वे दावा भी करते हैं कि उन्हे किसी पार्टी की जरूरत नहीं है। वे अपने चेहरे पर चुनाव लड़ते हैं। इस बार भी वे पिछले दिनों एआईएमआईएम के प्रमुख ओवेसी से मुलाकात कर चुके हैं। इस मुलाकात को काफी अहम माना गया था। हालांकि बसपा यह कह चुकी है कि उनके लिए हमारे दरवाजे बंद हैं और भाजपा में जाने से खुद गुढ़ा इनकार कर चुके हैं। ऐसे में माना जा रहा है कि वे निर्दलीय ही चुनाव लड़ेंगे और जनता की सहानुभूति के सहारे अपनी जीत सुनिश्चित करने की कोशिश करेंगे।