यमुना नदी के पानी में काफी झाग होते हैं। इन झाग को दूर से देखने पर यह बर्फ जैसे भी दिखते हैं और कई बार झाग इतने ज्यादा हो जाते हैं कि पानी दिखना ही बंद हो जाता है।
आपने भी ये तस्वीरें कई बार देखी होगी और अगर आप दिल्ली या आस-पास में रहते हैं तो आपने वहां जाकर भी ये देखा होगा। लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर यमुना के इन झाग के पीछे के क्या कारण हैं और किस वजह से झाग आते हैं।
बहते पानी में दो तरह से झाग बनते हैं। एक झाग तो वो होते हैं, मृत पौधों और उनसे निकलने वाले वसा की वजह से बनते हैं। लेकिन इनकी मात्रा काफी कम होती है और ये बनते हैं और खत्म भी हो जाते हैं। दिखने में ये झाग साबुन वाले झाग की तरह ही होते हैं, लेकिन ये उनसे अलग होते हैं। मगर यमुना में जो झाग हैं, वो ये वाले नहीं बल्कि फॉस्फेट से होने वाले झाग हैं। इसी फॉस्फेट की वजह से ही साबुन या डिटर्जेंट से झाग बनते हैं।
वैसे नदियों के पानी में फॉस्फेट की मात्रा भी होती है और पानी में ऑक्सीजन आदि की मात्रा कंट्रोल रखते हैं. मगर यमुना में इसका मात्रा काफी ज्यादा है, इस वजह से यह काफी नुकसानदायक भी है। दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति की रिपोर्ट में सामने आया है कि यमुना में फॉस्फेट की मात्रा 6.9 मिलीग्राम / लीटर से लेकर 13.42 मिलीग्राम / लीटर तक है. ये काफी ज्यादा है। फॉस्फेट की इतनी मात्रा साबुन-सर्फ वगैरह में भी नहीं होती है।
दिल्ली के कई हिस्सों में सीवेज के साथ साथ बिना ट्रीट किया हुआ कचरा भी फेंका जाता है. इस वजह से नदी में फॉस्फेट की मात्रा बढ़ती है. इसके साथ ही इंडस्ट्री के कैमिकल और इनके यहां इस्तेमाल होने वाले डिटर्जेंट यमुना में मिलते हैं, जिसकी वजह से फॉस्फेट की मात्रा बढ़ जाती है। अब जानते हैं कि नदी में कई बार ये ज्यादा क्यों हो जाते हैं। इसके पीछे का कारण ये है कि इस वक्त नदी का बहाव कम होता है और इस वजह से झाग एक जगह इकट्ठा हो जाता है और ज्यादा दिखाई देने लगता है।