टाइटैनिक के लिए दावा किया गया था- इसे ईश्वर भी नहीं डुबा सकते, लेकिन..., 5 घंटे में अटलांटिक के रसातल में पहुंच गया

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The Sootr CG
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टाइटैनिक के लिए दावा किया गया था- इसे ईश्वर भी नहीं डुबा सकते, लेकिन..., 5 घंटे में अटलांटिक के रसातल में पहुंच गया

अगले हफ्ते 10 अप्रैल आने वाला है। आज से 111 साल पहले कल ही के दिन ब्रिटेन के साउथैम्पटन से एक शिप की यात्रा शुरू हुई थी। इस शिप का नाम था टाइटैनिक। टाइटैनिक को उस समय एक तैरते हुए शहर की उपाधि दी गई थी। इस जहाज की लंबाई देखकर उस समय लोग हैरान हो गए थे। इसकी वजह शिप का विशालकाय आकार था, जो उस समय का सबसे बड़ा समुद्री जहाज था। टाइटैनिक को लेकर डिरेक्टर जेम्स कैमरन ने एक फिल्म बनाई, जो दुनिया की सबसे ज्यादा कमाई करने वाली फिल्मों में से एक है। फिल्म टाइटैनिक और जेम्स कैमरन के बात करने लगूंगा तो कहानी सुना ही नहीं पाऊंगा। 

दरअसल टाइटैनिक को अन्य क्रूज लाइनरों के साथ कॉम्पिटीशन करने के लिए डिजाइन किया गया था। 20वीं सदी के इस दौर में प्रवासियों और अमीर यात्रियों की संख्या बढ़ रही थी। ये लोग यूरोप से न्यूयॉर्क के बीच कारोबार किया करते थे। इस दौरान क्रूज लाइनरों पर बड़ी संख्या में लोगों के खानपान का ख्याल रखा जाता था। टाइटैनिक को इन्हीं शिप्स से टक्कर लेनी थी। उसे इसी तरह डिजाइन किया गया था, इसे बनाने वाली कंपनी ने इसमें वो हर फैसिलिटी दी थी, जो लोगों को वाह कहने पर मजबूर कर दे। 

ब्रिटिश शिपिंग कंपनी व्हाइट स्टार लाइन को 3 ‘ओलंपिक क्लास’ शिप बनाने का जिम्मा सौंपा गया। टाइटैनिक का निर्माण 31 मार्च 1909 को शुरू हुआ। नॉर्थ आयरलैंड के बेलफास्ट के हारलैंड एंड वूल्फ शिपयार्ड में टाइटैनिक को तैयार किया गया। टाइटैनिक को तैयार करने में उस समय 7.5 मिलियन डॉलर का खर्च आया, जो आज के समय 192 मिलियन डॉलर (करीब 14 अरब रुपए) बैठता है। इस जहाज में 16 वॉटरटाइट कंपार्टमेंट थे, जो जहाज में पानी भरने के दौरान बंद हो सकते थे। इस तरह ये जहाज अपने समय से आगे की सोचकर तैयार किया गया। लेकिन...लेकिन होनी को तो कुछ और ही मंजूर था।

11 मई 1911 को इस विशालकाय टाइटैनिक को लोगों के सामने पेश किया गया। इसे देखने के लिए 10 हजार लोग जुटे। 10 अप्रैल 1912 को इसने ब्रिटेन के साउथैम्पटन से 2200 यात्रियों के साथ अपनी यात्रा शुरू की। ऐसा नहीं था कि टाइटैनिक की चर्चा दुनियाभर में सिर्फ इसके आकार को लेकर हो रही थी, बल्कि इसके अंदर जिस-तरह की सुविधाएं दी गई थीं, वो अपने आप में ही शाही अंदाज की थीं।

यात्रा के चौथे दिन बाद 14 अप्रैल की रात 11.40 बजे टाइटैनिक की टक्कर एक आइसबर्ग यानी बहुत बड़े बर्फ का टुकड़े से हो गई। टक्कर के बाद शिप का अलार्म तो बजा, लेकिन जब तक इंजन को घुमाकर जहाज को रास्ते से हटाया जाता, तब तक टक्कर हो चुकी थी। टक्कर के तुरंत बाद टाइटैनिक में तेजी से पानी भरने लगा. जहाज का अगला हिस्सा अब धीरे-धीरे समुद्र में डूबने लगा। इस दौरान जहाज पर सवार लोगों के बीच अफरा-तफरी का माहौल था। टक्कर के करीब तीन घंटे बाद यानी रात 2.20 बजे जहाज का अगला हिस्सा समुद्र के आगोश में समा गया और इसका पिछला हिस्सा ऊपर उठ गया। इसके बाद जहाज के दो टुकड़े हुए और करीब 2 घंटे में ये पूरी तरह से अटलांटिक महासागर के बर्फीले पानी में डूब गया। इस हादसे में करीब 700 लोगों की ही जान बच पाई, जबकि करीब 1500 लोगों की मौत हो गई।

बीबीसी न्यूज़ ब्राज़ील ने कुछ एक्सपर्ट्स से बात करके रहस्यों के जवाब तलाशने की कोशिश की। टाइटैनिक के बारे में कहा गया था कि यह डूब नहीं सकता, ईश्वर भी इसे डुबा नहीं सकते, पर जो हुआ, वो हमारे सामने है। ब्राजील के ओशन इंजीनियर अलेक्जेंडर द पिन्हो अल्हो के मुताबिक, काफी सोच विचार करने के बाद टेक्नीकल टीम ने जहाज की ऊंचाई निर्धारित की थी। पानी भरने की स्थिति में भी उन लोगों का आकलन था कि पानी छत की ऊंचाई तक नहीं पहुंच पाएगा। उन्होंने छत पर भी सुरक्षित कंपार्ट्मेंट्स बनाए थे। लेकिन तब किसी ने आइसबर्ग से टक्कर के बारे में सोचा नहीं होगा। और टक्कर इतनी जोरदार थी कि जहाज की मुख्य बॉडी की आधी लंबाई तक छेद हो गया था। ऐसी परिस्थिति में पानी छत तक पहुंच गया था।