अमिताभ को कॉमिक रोल में फिट करने वाले डायरेक्टर थे मनजी भाई, प्यार के मामले में अनलकी रहे, कादर खान से थी गजब केमिस्ट्री

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The Sootr CG
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अमिताभ को कॉमिक रोल में फिट करने वाले डायरेक्टर थे मनजी भाई, प्यार के मामले में अनलकी रहे, कादर खान से थी गजब केमिस्ट्री

नमस्कार दोस्तो, मैं अतुल हूं। आज शनिवार है और शनिवार है यानी आपको कहानी सुनाने का वादा है। आज भी आपके सामने एक कहानी लेकर मौजूद हूं। आज की कहानी एक अजीम डायरेक्टर-प्रोड्यूसर की कहानी सुना रहा हूं। एक तरह से आप कह सकते हैं कि आप उन्हें मसाला फिल्मों के जनक कह सकते हैं। अमिताभ बच्चन को स्टार बनाने में उनका बड़ा योगदान था। अब सस्पेंस खत्म करता हूं। आज मनमोहन देसाई की कहानी सुना रहा हूं। अगले हफ्ते यानी 26 फरवरी को उनका जन्मदिन है और एक मार्च को उनकी पुण्यतिथि होती है। 1994 में उनका इंतकाल हो गया था। आज की कहानी को मैंने नाम दिया है- मनजी भाई की छोटी सी लव स्टोरी...

मनमोहन देसाई का जन्म 26 फरवरी, 1937 को गुजराती फिल्मकार कीकू भाई देसाई के घर बॉम्बे में हुआ था। वह बॉलीवुड में ‘मनजी’ के नाम से मशहूर थे और उन्हें एंटरटेनर नंबर-1 कहा जाता था। घर में फिल्मी माहौल रहने के कारण उनका रुझान बचपन से ही फिल्मों की ओर हो गया था। 1960 में मनमोहन देसाई को अपने भाई सुभाष देसाई की फिल्म ‘छलिया’ को डायरेक्ट करने का मौका मिला था। मनमोहन देसाई ने अपने 29 साल के फिल्मी करियर में 20 फिल्में बनाईं, जिसमें से 13 सुपरहिट रहीं। मनमोहन देसाई उन निर्देशकों में हैं, जिन्होंने भारतीय सिनेमा को एक नया आयाम दिया। प्रकाश मेहरा ने अमिताभ को अगर ‘एंग्री यंग मैन’ बनाया तो मनमोहन देसाई ने उन्होंने ‘बिग बी’ बनाया। मनजी भाई ने अमिताभ को लेकर ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘परवरिश’, ‘सुहाग’, ‘नसीब’, ‘देश प्रेमी’, ‘कुली’, ‘मर्द’, ‘गंगा जमुना सरस्वती’ और ‘तूफान’ में कास्ट किया।

मनजी भाई ने जीवनप्रभा गांधी से शादी की थी, लेकिन 1979 में जीवनप्रभा की की मौत हो गई। उनके जाने से मनमोहन देसाई अकेले पड़ गए। इसके बाद उन्होंने 1992 में 55 की उम्र में 54 साल की नंदा से सगाई की थी। कहा जाता है कि मनमोहन देसाई शादी से पहले ही नंदा से प्यार करते थे। हालांकि, नंदा के शर्मीले स्वभाव के कारण उन्होंने कभी अपने प्यार का इजहार नहीं किया। दोनों की शादी भी हो जाती, लेकिन तभी नंदा की मां को कैंसर हो गया तो ऐसे हालात में दोनों ने थोड़ा रुककर शादी करने का फैसला किया।  लेकिन 1994 में उनका निधन हो गया। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनकी मौत उनके घर की बालकनी से गिरने से हुई थी। उस वक्त ऐसी भी खबरें थीं कि उन्होंने सुसाइड कर लिया था। हालांकि उनकी मौत का राज आज भी रहस्य है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, उनकी कई फिल्में फ्लॉप हो रही थीं। वहीं, वह पीठ के दर्द से भी लंबे वक्त से जूझ रहे थे। नंदा जी भी ने फिर शादी नहीं की और 25 मार्च 2014 को हार्ट अटैक से उनकी मौत हो गई। 

मनमोहन देसाई और कादर खान की गजब की दोस्ती थी। दोनों की कमाल मुलाकात भी हुई थी। ये किस्सा खुद कादर खान ने सुनाया था।

मनमोहन देसाई – “मेरे को मालूम है कि तुम मियाँ भाई लोगों को लिखने को आता नहीं है। तुम या तो शायरी लिखते हो या मुहावरे वगैरह। मुझे शेर-ओ-शायरी नहीं चाहिए। डायलॉग चाहिए। क्लैप ट्रैप डायलॉग चाहिए। तालियां बजना चाहिए। लिख सकता है? बकवास लिख के लाएगा तो मैं उसको फाड़ के नाली में फेंक दूंगा।”

कादर खान – “अगर अच्छा लिख कर लाया तो?”

मनमोहन देसाई – “तो फिर मैं तुझे सिर पे बिठा के नाचूंगा, जैसे लोग गणपति को लेकर नाचते हैं।

मनमोहन देसाई ने सबसे पहले अपनी फिल्म ‘रोटी’ (राजेश खन्ना, मुमताज़) का क्लाइमैक्स लिखने का काम दिया। कादर खान ने उसे चैलेंज के तौर पर लिया और रात भर बैठ कर डायलॉग लिख डाले। दूसरे दिन अपनी लेम्ब्रेटा स्कूटर लेकर मनमोहन देसाई के घर खेतवाड़ी इलाके पहुंचे। वो मोहल्ले के बच्चों के साथ क्रिकेट खेल रहे थे, उन्होंने कादर खान की तरफ देखा और हल्के होठों से बुदबुदाए, “उल्लू का पट्ठा!”

कादर खान – “आपने मुझे गाली दी।”

मनमोहन देसाई – “नहीं, मैंने गाली नहीं दी।”

कादर खान – “सर, मैं बुदबुदाते हुए होठों को दूर से पढ़ लेने का हुनर जानता हूं।”

मनमोहन देसाई कादर खान की इस काबिलियत के इस कदर कायल हुए कि बरसों बाद उन्होंने फिल्म ‘नसीब’ में इस चीज का भी इस्तेमाल किया। याद कीजिए, जब हीरोइन किम दूरबीन की मदद से बहुत दूर विलेन के होठों को हिलता देख सारे डायलॉग समझ जाती है और बोलकर बता देती है।

रोटी का क्लाइमैक्स पढ़कर मनमोहन देसाई इतने खुश हो गए कि उसी वक़्त हाथ का सोने का ब्रेसलेट निकाल कर दे दिया। पच्चीस हजार कैश और एक टेलीविजन सेट भी गिफ्ट में दे दिया। कादर खान बताते थे, ‘मनमोहन देसाई मुझसे डांटकर, चिल्लाकर, झिंझोड़कर और गाली देकर काम करवा लिया करते थे।’

एक बार मनमोहन देसाई ने कादर से पूछा – “कितने पैसे लेता है लिखने के?”

कादर खान (थोड़े सकुचाते हुए) – “पच्चीस हजार”

विशुद्ध व्यावसायिक बुद्धि वाले गुजराती भाई मनमोहन देसाई चाहते तो तुरंत हां कह देते, लेकिन...मनमोहन देसाई बोले – “राइटर है या हज्जाम? मैं तेरे को एक लाख रुपए देगा। मस्त डायलॉग लिखना प्यारे।”

सिलसिला चल निकला। मनमोहन देसाई और प्रकाश मेहरा की अमिताभ बच्चन के साथ वाली ढेरों फिल्मों में कादर खान ने ऐसे-ऐसे सुपर-डुपरहिट डायलॉग लिखे, जिनको सुनकर सिनेमा हाल में दर्शक तालियों की गड़गड़ाहट के साथ सिक्के उछाला करते थे। बस यही थी आज की कहानी....

दोस्तो, अक्सर ईश्वर अपार टैलेंटेड लोगों को उम्र नहीं देता। शायद इसलिए नहीं देता कि वो उन्हें जो सृजनशीलता देता है, उसके लिए उम्र मायने नहीं रखती। आदि शंकराचार्य, विवेकानंद, किशोर दा, रफी साहब, मुंशी प्रेमचंद, श्रीनिवास रामानुजन टैलेंटेड हस्तियों के लंबी फेहरिस्त है, जो 60 का पायदान नहीं चढ़ पाए। लेकिन वो दुनिया को वो चीजें दे गए, जो सदियां संजोकर रखेंगीं। ईश्वर हुनर सबको देता है, लेकिन उसे निखारना आपको ही पड़ता है। खुद को निखारिए और आसमान पर पहुंच जाइए।