सत्यजीत रे ने पत्नी के गहने बेचकर बनाई थी पहली फिल्म, लंदन ट्रिप ने बदल दी थी जिंदगी, डायरेक्टर के अलावा भी बहुत कुछ थे

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Pratibha Rana
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सत्यजीत रे ने पत्नी के गहने बेचकर बनाई थी पहली फिल्म, लंदन ट्रिप ने बदल दी थी जिंदगी, डायरेक्टर के अलावा भी बहुत कुछ थे

MUMBAI. भारतीय सिनेमा जगत के इतिहास में 'सत्यजीत रे' किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं। वे फिल्मी जगत के पहले ऐसे निर्देशक थे, जिनके पास 'ऑस्कर अवॉर्ड ' मिला था। 1948 में कोलकाता में फिल्म सोसायटी की शुरुआत इन्होंने ही की थी। दादा साहेब फाल्के के बाद भारतीय सिनेमा में सबसे बड़ा नाम सत्यजीत रे का है। सत्यजीत रे को उन बड़े सितारों में शामिल किया जाता है, जिन्होंने विदेश में भी भारतीय सिनेमा का झंडा फहराया। सत्यजीत को पद्मश्री, पद्म विभूषण से लेकर दादासाहेब फाल्के और ऑस्कर अवार्ड तक कई सम्मानों से नवाजा गया। इसके अलावा कुल 32 नेशनल अवॉर्ड उनके नाम हैं। 1992 में उन्हें भारत के सबसे प्रतिष्ठित नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा गया।



ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर की करियर की शुरूआत



सत्यजीत रे ने काफी सुपरहिट फिल्में की है। इसमें शतरंज के खिलाड़ी, पाथेर पांचाली, देवी और चारुलता जैसी कई अन्य फिल्में शामिल है। अपने जीवन में कुल 37 फिल्में बनाई थीं और इन्ही फिल्मों से वो पूरी दुनिया में छा गए। वह एक लेखक, पब्लिशर, इलस्ट्रेटर, कॉलीग्राफर, ग्राफिक डिजाइनर और फिल्म क्रिटिक भी थे। सत्यजीत ने अपने काम की शुरुआत ग्राफिक डिजाइनर के तौर पर की थी। उस दौरान उन्होंने कई किताबों के कवर पेज डिजाइन किए थे। कहा जाता है कि 1950 में जिस कंपनी में सत्यजीत काम करते थे, उस कंपनी की तरफ से उन्हें लंदन भेजा गया था। वहां पर उन्होंने कुल 99 फिल्में देखीं। ये फिल्में देखने के बाद उन्होंने फैसला किया कि इंडिया आकर वह 'पाथेर पांचाली' पर फिल्म बनाएंगे। 



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फिल्म बनाने के लिए बेचे पत्नी के गहने 



1952 में सत्यजीत रे ने एक नौसिखिया टीम लेकर फिल्म की शूटिंग शुरू की। उनके पास जितने भी पैसे थे, वे सब उन्होंने फिल्म में लगा डाले। इतना ही नहीं फिल्म के लिए उन्होंने अपनी पत्नी के जेवर तक बेच दिए ​थे। जब तक पैसे थे तब तक फिल्म की शूटिंग चलती रही, लेकिन पैसे खत्म होने के बाद फिल्म की शूटिंग रोकनी पड़ी। उन्होंने कुछ लोगों से मदद लेने की कोशिश की, लेकिन वे फिल्म में अपने हिसाब से कुछ बदलाव चाहते थे जिसके लिए वह तैयार नहीं थे। आखिर में पश्चिम बंगाल सरकार ने उनकी मदद की और 1955 में 'पाथेर पांचाली' सिनेमाघरों में रिलीज हुई।

 


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