इंद्र ने धोखे से अहिल्या को भोगा, गौतम ऋषि ने श्राप दे दिया, उद्धार एक अवतार के हाथों हुआ

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The Sootr CG
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इंद्र ने धोखे से अहिल्या को भोगा, गौतम ऋषि ने श्राप दे दिया, उद्धार एक अवतार के हाथों हुआ

पौराणिक कथाओं के मुताबिक स्वर्ग लोक में इंद्र का वास है। इंद्र अपने चारों ओर कई सुंदर अप्सराओं से घिरे रहते हैं और उनके साथ काम क्रीड़ा करते हैं। इंद्र को देवराज कहा जाता है यानी कि देवों के राजा। फिर भी इंद्र की पूजा नहीं की जाती। इसके कई कारण हैं। इंद्र कभी खुद को कामवासना से मुक्त नहीं कर पाए। पुराणों में इंद्र के शरीर पर ढेर सारी आंखें होने का भी जिक्र मिलता है। कहते हैं कि एक बार इंद्र ने महान ऋषि गौतम की पत्नी अहिल्या के साथ धोखे से संबंध बनाए थे। जब ऋषि को पता चला तो उन्होंने इंद्र को श्राप दे दिया, जिससे उनके शरीर पर हजार योनियां आ गईं। बाद में ये योनियां आंखों में बदल गईं। 

ब्रह्मवैवर्त और पद्मपुराण के मुताबिक, एक बार इंद्र भ्रमण पर निकले। आसमान से उनकी नजर जंगल में बने एक ऋषि की कुटिया पर पड़ी। उस कुटिया में उन्होंने एक बहुत ही सुंदर स्त्री को देखा। इंद्र उस महिला को देखकर मोहित हो गए। उनसे रहा नहीं गया। ये कुटिया महान तपस्वी गौतम ऋषि की थी। जिस स्त्री को देखकर इंद्र मोहित हुए वो गौतम ऋषि की पत्नी अहिल्या थीं। वैसे तो इंद्र के देवलोक में कई खूबसूरत अप्सराएं थीं। वे जब भी चाहते किसी भी अप्सरा के साथ सहवास कर सकते थे, मगर अहिल्या की सुंदरता उन्हें भा गई। इंद्र अहिल्या के साथ संबंध बनाने की तरकीब सोचने लगे। अब इसके लिए उन्होंने अहिल्या के पति गौतम ऋषि की दिनचर्या पर नजर रखनी शुरू कर दी कि कब मौका मिले और वो अपने ‘काम’ को अंजाम दे दें।

गौतम ऋषि रोज सुबह होने से तड़के ही पहले जाग जाते और अपने नित्यकर्म निपटाने के लिए नदी किनारे जाते थे। वहां 2-3 घंटे का समय बिताकर फिर कुटिया में आते थे। इंद्र ने इसी मौके का फायदा उठाने की योजना बनाई। एक रात जब गौतम ऋषि और अहिल्या सो गए, फिर कुछ समय बाद इंद्र ने अपनी शक्ति से भोर होने का कृत्रिम आवरण बना लिया। ऋषि गौतम को लगा कि सुबह होने को है, वे रोज की तरह उठ गए और नित्यकर्म के लिए निकल पड़े।

इंद्र ने गौतम ऋषि का वेश धारण कर कुटिया में प्रवेश किया। अहिल्या को लगा कि उनके पति नित्यकर्म से निपटकर आ गए हैं। फिर इंद्र ने गौतम ऋषि के वेश में अहिल्या से प्यार भरी बातें की और उसके साथ संबंध बना लिए। दूसरी ओर, जब ऋषि नदी किनारे पहुंचे तो वहां के जनजीवन को देखकर उन्हें आभास हुआ कि किसी ने धोखे से सुबह का आवरण बनाया है। वे तुरंत अपनी कुटिया में पहुंचे, जहां उनके वेश में इंद्र उनकी पत्नी के साथ सो रहे थे।

ये देखकर गौतम ऋषि आग बबूला हो गए। उन्होंने अहिल्या को पत्थर बनने का श्राप दे दिया। वहीं, कामवासना के मोह में गिरे इंद्र को भी श्राप दिया कि उसके शरीर पर हजार योनियां उग आएंगी। वह चाहकर भी किसी स्त्री के साथ संबंध नहीं बना पाएंगे। देखते ही देखते इंद्र के पूरे शरीर पर योनियां उभर आईं। इंद्र को अपनी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गौतम ऋषि से क्षमा याचना की। ऋषि ने इंद्र को माफ कर दिया लेकिन कहा कि एक बार श्राप दे दिया इसलिए वापस नहीं हो सकता। हालांकि, ऋषि गौतम ने कहा कि इंद्र के शरीर पर उभरी ये योनियां आंखों में बदल जाएंगी। इस वजह से इंद्र के पूरे शरीर पर आखें ही आंखें हो गईं। गौतम ने अहिल्या को शाप दिया कि पत्थर की हो जाओ।

अहिल्या ने भी गौतम ऋषि से कहा कि उन्हें बिल्कुल भी पता नहीं चला कि उनके वेश में कोई और शख्स उनके साथ सोया है। इसमें उनकी कोई गलती नहीं थी। उनके मन में छल की कोई भावना नहीं थी। गौतम ऋषि ने अहिल्या को वरदान दिया कि कालांतर में भगवान विष्णु का अवतार तुम्हारे पास आएगा और उसके छूने से तुम फिर से पहले जैसी बन जाओगी। कई साल बाद राम ने विष्णु के अवतार के रूप में धरती पर जन्म लिया। राम ने ही बाद में अहिल्या को छूकर उन्हें श्राप से मुक्त किया। 

एक कथा ये भी मिलती है कि गौतम के बेटे का नाम चिरकारी था। वह कोई भी काम बहुत सोच-विचारकर करते थे। जब गौतम सुबह लौटे और उन्होंने देखा कि पत्नी इंद्र के साथ सोई हुई हैं तो उन्होंने चिरकारी को अपनी मां का गला काटने का आदेश दिया। चिरकारी अपने नाम के अनुरूप चिंतन में चले गए। उन्होंने सोचा कि मैंने मां की कोख से जन्म लिया है। मां से बड़ा संसार में कोई नहीं। फिर मां ने तो कोई अपराध किया ही नहीं है। जो किया है वो इंद्र ने किया है। मां का गला कैसे काट सकता हूं। वो इसी मंथन में लगे हुए थे। पिता ने आदेश तो दिया था। कुछ देर बाद उन्हें अपनी गलती का अहसास हुआ। वो लौटकर आए तो देखा चिरकारी चिंतन में मग्न थे कि गला काटूं या नहीं। एक तरफ पिता का आदेश है तो दूसरी तरफ मां। पिता को देखकर चिरकारी ने यही सब चिंतन पिता को बताया। गौतम बोले कि बेटा, तुमने अपने नाम को सार्थक किया है, मुझसे भूलवश यह आदेश निकल गया। तुम अपने चिंतन के लिए वर्षों याद किए जाओगे।.....बस यही थी गौतम और अहिल्या की कहानी....