28 मई 1883 को नासिक के भागुर गांव में पैदा हुए विनायक दामोदर सावरकर चितपावन ब्राह्मण थे। चितपावन ब्राह्मण मूल रूप से कोंकण में रहा करते थे। मुंबई में रहने वाले बेन इजराइली लोगों की लोककथाओं में इस बात का जिक्र आता है कि चितपावन ब्राह्मण उन्हीं 14 इजराइली यहूदियों के खानदान से हैं जो किसी समय कोंकण के तट पर आए थे। चितपावन ब्राह्मणों के बारे में 1707 से पहले बहुत कम जानकारी मिलती है। सावरकर पुणे के फर्ग्युसन कॉलेज से पढ़े थे।
विनायक दामोदर सावरकर ने 23 वर्ष की उम्र में 9 जून, 1906 को नासिक से अपनी पत्नी यमुना और छोटे बेटे प्रभाकर को अलविदा कहा और कानून की पढ़ाई करने के लिए इंग्लैंड जाने के लिए बॉम्बे से एसएस पर्शिया शिप पर सवार हुए। जब वे यात्रा कर रहे थे तो बॉम्बे सरकार ने सावरकर के बारे में इंडिया ऑफिस, लंदन में आर. रिची को एक खुफिया पत्र भेजा। सावरकर की कुछ हद तक वैसी ही राय थी, जैसी क्रांतिकारी दामोदर हरि चापेकर की थी। चापेकर ने 22 जून 1897 को पुणे में प्लेग कमिश्नर डब्ल्यूसी रैंड की हत्या की थी। चापेकर रैंड के प्लेग महामारी से निपटने के अत्याचारी और असंवेदनशील तरीकों का विरोध कर रहे थे। अंग्रेजों ने जो अंदाजा लगाया था वो जल्द ही स्पष्ट हो गया। स्टीमशिप पर सवार होकर, सावरकर ने हरनाम सिंह और उनके कुछ युवा सह-यात्रियों को अपने अंडरग्राउंड संगठन 'अभिनव भारत' में शामिल किया।