नई दिल्ली. लता मंगेशकर (Lata mangeshkar death) का गाया गीत 'ऐ मेरे वतन के लोगों, जरा आंख में भर लो पानी, जो शहीद हुए उनकी जरा याद करो कुर्बानी' को सुनकर उस वक्त देश के प्रधानमंत्री की आंखों से आंसू छलक पड़े थे। लता जी ने 27 जनवरी 1963 को पहली बार ऐ मेरे वतन के लोगो गाया था। ये गाना आज भी सरहदों पर तैनात सेनाओं के मन में ही नहीं, बल्कि बच्चे-बच्चे के मन में देशभक्ति की भावनाएं जगाने का दम रखता है। आइए, इस गाने के बारे में आपको बताते हैं...
चीन युद्ध से संबंध: इस गीत की रचना की कहानी 1962 में चीन के साथ युद्ध में भारत की हार से जुड़ी है। चीन के साथ युद्ध में मिली हार ने देश के नेताओं से लेकर हर एक छोटे-बड़े व्यक्ति को हिलाकर रख दिया था। अस्त्र-शस्त्र की लड़ाई तो हो चुकी थी, अब बारी थी कलम की ताकत दिखाने की, क्योंकि लोगों का मनोबल देशभर का मनोबल गिरा रहा था। ऐसे में सरकार की तरफ से फिल्म जगत से कोई ऐसा गीत बनाने की गुजारिश की गई, जो देश के लोगों में जोश भर सकता हो। कवि प्रदीप ने देशभक्ति के गाने पहले भी लिखे थे, इसलिए यह प्रस्ताव उनके पास आया।
सिगरेट के फॉयल पर लिखी लाइन: इस गीत के लिखे जाने की कहानी भी दिलचस्प है। कहते हैं कि कवि प्रदीप मुंबई के माहिम बीच पर टहल रहे थे। तभी अचानक उनके दिमाग में इस गीत की लाइनें आईं। उस वक्त उनके पास ना पेन था और ना कागज। बताते हैं कि उन्होंने पास से गुजर रहे एक अजनबी से पेन मांगा और फिर सिगरेट के डिब्बे के एल्यूमीनियम फॉयल को फाड़कर उसी कागज पर गीत की ओपनिंग लाइन लिख डाली।
भावनात्मक गीत की रूपरेखा: उस जमाने में हिंदी फिल्मों में तीन महान गायक थे, मोहम्मद रफी, मुकेश और लता मंगेशकर। इससे पहले मोहम्मद रफी 'अपनी आजादी को हम हरगिज मिटा सकते नहीं' गीत गा चुके थे और मुकेश ने 'जिस देश में गंगा बहती है' गाना गाया था। ऐसे में बस लता मंगेशकर बची थीं। अब कवि प्रदीप के सामने अब इस गाने को ऐसा रूप देने का टास्क था, जो उनकी मखमली आवाज पर फिट बैठे। इसलिए उनके दिमाग में एक भावनात्मक गीत की रूपरेखा तैयार हो रही थी।
लता तैयार नहीं थीं: कहते हैं कि जब पहली बार 1963 में गणतंत्र दिवस के मौके पर लता मंगेशकर के पास 'ए मेरे वतन के लोगों' गाने का ऑफर आया तो उन्होंने गाने से इनकार कर दिया था। दरअसल, उनके पास रिहर्सल का वक्त नहीं था। लता ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वह उन दिनों काफी व्यस्त चल रही थीं और ऐसे में एक गीत पर ध्यान दे पाना उनके लिए मुश्किल था। हालांकि, कवि प्रदीप ने उन्हें मना लिया। लता इस शर्त पर इस गीत को गाने के लिए तैयार हुईं कि वह इसे अपनी बहन आशा के साथ गाएंगी। हालांकि, हालात कुछ ऐसे बने कि प्रोग्राम से पहले दिल्ली रवाना होने से ठीक पहले आशा भोंसले का प्लान कैंसिल हो गया और ऐसे में लता मंगेशकर को अकेले ही निकलना पड़ा। हालांकि, अखबारों में इस इवेंट की गायिकाओं के तौर पर लता और आशा दोनों का ही नाम छप चुका था। तब संगीतकार और गायक हेमंत कुमार ने भी आशा को मनाने की काफी कोशिश की, लेकिन इसका बहुत फायदा नहीं हुआ।
गाने से पहले लता काफी नर्वस थीं: इस गीत के लिए धुन सी. रामचंद्र ने तैयार की थी। वे 4-5 दिन पहले दिल्ली रवाना हो गए थे। लिहाजा लता को उनके साथ भी रियाज का कोई मौका नहीं मिल पाया। बताया जाता है कि रामचंद्र ने उन्हें गाने का एक टेप दे दिया था, जिसे सुनकर वे प्लेन में ही रियाज करते हुए दिल्ली पहुंचीं। 27 जनवरी 1963 को लता मंगेशकर नई दिल्ली के नेशनल स्टेडियम में 'ए मेरे वतन के लोगों' गाया। लता जी ने बताया था कि इस गीत को गाने से पहले वह काफी नर्वस थीं और उन्हें इस बात का भी दुख था कि जिनके (प्रदीप) लिखे गीत को उन्होंने वहां गाया, उस जगह पर उन्हें बुलाया नहीं गया था। लता ने कहा था, 'यदि वे वहां मौजूद होते तो वह अपनी आंखों से देख पाते कि उनके गीत ऐ मेरे वतन के लोगों ने क्या असर दिखाया था।'
पंडित जी रो पड़े थे: लता मंगेशकर जब गाना खत्म करके स्टेज के पीछे चली गईं, तभी महबूब खान आए और हाथ पकड़कर बोले, चलो नेहरू जी ने बुलाया है। वे हैरत में थीं कि आखिर पंडित जी उनसे क्यों मिलना चाहते हैं? जब लता स्टेज पर पहुंचीं तो पंडित जी समेत सभी लोग लोगों ने खड़े होकर उनका स्वागत किया। पंडित जी ने गाने की तारीफ की और बताया कि उनके गीत को सुनकर उनकी आंखें भर आईं।
आर्मी वेलफेयर फंड के लिए करीब 2 लाख इकट्ठे हुए: रिपोर्ट्स के मुताबिक, उस वक्त इस इवेंट से आर्मी वेलफेयर फंड के लिए करीब 2 लाख रुपए इकट्ठे हुए थे, यह उस समय के हिसाब से बड़ी रकम थी। प्रदीप को रिपब्लिक डे पर तो इन्वाइट नहीं किया गया था, बाद में मुंबई के आर.एम. हाई स्कूल में नेहरू के लिए 21 मार्च 1963 को आयोजित फंक्शन में इस गाने के लिए परफॉर्म किया। इसी इवेंट में उन्होंने हाथों से लिखे इस गीत का लिरिक्स (गाने के बोल) नेहरू को गिफ्ट किया था।