जानिए कैसे एक टेस्ट से पता चलेगा आपको हार्ट अटैक होगा या नहीं?

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जानिए कैसे एक टेस्ट से पता चलेगा आपको हार्ट अटैक होगा या नहीं?

दिल्ली. कल वर्ल्ड हार्ट डे था। दिल को बेहतर रखने के लिए लोगों को कल टिप्स दिए गए थे। बताया गया था कि थ्री वाइट्स को अगर ध्यान में रखा जाए तो दिल की गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है, लेकिन क्या आपको पता है कि भारतीयों में दिल की बीमारी का खतरा बाकी देश के लोगों के मुकाबले 1.6 गुना ज्यादा होता है। मिडिल एज (40 की उम्र के आसपास) के लोग दिल की बीमारी का शिकार हो रहे है।

जेनेटिक टेस्टिंग का सहारा

दिल की बीमारी से बचने के लिए लोग जेनेटिक टेस्टिंग का सहारा ले रहे है। इसकी कीमत 8 हजार रुपए है। ऐसा माना जा रहा है कि जिन लोगों को दिल की बीमारी है, उन्हें इसका फायदा होगा। डॉ.एस अजित मुलासरी (मद्रास मेडिकल मिशन के सीनियर कोऑर्डिनेटर) का कहना है कि दिल की बीमारी के कई कारण हो सकते है जैसे कि फैमिली हिस्ट्री, हाई कोलेस्ट्रॉल, अनियंत्रित डायबिटीज (Diabetes), हाइपरटेंशन के बारे में जानकारी मिल जाती है। इसका फायदा होता कि डॉक्टरों को पहले ही पता चल जाता है कि हार्ट की बीमारी है या नहीं।

50 जीन वैरिएंट से पता कर सकते है 

अब जेनेटिक जांच के बारे में जानते है। इस टेस्ट के दौरान खून की जांच की जाती है, उन्हें अलग-अलग स्पेशल लैब में भेजा जाता है। जांच के दौरान स्क्रीनिंग होती। 50 ऐसे जीन हैं, जिनकी वजह से हार्ट की प्रॉब्लम हो सकती है। स्क्रीनिंग के दौरान पता लगाया जाता है कि कौन-कौन से खराब वैरिएंट हैं, जिसकी वजह से जीन्स का कॉम्बिनेशन बनता है। रिस्क स्कोर भी इसी से पता चलता है।

व्यायाम और खानपान से चीजें बेहतर होंगी

डॉक्टर्स का मानना है कि व्यायाम, खानपान में बदलाव और मेडिटेशन से गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है। अभी तक डॉक्टर दिल की बीमारी के बारे में तभी पता कर पाते थे, जब कोई इमरजेंसी रूम में लाया जाता था। जेनेटिक्स की वजह से इस बीमारी के बारे में पहले ही पता लगाया जा सकता है। कम उम्र में जिन लोगों को दिल की बीमारी होती है, उन्हें इसका फायदा होगा। विकसित देशों ने व्यायाम, खान-पान में बदलाव और मेडिटेशन के बारे में बड़े स्तर पर बात होती है। एक्सपेरिमेंट लेवल पर अगर देखा जाए तो वैज्ञानिक, जानवरों के जीन्स में बदलाव कर रहे है, ताकि उन पर प्रयोग कर इंसानों में दिल की बीमारी को रोका जा सके। हाइपर ऑब्सट्रक्टिव और कार्डियोमायोपैथी जैसी गंभीर बीमारियों से बचा जा सकता है।

एशियन लोगों में खतरा ज्यादा है

एमआईटी और हार्वर्ड के प्रोफेसर बताते है कि दक्षिण एशियाई (South Asian Countries) में ये बीमारी ज्यादा देखी जा रही है। इसके लिए एक स्टडी भी की गई थी, जिसमें 3 हजार लोगों को जोड़ा गया। इसमें 1800 लोग पेशेंट थे। एक ऐसी ही स्टडी यूके यानी यूनाइटेड किंगडम में भी की गई। इसमें ब्रिटिशों के मुकाबले भारतीय मूल के लोगों का पॉलीगेनिक रिस्क का स्कोर 1.6 टाइम्स ज्यादा पाया गया।

The Sootr Indians are 1.6 times more at risk genetic testing can prevent