टीबी सिर्फ फेफड़ों में ही नहीं होती है, यह आंतों में भी हो सकती है।आंतों की टीबी की वजह माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस बैक्टीरिया होता है। आंतों में टीबी कब होता है ।यह दो स्थिति में होता है। पहला, टीबी के बैक्टीरिया से संक्रमित खाना खाने पर। दूसरा,, फेफड़े की टीबी की स्थिति में मरीज द्वारा खुद का बलगम निगलने पर। एड्स और कैंसर के मरीज के अलावा जिन लोगों की रोगों से लड़ने की क्षमता कम होती है, उनमें आंतों की टीबी होने का खतरा ज्यादा रहता है।
आंतों की टीबी के प्रकार-
यह बीमारी तीन तरह की होती है-1. अल्सरेटिव: इसमें आंतों में अल्सर की स्थिति बनती है। यह 60 फीसदी मरीजों में होती है।2. हाइपरट्रॉफिक: इसमें आंतों की वॉल मोटी और सख्त हो जाती है। आंतों में रुकावट आ जाती है। यह 10 फीसदी मरीजों में होती है।3. अल्सरेटिव हाइपरट्रॉफिक: ऐसी स्थिति में आंतों में अल्सर और रुकावट दोनों होती हैं। आंतों की टीबी के मरीजों में 30 फीसदी मामले ऐसे होते हैं।
ये हैं लक्षण
पेटदर्द, कब्ज होना, खूनी दस्त आना, बुखार रहना, भूख कम लगना, कमजोरी होना, वजन घटना और पेट में गांठ बनना इसके लक्षण हैं। जब भी ऐसे लक्षण दिखें तो नजरअंदाज न करें और डॉक्टर्स से सलाह लें।
क्या है इलाज
खून की जांच, सीने व पेट का एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड, सीटी स्कैन, मेंटॉस टेस्ट से आंतों में टीबी की जांच की जाती है। इसके अलावा कोलोनोस्कोपी और बायोप्सी से भी टीबी की जांच करते हैं। कुछ मरीजों में एंडोस्कोपी की जरूरत भी पड़ती है।
क्या खाएं-
मरीजों को खानपान में प्रोटीन अधिक लेना चाहिए। इसके लिए पने भोजन में दाल ज्यादा खाएं। इसके अलावा सूप, आलू, चावल, केला को डाइट में शामिल करें। इलाज की शुरुआत में डेयरी प्रोडक्ट से बचें,ये दस्त का कारण बनते हैं। इसके अलावा कॉफी, चाय, कोल्ड ड्रिंक्स से दूरी बनाएं, ये दस्त और पेटदर्द को बढ़ाती हैं। अल्कोहल न पिंए।