Maharaj Review : आमिर खान के बेटे की फिल्म हुई रिलीज, जानें कैसी है कहानी

आमिर खान के बेटे जुनैद खान हाल ही में बतौर कलाकार फिल्मी दुनिया में कदम रख चुके हैं। ओटीटी प्लेटफॉर्म नेटफ्लिक्स की फिल्म महाराज के जरिए जुनैद का डेब्यू हो गया है।

Advertisment
author-image
Dolly patil
New Update
्ं्
Listen to this article
0.75x 1x 1.5x
00:00 / 00:00

अभिनेता आमिर खान के बेटे जुनैद खान ( Junaid Khan ) की फिल्म महाराज आखिरकार नेटफ्लिक्स पर रिलीज हो गई है। यह फिल्म साल 1862 के महाराज मानहानि मुकदमा ( लाइबल केस ) पर आधारित है, जिस पर बाम्बे हाई कोर्ट के समक्ष बहस हुई थी।  यह फिल्‍म उस समय के प्रख्यात गुजराती पत्रकार और समाजसेवी करसनदास मुलजी पर बनी है, जो लैंगिक समानता, महिलाओं के अधिकारों और सामाजिक बदलाव के कट्टर समर्थक थे।

करनदास ने उस दौरान धार्मिक गुरु द्वारा भक्ति की आड़ में महिलाओं अनुयायियों के यौन शोषण को उजागर किया था। सत्य घटना पर आधारित महाराज का विषय दमदार है

महाराज की कहानी

गुजरात के वडाल में वैष्णव कुटुंब में करसनदास के जन्म के साथ कहानी का आरंभ होता है। करसन को दास होने पर बचपन से ही आपत्ति होती है।

 बचपन से ही जिज्ञासाओं के चलते तमाम सवाल करता है। दस वर्ष की आयु में मां के निधन के बाद उसकी जिंदगी का रुख बदल जाता है। मामा उसे अपने साथ बांबे ले आते हैं। यह उस समय गुजराती व्यवसायियों के कपास का गढ़ था।

ोेमेम

बांबे में उस समय वैष्णवों की सात हवेलियां हुआ करती थी।  वहां पर हुकुमत अंग्रेजों की थी, लेकिन माना हवेली के मुख्‍य महाराज जदुनाथ महाराज उर्फ जेजे ( जयदीप अहलावत ) को जाता था। इस हवेली के पास ही कसरन ( जुनैद ) के मामा का घर था।

युवा करसन अखबारों के लिए लेख लिखा करता था। उसके लेख समाज के प्रभावशाली लोग भी पढ़ते थे। करसन की सगाई किशोरी (शालिनी पांडेय) से हो चुकी होती है। किशोरी की महाराज में गहरी आस्था होती है।  चरण सेवा के नाम पर वह भी महाराज को समर्पित हो जाती है। 

ADdsa

करसनदास सगाई तोड़ देता है। उधर मासूम किशोरी को समझ आता है महाराज पाखंडी है। वह आत्महत्या कर लेती है। उसकी आत्महत्या से क्षुब्‍ध करसन पाखंडी महाराज की असलियत सामने लाने का बीड़ा उठा लेता है। उसके खिलाफ अखबार में लेख लिखना आरंभ करता है।

महाराज तिलमिला कर उसके खिलाफ मानहानि का मुकदमा करता है। इस सफर में करसन के साथ विराज ( शरवरी वाघ ) भी आती है।      

फिल्म को कमजोर बनाता है डायरेक्शन

सिद्धार्थ पी मल्होत्रा निर्देशित यह फिल्म महिलाओं का पक्ष समुचित तरीके से नहीं दिखा पाती है। उन्‍हें अंध भक्त दिखाती है, ऐसे में उनके पति कैसे चुप रहे? उन्होंने कभी विरोध क्यों नहीं किया? उसका जवाब नहीं मिलता। महिलाओं के शोषण से जुड़ी यह फिल्‍म महाराज के पक्ष को भी बहुत प्रभावी तरीके से नहीं दिखा पाती है। सब कुछ सपाट तरीके से होता जाता है। 

wr reftr

न लोगों में रोष होता है न दर्शकों में उत्‍साह। कहते हैं कि सच्चाई बेहद कड़वी होती है, लेकिन जब सामने आती है तो होश उड़ जाते हैं। यहां पर वैसा बिल्कुल नहीं होता। जबकि यह विषय ऐसा है जिसमें असलियत सामने आने के बाद लोगों में आक्रोश होना चाहिए। परदे पर यह बेहद ठंडा नजर आता है।

1860 के दौर में सेट इस फिल्‍म का परिवेश विश्वसनीय नहीं लगता है। कोर्ट रूम ड्रामा में दलीलें और जिरह है। लेकिन कोई रोमांच या तनाव पैदा नहीं होता। कोर्ट रूम ड्रामा वर्तमान के मीटू आंदोलन की याद जरूर ताजा करती है।  

कौन है कलाकार

कलाकारों की बात करें तो जुनैद की यह पहली फिल्‍म है। बिना प्रचार प्रसार के रिलीज हुई इस फिल्‍म में वह एक समान भावों में ही नजर आए हैं। शरवरी अपनी गुजराती शैली और अंदाज में प्रभावित करती हैं। शालिनी पांडेय अपनी भूमिका के अनुकूल मासूम दिखी हैं। हालांकि उनके किरदार में गहराई का अभाव है। उनके किरदार से कोई सहानुभूति नहीं होती है। सबसे बड़ी निराशा जयदीप अहलावत को देखकर हुई। धर्म गुरु की भूमिका में वह उस रौब और प्रभाव को पैदा नहीं कर पाते जो उनके पात्र की मांग थी। 

thesootr links

 सबसे पहले और सबसे बेहतर खबरें पाने के लिए thesootr के व्हाट्सएप चैनल को Follow करना न भूलें। join करने के लिए इसी लाइन पर क्लिक करें

द सूत्र की खबरें आपको कैसी लगती हैं? Google my Business पर हमें कमेंट के साथ रिव्यू दें। कमेंट करने के लिए इसी लिंक पर क्लिक करें

आमिर खान नेटफ्लिक्स महाराज जुनैद खान Junaid Khan बाम्बे हाई कोर्ट जुनैद