आदिपुरुष मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी, हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों ले रहे हैं, शुक्र है उन्होंने कानून नहीं तोड़ा

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Pratibha Rana
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आदिपुरुष मामले में हाईकोर्ट की टिप्पणी, हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों ले रहे हैं, शुक्र है उन्होंने कानून नहीं तोड़ा

Lucknow. फिल्म आदिपुरुष के आपत्तिजनक डायलॉग के मामले में लगाई गई याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मंगलवार (27 जून) को सुनवाई की। कोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा कि हिंदुओं की सहनशीलता की परीक्षा क्यों ली जाती है? शुक्र है उन्होंने (हिंदुओं ने) कानून नहीं तोड़ा। कोर्ट ने भगवान राम और भगवान हनुमान सहित धार्मिक पात्रों को आपत्तिजनक तरीके से पेश करने के लिए फिल्म आदिपुरुष के निर्माताओं की आलोचना भी की। कोर्ट ने फिल्म के सह-लेखक मनोज मुंतशिर शुक्ला को मामले में पक्षकार बनाने का निर्देश दिया। साथ ही उन्हें नोटिस जारी कर एक सप्ताह के भीतर जवाब देने को कहा है।





जिन्होंने सिर्फ हॉल बंद करवाया, वो कुछ और भी कर सकते थे





हाईकोर्ट ने आगे कहा- जो सज्जन हैं उन्हें दबा देना सही है क्या? यह तो अच्छा है कि यह एक ऐसे धर्म के बारे में है, जिसके मानने वालों ने कोई पब्लिक ऑर्डर प्रॉब्लम क्रिएट नहीं की। हमें उनका आभारी होना चाहिए। हमने न्यूज में देखा कि कुछ लोग सिनेमा हॉल (जहां फिल्म प्रदर्शित हो रही थी) गए थे और उन्होंने वहां जाकर लोगों को सिर्फ हॉल बंद करने के लिए मजबूर किया, वे कुछ और भी कर सकते थे। कोर्ट ने कहा- ये याचिका इस बारे में है, जिस तरह से ये फिल्म बनाई गई है। कुछ धर्मग्रंथ हैं, जो पूजनीय हैं। कई लोग घर से निकलने से पहले रामचरित मानस पढ़ते हैं।





कोर्ट ने सेंसर बोर्ड पर भी सवाल उठाए





याचिकाकर्ता प्रिंस लेनिन और रंजना अग्निहोत्री की याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस राजेश सिंह चौहान और श्रीप्रकाश सिंह की बेंच ने कहा- क्या सेंसर बोर्ड ने अपनी जिम्मेदारी निभाई है भगवान हनुमान और सीता मां को ऐसा दिखा कर समाज में क्या संदेश देना चाहते हैं? सॉलिसिटर जनरल से जवाब मांगते हुए बेंच ने कहा- यह गंभीर मामला है। क्या आप सेंसर बोर्ड से पूछ सकते हैं कि यह कैसे किया गया, क्योंकि राज्य सरकार इस मामले में कुछ नहीं कर सकती।





क्या डिस्क्लेमर लगाने वाले लोग देशवासियों को बेवकूफ समझते हैं?





बेंच ने कहा- भगवान हनुमान, भगवान राम, लक्ष्मण और सीता मां को ऐसे चित्रित किया गया जैसे कि वे कुछ है ही नहीं। फिल्ममेकर्स के इस तर्क के संबंध में कि फिल्म में कहानी को लेकर एक डिस्क्लेमर जोड़ा गया था, क्या डिस्क्लेमर लगाने वाले लोग देशवासियों और युवाओं को बेवकूफ समझते हैं? आप भगवान राम, लक्ष्मण, भगवान हनुमान, रावण, लंका दिखाते हैं और फिर कहते हैं कि यह रामायण नहीं है?





याचिकाकर्ता के वकील बोले- फिल्म में मां सीता का अपमान हुआ





याचिकाकर्ता प्रिंस लेनिन के वकील ने कहा- सिनेमैटोग्राफी अधिनियम किसी भी फिल्म को सर्टिफिकेट देने से पहले सीबीएफसी से राय लेता है। फिल्म साफ-सुथरी होनी चाहिए। महिलाओं का अपमान नहीं होने देना चाहिए। फिल्म में मां सीता का अपमान किया जा रहा है। मैंने सम्मान के कारण सीता की तस्वीरें (जैसा कि फिल्म में दिखाया गया है) संलग्न नहीं की हैं। मैं ऐसा नहीं कर सकता।





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वकील ने कहा- पहले भी फिल्मों में देवी-देवताओं का अपमान हुआ





दूसरे याचिकाकर्ता रंजना अग्निहोत्री के वकील ने कहा- ऐसा पहली बार नहीं हुआ है। ऐसा पीके, मोहल्ला अस्सी, हैदर आदि फिल्मों में भी हो चुका है। दोनों याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से मांग किया कि फिल्म से विवादित सीन हटाया जाए।





एक दिन पहले कहा था- रामायण-कुरान जैसे धार्मिक ग्रंथों को तो बख्शिए





फिल्म आदिपुरुष पर रोक की मांग वाली याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में सोमवार (26 जून) को सुनवाई के दौरान सेंसर बोर्ड और फिल्म के निर्माता-निर्देशक को फटकार लगाई थी। लखनऊ बेंच ने सेंसर बोर्ड की तरफ से पेश हुए वकील अश्विनी सिंह से पूछा था- क्या करता रहता है सेंसर बोर्ड? सिनेमा समाज का दर्पण होता है। आने वाली पीढ़ियों को क्या सिखाना चाहते हो? क्या सेंसर बोर्ड अपनी जिम्मेदारियों को नहीं समझता है?



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