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Gwalior. प्रख्यात संतूर वादक भजन सोपोरी (Bhajan Sopori) नहीं रहे। उन्होंने 2 जून (गुरुवार) को गुरुग्राम के एक निजी अस्पताल में अंतिम सांस ली। वे 74 साल के थे। सरकार ने उन्हें पद्म सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। उनका जन्म 1948 में श्रीनगर में हुआ था। उनका पूरा नाम भजन लाल सोपोरी है। इनके पिता पंडित एसएन सोपोरी भी एक संतूर वादक थे।
तानसेन समारोह में थे अत्यंत भावुक
दिसंबर 2021 में जब भजन सोपोरी ग्वालियर तानसेन समारोह में कालिदास अलंकरण लेने ग्वालियर आए, तब वे अत्यंत प्रसन्न और भावुक हुए।इस दौरान उन्होने कहा था कि आज का दिन जीवन का बहुत कीमती है, यह में बता नहीं सकता। आज का सम्मान (29 दिसंबर) ग्वालियर की उस धरा पर मिल रहा है, जहां संगीत की गंगा बहती है, और उस आयोजन (तानसेन समारोह) में जो भारतीय संगीत का राष्ट्रीय पर्व है, उस जगह पर जहां संगीत सम्राट तानसेन स्वयं सोए हुए हैं।
28 दिसंबर को आए थे ग्वालियर
भजन सोपोरी यूं तो कई बार तानसेन समारोह में अपनी संतूर की मधुर धुन से लोगों को मंत्रमुग्ध कर चुके थे। लेकिन जब वे विगत दिसंबर में आए तो कुछ खास बात थी। वे अपने परिवार के साथ यहां पहुंचे थे। क्योंकि इस अलंकरण समारोह का उनका पूरा परिवार साक्षी बनना चाहता था। हालांकि उम्र का असर उन पर साफ दिखाई दे रहा था। लेकिन इस सम्मान ने उनको एकदम तरोताजा कर दिया। वे बेहद सादगी से जीवन जीते थे और ये सादगी उनकी मुस्कराहट में भी झलकती थी।
संतूर की धुन जैसे ही मधुर व्यक्तित्व के धनी थे
मूलतः कश्मीरी भजन सोपोरी को तानसेन समारोह के दूसरे दिन यानी 29 मई की शाम एक भव्य समारोह में सम्मानित किया, और वहां मौजूद संगीत प्रेमियों की तालियों की गड़गड़ाहट गूंजी तो, पहले तो उन्होंने अपनी मुस्कराहट से सभी का अभिवादन किया। और फिर वे एकटक भावुक होकर श्रोताओं को देखते रहे। उन्हें संभागीय आयुक्त आशीष सक्सेना और उस्ताद अलाउद्दीन खान संगीत एवं कला अकादमी के सहायक निदेशक राहुल रस्तोगी ने ये सम्मान दिया। भजन सोपोरी अपने संतूर की धुन जैसे ही मधुर व्यक्तित्व के धनी थे। जम्मू- कश्मीर में जन्में भजन नाम की तरह पवित्र संगीतज्ञ और साधक थे। उन्हें कश्मीर और जम्मू का सांस्कृतिक पुल कहा जाता था।
भारतीय वाद्य को पहली बार दिलाया मंच
वे 1950 का वर्ष था। उन्होंने संतूर के साथ पहली बार किसी भारतीय वाद्य यंत्र को शास्त्रीय संगीत के मंच पर स्थापित किया। इसीलिए उन्हें कोई संतूर का संत तो कोई स्ट्रिंग्स का महाराजा कहता था। उन्होंने बाज़ संतूर की रचना की। कश्मीर के प्रसिद्द सूफी घराने से ताल्लुक रखने वाला सोपोरी परिवार विलक्षण भी है जो 300 सालों से संतूर की साधना कर रहा है। लेकिन भजन सोपोरी ने उसे न केवल राष्ट्र बल्कि दुनिया भर के संगीत रसिकों तक पहुंचकर उन्हें अपना दीवाना बनाया। इसमे उन्होंने अनेक नवाचार किए।
ये मिले सम्मान
अपने विशाल योगदान के लिए पंडित भजन सोपोरी को अनेक सम्मान मिले। इसमें प्रतिष्ठित पद्म श्री, संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार, जम्मू-कश्मीर सरकार लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड 2016, जम्मू-कश्मीर राज्य पुरस्कार 2007 समेत कई अन्य पुरस्कार शामिल हैं। राष्ट्रीय कालिदास सम्मान की स्थापना 1980 में हुई थी और तब से ये भारतीय शास्त्रीय संगीत के कुछ महान लोगों जैसे पंडित कुमार गंधर्व, पंडित रविशंकर, उस्ताद अली अकबर खान, पंडित किशन महाराज, पंडित वी.जी. जोग, उस्ताद अल्लारखा, पंडित जसराज, पंडित छन्नूलाल मिश्रा के बाद भजन सोपोरी को दिया गया था।