MUMBAI. आनंद बक्शी एक ऐसे गीतकार थे, जो आम सी परिस्थियों में से भी गीत खोज लाते और उसे सरल अंदाज में दुनिया के सामने पेश करते थे। उनके गाने आज भी लोगों की जुबां पर चढ़ जाते है। आनंद ने करीब 40 साल लंबे करियर में 4000 से अधिक गीत लिखे थे। आनंद ने अपने लिखे गानों में जीने की ढेरों सीख दी हैं। 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी, पाकिस्तान में जन्मे आनंद का 30 मार्च 2002 को 70 साल की उम्र में निधन हो गया। था। आज ( 30 मार्च) को उनकी 21वीं पुण्यतिथि है।
सेना में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी करते थे आनंद
आनंद बक्शी के परिवार से कोई भी फिल्मी दुनिया से नहीं था। उनके पिता रावलपिंडी में बैंक मैनेजर थे और वह सेना में टेलीफोन ऑपरेटर की नौकरी करते थे। देश का बंटवारा होने के बाद वह अपनी फैमिली के साथ भारत आ गए थे। यहां से वह मुंबई आ गए।
इस गाने से आनंद को मिली पॉपुलैरिटी
आनंद ने फिल्म भला आदमी में बतौर गीतकार काम करने का मौका मिला। ये फिल्म 1958 में रिलीज हुई थी। हालांकि इससे उनको कुछ खास पहचान नहीं मिली। इसके बाद आनंद ने कई फिल्मों के लिए गाने गाए, लेकिन उन्हें असली पहचान 1965 में आई फिल्म ‘जब जब फूल खिले’ से मिली। आनंद ने परदेसियों से न अंखियां मिलाना, ये समां.. समां है ये प्यार का, एक था गुल और एक थी बुलबुल,जिन्दगी के सफर में,मेरे देश प्रेमियों, आदमी मुसाफिर है, यादें याद आती हैं, कैसे जीते हैं भला,बुरा मत कहो, दुनिया में कितनी हैं नफरतें, कुछ तो लोग कहेंगे, यार हमारी बात सुनो, गाड़ी बुला रही है जैसे गाने से खूब पॉपुलैरिटी हासिल की।
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राजेश खन्ना को बनाया सुपरस्टार
वहीं राजेश खन्ना को सुपरस्टार बनाने में आनंद का बड़ा हाथ है। आनंद ने आराधना, अमर प्रेम और कटी पतंग जैसी कई फिल्मों में गाने दिए, जिनकी वजह से राजेश खन्ना भारतीय सिनेमा के पहले सुपरस्टार बने। शायद ही कोई शख्स होगा, जिसने गीतकार आनंद बख्शी के लिखे मैजिकल गानों को नहीं सुना होगा।