नवरात्रि में छठे दिन मां कात्यायनी की उपासना की जाती है। दृग पंचांग के अनुसार नवरात्रि के पांचवें दिन का व्रत 8 अक्टूबर को ही रखा जाएगा।
मां की पूजा से भक्तों के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं। मां कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में मां प्रतिष्ठित हैं।
भगवान श्रीकृष्ण को पति रूप में प्राप्त करने के लिए ब्रज की गोपियों ने मां कात्यायनी की उपासना की थी। मां कात्यायनी की उपासना से किसी प्रकार का भय नहीं रहता। मां की कृपा से स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां दूर हो जाती हैं।
मां दांपत्य जीवन को सुखमय बनाने का आशीर्वाद देती हैं। मां कात्यायनी की सवारी सिंह है। मां के एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल का पुष्प सुशोभित है। मां कात्यायनी की उपासना से भक्तों की समस्त मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मां के आशीर्वाद से विवाह में आने वाली बाधाओं से मुक्ति मिलती है।
मां कात्यायनी ने महिषासुर नामक असुर का वध किया था, जिस कारण मां कात्यायनी को दानव, असुरों और पापियों का नाश करने वाली देवी कहा जाता है। मां की उपासना से कुंडली में बृहस्पति मजबूत होता है।
वृंदावन के राधा बाग इलाके में देवी के 51 शक्ति पीठों में कात्यायनी पीठ है। बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे। इसका जिक्र शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।
बागमती नदी किनारे धमारा घाट स्टेशन से कुछ दूरी पर अवस्थित प्रसिद्ध शक्ति पीठ मां कात्यायनी स्थान में दूर-दूर से श्रद्धालु आते-आते हैं। शारदीय नवरात्र में तो देश भर से साधक आते हैं और साधना करते हैं।
सहरसा के बनमा ईटहरी प्रखंड अंतर्गत महारस गांव स्थित मां कत्यायनी मंदिर में नवरात्रि में खास तौर पर विशेष पूजा अर्चना की जाती है। मां कात्यायनी का पूरा शरीर महारस स्थित मंदिर में है जो बहुत समय से है। वहीं धमहारा स्थित मां कात्यायनी में मां कात्यायनी का सिर्फ एक हाथ है जो मंदिर में स्थापित है।