दोस्तों के बीच सैम के नाम से जाने जाने वाले भारत के पहले फील्ड मार्शल सैम होर्मुसजी फ्रामजी जमशेदजी मानेकशॉ का जन्म 3 अप्रैल 1914 को हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर और शेरवुड कॉलेज नैनीताल में हुई थी। मानेकशॉ इंडियन मिलिट्री के लिए चुने जाने वाले 40 कैडेट्स के पहले बैच के थे और उन्हें 4 फरवरी 1934 को 12 एफएफ राइफल्स में कमीशन किया गया था। सैम मानेकशॉ को उनके दोस्त, उनकी पत्नी, उनके नाती, उनके अफसर या उनके मातहत या तो उन्हें सैम कह कर पुकारते थे या "सैम बहादुर"।
1971 की जंग में पाकिस्तान को हराने और नया मुल्क बांग्लादेश बनाने का पूरा श्रेय सिर्फ फील्ड मार्शल सैम मानेकशॉ को जाता है। सैम मानेकशॉ के 4 दशक के सैन्य करियर में 5 युद्ध शामिल हैं। सैम मानेकशॉ इंडिया के पहले फील्ड मार्शल थे। उनका यह सफर बेहद दिलचस्प रहा है। अमृतसर में पले सैम अपने पापा की तरह डॉक्टर बनना चाहता थे। इसके लिए वो लंदन जाना चाहता थे, क्योंकि उनके दो भाई पहले से ही वहां इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे थे। पापा ने कहा- तुम अभी छोटे हो। इस बात से गुस्सा होकर सैम ने इंडियन मिलिट्री में शामिल होने के लिए फॉर्म भरा और सिलेक्ट हो गए।
1971 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सैम मानेकशॉ से लड़ाई के लिए तैयार रहने पर सवाल किया था। इस बात के जवाब में सैम मानेकशॉ ने कहा था, ‘आई एम ऑलवेज रेडी, स्वीटी।’ ये बात काफी फेमस हुई थी। 71 की लड़ाई में इंदिरा गांधी चाहती थीं कि वह मार्च में ही पाकिस्तान पर चढ़ाई कर दें, लेकिन सैम ने ऐसा करने से इनकार कर दिया, क्योंकि भारतीय सेना हमले के लिए तैयार नहीं थी। इंदिरा गांधी इससे नाराज हुईं थी। मानेकशॉ ने पूछा कि अगर आप युद्ध जीतना चाहती हैं तो मुझे 6 महीने का समय दीजिए। मैं गारंटी देता हूं कि जीत हमारी ही होगी।
3 दिसंबर को फाइनली वॉर शुरू हुआ। 13 दिसंबर 1971 को फील्ड मार्शल मानेकशॉ ने पाकिस्तानी सैनिकों को चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था, ‘या तो आप सरेंडर कर दीजिए नहीं तो हम आपको खत्म कर देंगे।’ इस चेतावनी के 3 दिन बाद ही यानी 16 दिसंबर को भारतीय मिलिट्री के इतिहास की सबसे बड़ी घटना देखने को मिली, जब करीब एक लाख पाक सैनिकों ने हथियार डाल दिए थे। 16 दिसंबर को ईस्ट पाकिस्तान आजाद होकर ‘बांग्लादेश’ बन गया। इसी जंग में पाकिस्तान के 93 हजार सैनिकों ने आत्मसमर्पण भी किया।
59 साल की उम्र में उन्हें फील्ड मार्शल की उपाधि से नवाजा गया था। यह सम्मान पाने वाले वह पहले भारतीय जनरल थे। वे पहले 5 स्टार जनरल भी थे। 1972 में उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया था। एक साल बाद 1973 में वह सेना प्रमुख के पद से रिटायर हो गए थे। सेवानिवृत्ति के बाद वह तमिलनाडु के वेलिंग्टन चले गए। वेलिंग्टन में ही 2008 में उनका निधन हो गया था।
उनकी बहादुरी की कई मिसालें हैं। सेकंड वर्ल्ड वॉर के दौरान सैम के शरीर में 7 गोलियां लगी थीं। सबने उनके बचने की उम्मीद ही छोड़ दी थी, लेकिन डॉक्टरों ने समय रहते सारी गोलियां निकाल दीं और उनकी जान बच गई। मानेकशॉ को अच्छे कपड़े पहनने का शौक था। अगर उन्हें कोई निमंत्रण मिलता था, जिसमें लिखा हो कि अनौपचारिक कपड़ों में आना है तो वह निमंत्रण अस्वीकार कर देते थे।
एक बार युगांडा के सेनाध्यक्ष इदी अमीन भारत के दौरे पर आए। उस समय तक वह वहां के राष्ट्रपति नहीं बने थे। उनकी यात्रा के आखिरी दिन अशोक होटल में सैम मानेकशॉ ने उनके सम्मान में डिनर दिया, जहां उन्होंने कहा कि उन्हें भारतीय सेना की वर्दी बहुत पसंद आई है और वो अपने साथ अपने नाप की 12 वर्दियां युगांडा ले जाना चाहते हैं। सैम के आदेश पर रातोंरात कनॉट प्लेस की मशहूर दर्ज़ी की दुकान एडीज खुलवाई गई और करीब बारह टेलरों ने रात भर जाग कर इदी अमीन के लिए वर्दियां सिलीं।
उनकी बेटी माया दारूवाला ने बताया था कि उनके पिता को खर्राटे लेने की आदत थी। उनकी मां सीलू और सैम कभी भी एक कमरे में नहीं सोते थे, क्योंकि सैम जोर-जोर से खर्राटे लिया करते थे। एक बार जब वह रूस गए तो उनके लाइजन ऑफिसर जनरल कुप्रियानो उन्हें उनके होटल छोड़ने गए। जब वह विदा लेने लगे तो सीलू ने कहा, "मेरा कमरा कहां है?" रूसी अफसर परेशान हो गए।
सैम ने स्थिति संभाली, असल में मैं खर्राटे लेता हूं और मेरी बीवी को नींद न आने की बीमारी है। इसलिए हम लोग अलग-अलग कमरों में सोते हैं। यहां भी सैम की मजाक करने की आदत नहीं गई। रूसी जनरल के कंधे पर हाथ रखते हुए उनके कान में फुसफुसा कर बोले, आज तक जितनी भी औरतों को वह जानते हैं, किसी ने उनके खर्राटे लेने की शिकायत नहीं की है, सिवाए इनके। इंदिरा गांधी के साथ उनकी बेतकल्लुफी के कई किस्से मशहूर हैं। मेजर जनरल वीके सिंह कहते हैं, "एक बार इंदिरा गांधी जब विदेश यात्रा से लौटीं तो मानेकशॉ उन्हें रिसीव करने पालम हवाई अड्डे गए। इंदिरा गांधी को देखते ही उन्होंने कहा कि आपका हेयर स्टाइल जबरदस्त लग रहा है। इस पर इंदिरा गांधी मुस्कराईं और बोलीं, और किसी ने तो इसे नोटिस ही नहीं किया।
पाकिस्तान के साथ लड़ाई के बाद सीमा के कुछ इलाकों की अदला-बदली के बारे में बात करने सैम मानेकशॉ पाकिस्तान पहुंचे थे। उस समय जनरल टिक्का पाकिस्तान के सेनाध्यक्ष थे। पाकिस्तान के कब्जे में भारतीय कश्मीर की चौकी थाकोचक थी, जिसे छोड़ने के लिए वह तैयार नहीं थे। टिक्का खां सैम से 8 साल जूनियर थे और उनका अंग्रेजी में भी हाथ थोड़ा तंग था, क्योंकि वो सूबेदार के पद से शुरुआत करते हुए इस पद पर पहुंचे थे। उन्होंने पहले से तैयार स्टेटमेंट पढ़ना शुरू किया, "देयर आर थ्री ऑल्टरनेटिव्स टू दिस।" इस पर मानेकशॉ ने उन्हें तुरंत टोका, "जिस स्टाफ ऑफिसर की लिखी ब्रीफ आप पढ़ रहे हैं उसे अंग्रेजी लिखनी नहीं आती है। ऑल्टरनेटिव्स हमेशा दो होते हैं, तीन नहीं। हां, संभावनाएं या पॉसिबिलिटीज दो से ज्यादा हो सकती हैं।" सैम की बात सुन कर टिक्का इतने नर्वस हो गए कि हकलाने लगे और थोड़ी देर में वो थाकोचक को वापस भारत को देने को तैयार हो गए। बस यही थी आज की कहानी...