The Diplomat Review: जॉन अब्राहम और निर्देशक शिवम नायर की जोड़ी ने एक बार फिर ‘The Diplomat’ में अपने इम्प्रेससिव परफॉरमेंस से दर्शकों को आकर्षित करने की कोशिश की है। ‘मद्रास कैफे’ के बाद जॉन अब्राहम एक गंभीर भूमिका में नजर आए हैं, लेकिन क्या यह फिल्म दर्शकों की उम्मीदों पर खरी उतरती है? आइए जानते हैं...
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फिल्म की कहानी
The Diplomat की कहानी एक सच्ची घटना से इंस्पायर्ड है। फिल्म एक भारतीय महिला उज्मा की कहानी दिखाती है, जो एक पाकिस्तानी व्यक्ति से ऑनलाइन संपर्क में आती है और प्रेमजाल में फंसकर पाकिस्तान चली जाती है। वहां उसे धोखा मिलता है और वापस लौटने का कोई रास्ता नहीं दिखता। इस संकट से उसे निकालने की जिम्मेदारी जे पी सिंह (जॉन अब्राहम) उठाते हैं। कहानी वही है जो पहले भी कई बार मीडिया और इंटरव्यू में बताई जा चुकी है, लेकिन इसे देखने का अनुभव कितना नया है, यही सवाल उठता है।
जॉन अब्राहम की परफॉर्मेंस
52 साल के जॉन अब्राहम अपने किरदारों के साथ लगातार प्रयोग कर रहे हैं। इस बार भी उन्होंने जे पी सिंह का किरदार निभाकर दर्शकों को गंभीर और संतुलित अभिनय दिखाने की कोशिश की है। मसाला फिल्मों से हटकर, उन्होंने यहां एक परिपक्व किरदार में खुद को ढालने का प्रयास किया है। जॉन का यह किरदार ‘पठान’ के जिम से बिल्कुल अलग है और कहीं ना कहीं ‘मद्रास कैफे’ के उनके रोल की याद दिलाता है। हालांकि, उनकी अदाकारी कुछ जगहों पर थोड़ी ठहरी हुई लगती है, लेकिन ओवरआल फॉर्म से उन्होंने अपने अभिनय में ईमानदारी रखी है।
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फिल्म की कमजोरियां
फिल्म की सबसे बड़ी समस्या यही है कि यह कोई नया एक्सपीरियंस नहीं देती। इसकी कहानी और घटनाएं दर्शकों को पहले से पता हैं, जिससे सरप्राइज एलीमेंट की कमी महसूस होती है। दर्शकों को ऐसे किरदार और घटनाएं चाहिए जो उन्हें चौंका दें, लेकिन ‘The Diplomat’ में यह फैक्टर मिसिंग है। इसके अलावा, फिल्म के गाने भी औसत हैं। मनोज मुंतशिर का ‘भारत’ गीत एक सामान्य देशभक्ति गीत जैसा ही लगता है, और अन्य गाने भी फिल्म के मूड में ज्यादा असर नहीं छोड़ते।
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शिवम नायर की डायरेक्टिंग
शिवम नायर उन निर्देशकों में से हैं जो बेहतरीन काम तो करते हैं लेकिन खुद की ब्रांडिंग में पीछे रह जाते हैं। ‘स्पेशल ऑप्स’ जैसी वेब सीरीज में उनकी निर्देशन क्षमता देखने को मिली थी और यहां भी उन्होंने फिल्म को एक गंभीर और परिपक्व ट्रीटमेंट दिया है। लेकिन स्क्रिप्ट में कहीं-कहीं दोहराव के कारण उनकी मेहनत पूरी तरह रंग नहीं ला पाई। फिल्म की एडिटिंग एजाइल है, सिनेमैटोग्राफी अच्छी है, लेकिन इसमें सिनेमाघरों तक खींच लाने वाला कोई बड़ा कारण नहीं है। यह फिल्म घर पर बैठकर भी शांति से देखी जा सकती है।
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