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BHOPAL. हिंदुओं की दिवाली और मुस्लिमों की ईद की तरह ही ईसाई समुदाय का सबसे पवित्र त्योहार है क्रिसमस। हर साल दिसंबर में सर्दी के साथ क्रिसमस को लेकर लोगों उत्साह भी चरम पर होता है। इस दिन बच्चे गिफ्ट के लिए लाल रंग के कपड़ों में सफेद दाढ़ी-मूंछ वाले सेंटा क्लॉज के आने का इंतज़ार करते हैं। क्रिसमस ईसाई धर्म के संस्थापक जीसस क्राइस्ट के जन्म की खुशी में मनाया जाता है।
जिब्रील ने मरियम को बताया था कि उनकी कोख से जीसस आएंगे
जीसस क्राइस्ट यानी ईसा मसीह को ईश्वर की संतान माना जाता है। क्रिसमस का नाम भी उन्हीं के नाम पर पड़ा। जीसस की जन्मतिथि को लेकर काफी मतभेद रहे। यहां तक कि बाइबल में भी उनके जन्म की तारीख का कोई उल्लेख नहीं मिलता। ईसाई धर्म में प्रचलित कथा के मुताबिक, भगवान ने अपने दूत जिब्रील, जिसे गैब्रियल भी कहते हैं, को मरियम नाम की एक महिला के पास भेजा था। जिब्रील ने मरियम को बताया कि जो बच्चा उनकी गर्भ से जन्म लेगा, उसका नाम जीसस क्राइस्ट होगा और वह ऐसा राजा बनेगा, जिसका साम्राज्य असीमित होगा।
मरियम और युसूफ की शादी हुई। शादी के बाद दोनों यहूदिया प्रांत के ब्रेथलेहेम (वर्तमान में इजराइल) में रहने लगे। यहीं पर एक रात को गौशाला में ईसा मसीह का जन्म हुआ था। शुरू में तो ईसाई धर्म के लोग ईसा मसीह के जन्म के बारे में ही एकराय नहीं थे, कोई 14 दिसंबर कहता था तो कोई 10 जून तो कोई 2 फरवरी को उनका जन्मदिन मनाता था। वहीं तीसरी शताब्दी में जाकर 25 दिसंबर को ईसा मसीह का जन्मदिन मनाना शुरू किया गया। माना जाता है कि इसी दिन आकाश में एक तारा बहुत ज्यादा चमक रहा था और इससे लोगों को इस बात का अहसास हुआ कि रोम के शासन से बचने के लिए मसीहा ने जन्म ले लिया है।
क्रिसमस की जगह का सूर्य का उत्सव मनाया जाता था, 336 ईसवी से मनाया जाने लगा क्रिसमस
पहले 25 दिसंबर को क्रिसमस मनाने का रिवाज नहीं था। सूर्य के उत्तरायण में जाने के मौके पर एक दूसरा बड़ा त्योहार मनाया जाता था। इस दिन सूर्य की उपासना की जाती थी। 25 दिसंबर से दिन बढ़ने लगता है, इसलिए ईसाइयों के बीच मान्यता थी कि इस दिन सूर्य का पुनर्जन्म होता है। उन्हें जीसस क्राइस्ट के जन्म की वास्तविक तिथि के बारे में पता नहीं था तो उन्होंने इसी खास मौके को यीशु के जन्मदिन यानी क्रिसमस के रूप में मनाना शुरू कर दिया। इससे पहले ईस्टर ईसाइयों का प्रमुख त्योहार था। 25 दिसंबर के दिन को क्रिसमस से पहले रोम में सूर्य के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। उस वक्त रोम के सम्राट सूर्यदेव को अपना मुख्य देवता मानते थे और सूर्यदेव की आराधना की जाती थी।
इतिहास की नजर से देखें तो पोप सेक्स्तुस जूलियस अफ्रिकानुस वह पहले शख्स थे, जिन्होंने बड़े दिन की तारीख तय की। उन्होंने साल 221 में ईसाई क्रोनोग्राफी में 25 दिसंबर का उल्लेख किया है। रोम के पहले ईसाई सम्राट कॉन्सटेंटाइन ने भी इसी तारीख को मान्यता दी है।
क्रिसमस से जुड़ा पहला खास त्योहार 336 ईस्वी के दौरान रोम में मनाया गया। उसके बाद से इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई। अब यह शायद दुनिया का इकलौता त्योहार है, जब करीब सभी देशों में छुट्टी रहती है। इसे दुनिया के हर देश में हर जाति और वर्ग के लोग मनाने लगे हैं। कई मुल्कों में 24 दिसंबर की शाम से ही क्रिसमस से जुड़े कार्यक्रम शुरू हो जाते हैं। वहीं, ब्रिटेन और राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस के अगले दिन यानी 26 दिसंबर को बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। बॉक्सिंग डे यानी बॉक्स में रखकर गिफ्ट देने की परंपरा।
सेंटा क्लॉज का इतिहास
क्रिसमस को खास बनाती हैं उसकी परंपराएं। इस दिन एक-दूसरे को गिफ्ट दिया जाता है। इसकी शुरुआत करने वाले थे सेंट निकोलस। इन्हें फादर क्रिसमस भी कहते हैं। लेकिन सबसे प्रचलित नाम वह है, जिसका बच्चे बेसब्री से इंतजार करते हैं, सेंटा क्लॉज। सेंट निकोलस जन्म ईसा मसीह के करीब 280 साल बाद तुर्किस्तान के मायरा शहर में हुआ। सेंट निकोलस की जीसस में अटूट आस्था थी। माता-पिता की कम उम्र में मौत के बाद वह मोनेस्ट्री में पढ़ने चले गए और 17 साल की उम्र में पादरी की उपाधि मिल गई।
सेंट निकोलस ने अपना पूरा जीवन यीशू और उनकी सीख के प्रति समर्पित कर दिया था। वह हमेशा ग़रीब और ज़रूरतमंदों की मदद करते। बताते हैं कि उन्हें बच्चों से बेहद प्यार था। यीशू के जन्मदिन के मौके पर वह आधी रात को निकलते और बच्चों पास खाने-पीने के सामान और खिलौने रख जाते। उनकी कहानियां इतनी मशहूर हुईं कि बच्चे आज भी गिफ्ट के लिए सेंटा का इंतजार करते हैं।
कहां रहते हैं सेंटा
इसे चाहे लोगों की आस्था समझें या फिर कुछ और, लेकिन सेंटा क्लॉज के एड्रेस के बारे में यह कहा जाता है कि वे अपनी पत्नी और बहुत सारे बौनों के साथ उत्तरी ध्रुव (नॉर्थ पोल) में रहते हैं। वहां पर एक खिलौने की फैक्ट्री है जहां ढेर सारे खिलौने बनाए जाते है। सेंटा के ये बौने सालभर इस फैक्ट्री में क्रिसमस के खिलौने बनाने के लिए काम करते हैं। दुनिया भर में सांता के कई पते हैं, जहां बच्चे अपने खत भेजते हैं, लेकिन उनके फिनलैंड वाले पते पर सबसे ज्यादा खत भेजे जाते हैं। वहीं इस पते पर भेजे गए हर खत का लोगों को जवाब भी मिलता है। वहीं आप भी अपने खत सांता को नीचे लिखे गए पते पर भेज सकते हैं...
सेंटा क्लॉज,
सेंटा क्लॉज विलेज,
एफआईएन 96930 आर्कटिक सर्कल,
फिनलैंड
कई जगहों पर सांता के पोस्टल वॉलेन्टियर रहते हैं, जो सांता के नाम पर आए इन खतों का जवाब देते हैं। अब कई बच्चे सेंटा को चिट्ठी की जगह ई-मेल भेजते हैं, जिनका जवाब भी उन्हें मिलता है।
क्रिसमस ट्री की खास परंपरा, एक पिता ने बच्चे के लिए बनाया था
दूसरी अहम परंपरा क्रिसमस ट्री की है। यीशू के जन्म के मौके पर एक फर के पेड़ को सजाया गया था, जिसे बाद में क्रिसमस ट्री कहा जाने लगा। इसकी भी एक कहानी है। बताया जाता है कि क्रिसमस पर ट्री सजाने की परंपरा जर्मनी से शुरू हुई, जिसमें एक बीमार बच्चे को खुश करने के लिए उसके पिता ने सदाबहार वृक्ष को सुंदर तरीके से सजाकर उसे गिफ्ट दिया। 8वीं शताब्दी में बोनिफेस नाम के एक ईसाई धर्म प्रचारक ने इसकी शुरुआत की थी। मान्यता है कि इससे घर में सकारात्मक ऊर्जा आती है और वास्तु दोष दूर होता है। यह भी कहा जाता है कि जब जीजस का जन्म हुआ तब खुशी व्यक्त करने के लिए सभी देवताओं ने सदाबहार के पेड़ को सुंदर तरीके से सजाया और तब से ही क्रिसमस ट्री का प्रतीक समझा जाने लगा और क्रिसमस ट्री को सजाने यह परंपरा प्रचलित हो गई।
क्रिसमस मनाए जाने का विरोध भी रहा
1645 में जब ऑलिवर क्रोमवेल और उनकी शुद्धतावादी सेना ने इंग्लैंड पर कब्जा किया था तो सबसे पहले उन्होंने क्रिसमस मनाने पर रोक लगा दी थी, लेकिन थोड़े समय बाद जब चार्ल्स-2 ने इंग्लैंड पर शासन किया तो फिर से जनता की मांग पर क्रिसमस का त्योहार मनाया जाना लगा। बॉस्टन (अमेरिका) में तो 1659 से लेकर 1681 तक क्रिसमस का त्योहार मनाने पर कानूनी पाबंदी थी, यहां तक की इसे मनाने वालों पर 5 शिलिंग का जुर्माना होता था जो कि उस जमाने के हिसाब से बहुत ज्यादा रकम थी। इसके अलावा अमेरिका क्रांति के बाद अंग्रेजी तौर-तरीकों को भी बुरा माना जाना लगा था। इसके बाद 26 जून 1870 को अमेरिका में पहली बार क्रिसमस को फेडरल हॉलिडे घोषित किया गया।