नोबेल शांति अवॉर्ड की रेस में भारत के मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा, 8 साल पहले MP के कैलाश सत्यार्थी ने जीता था पुरस्कार

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Shivasheesh Tiwari
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नोबेल शांति अवॉर्ड की रेस में भारत के मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा, 8 साल पहले MP के कैलाश सत्यार्थी ने जीता था पुरस्कार

BHOPAL. नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा 7 अक्टूबर को नॉर्वे के ओस्लो में की जाएगी। टाइम मैगजीन और रॉयटर्स की वेबसाइट के मुताबिक, इस बार रेस में भारत से फैक्ट चेक वेबसाइट ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद ज़ुबैर का नाम शामिल है। तीन महीने पहले मोहम्मद ज़ुबैर को आईपीसी की धारा 153A और 295 के तहत गिरफ्तार किया गया था। उन पर हिंदू धर्म का अपमान करने का आरोप लगा था।





इस बार ये हस्तियां नोबेल शांति की रेस में





रॉयटर्स के एक सर्वे के मुताबिक, नॉर्वे के सांसदों ने इस बार प्रतीक सिन्हा और मोहम्मद ज़ुबैर के अलावा यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडाइमर जेलेंस्की, बेलारूस की विपक्षी नेता स्वेतलाना सिखानौस्काया, ब्रिटिश नेचर ब्रॉडकास्टर डेविड एटनबरो, विश्व स्वास्थ्य संगठन, पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग, पोप फ्रांसिस, तुवालु के विदेश मंत्री साइमन कोफे और म्यांमार की नेशनल यूनिटी सरकार को नॉमिनेट किया है।





पिछली बार इन्हें मिला था अवॉर्ड





2021 के नोबेल शांति पुरस्कार मारिया रेस्सा और दिमित्री मुरातोव को दिया गया था। इन दोनों को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के प्रयास करने के लिए ये पुरस्कार दिया गया था। इससे पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा, पूर्व फिलिस्तीनी नेता यासिर अराफात, म्यांमार की सर्वोच्च नेता आंग सान सू की को भी नोबेल शांति पुरस्कार मिल चुका है।





नोबेल पुरस्कार की स्थापना कब हुई?





साल 2022 के लिए नोबेल पुरस्कार की घोषणा 3 अक्टूबर से शुरू हो गई है। 1901 में शुरू होने के बाद से 2021 तक 975 व्यक्तियों और संगठनों को 609 बार नोबेल पुरस्कार दिए जा चुके हैं। हर साल 10 दिसंबर को ये पुरस्कार दिए जाते हैं। नोबेल पुरस्कार साहित्य, चिकित्सा (शरीर विज्ञान), फिजिक्स, इकोनॉमिक्स, केमिस्ट्री और शांति के क्षेत्र में उत्कृष्ट काम के लिए दिया जाता है। नोबेल पुरस्कार के विजेताओं को 10,00,000 स्वीडिश क्रोना (लगभग 7.3 करोड़ रुपए) की पुरस्कार राशि मिलती है। नोबेल पुरस्कार की राशि किसी देश के सरकारी खजाने से नहीं दी जाती। ये राशि अल्फ्रेड नोबेल की संपत्ति के ब्याज से दी जाती है।





कौन थे अल्फ्रेड नोबेल?





अल्फ्रेड नोबेल एक वैज्ञानिक थे, जिनका जन्म 21 अक्टूबर 1833 को हुआ था। उन्होंने अपने जीवनकाल में 355 आविष्कारों और पेटेंटों से करोड़ों में रुपए कमाए। उनका निधन 63 साल की उम्र में 10 दिसम्बर 1896 को हुआ था। उनके आविष्कारों में एक बड़ी संख्या हथियार, गोला-बारूद या विस्फोटक की थी। लेकिन वह डायनामाइट के आविष्कार के लिए दुनिया भर में प्रसिद्ध हुए, जो नाइट्रोग्लिसरीन की विस्फोटक शक्ति का उपयोग करने का एक सुरक्षित और आसान साधन था। 





ऐसे हुई नोबल पुरस्कार की शुरुआत





किंवदंती है कि डायनामाइट की खोज के बाद एक दिन अखबार में छपा- 'डॉ अल्फ्रेड नोबेल, जो पहले से कहीं अधिक तेजी से लोगों को मारने के तरीके खोजकर अमीर बने, कल उनकी मृत्यु हो गई।' ये खबर अखबार में गलती से झूठी सूचना पर छप गई थी। कहा जाता है कि इस वाकये ने अल्फ्रेड की आंखें खोल दी और वे सोचने लगे कि उनकी मौत के बाद उन्हें दुनिया कैसे याद करेगी। वह नहीं चाहते थे कि उसे केवल विनाश के हथियार बनाने और उसके आविष्कारों के लिए याद किया जाए। इसलिए उन्होंने अपनी वसीयत में संपत्ति का 94 फीसदी भाग (उस समय लगभग 31 मिलियन SEK) उन लोगों को पुरस्कार देने के लिए रखा, जिनके प्रयासों ने साहित्य, चिकित्सा,इकोनॉमिक्स, फिजिक्स, केमिस्ट्री और शांति के क्षेत्र में काम से "मानव जाति को सबसे बड़ा लाभ" देने का काम किया है। इसके ठीक 5 साल बाद 1901 में नोबेल की अंतिम वसीयत को अमलीजामा पहनाया गया और नोबेल पुरस्कार देने का काम शुरू हुआ। पुरस्कार देने की शुरुआत रेड क्रॉस के संस्थापक जीन हेनरी ड्यूनेन्ट से की गई। शुरू होने से लेकर अब तक 19 बार इन पुरस्कारों की घोषणा नहीं की गई।





कौन देता है नोबेल पुरस्कार?





डॉ अल्फ्रेड नोबेल ने अपनी वसीयत में लिखा था- 'फिजिक्स और केमिस्ट्री के लिए पुरस्कार स्वीडिश एकेडमी ऑफ साइंसेज द्वारा दिया जाएगा; स्टॉकहोम में स्थित करोलिंस्का इंस्टिट्यूट चिकित्सा या शरीर विज्ञान के लिए विजेताओं को चुनेगा, स्टॉकहोम एकेडमी द्वारा साहित्य के लिए और नॉर्वेजियन स्टॉर्टिंग द्वारा चुने जाने वाले पांच व्यक्ति की एक समिति द्वारा शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाएगा।"  नोबेल फाउंडेशन में पांच स्वीडिश या नार्वेजियन नागरिकों का बोर्ड होता है। बोर्ड के अध्यक्ष को परिषद में स्वीडिश राजा द्वारा नियुक्त किया जाता है, जबकि अन्य चार सदस्यों को उन संस्थानों के ट्रस्टियों द्वारा नियुक्त किया जाता है, जो पुरस्कार प्रदान करते हैं। हालांकि साल 1995 से, नोबेल फाउंडेशन के सभी सदस्यों का चयन संस्थानों के ट्रस्टियों द्वारा ही दिया जाता है। रग्नार सोहलमैन और रुडोल्फ लिलजेक्विस्ट ने नोबेल फाउंडेशन की स्थापना की थी।





2014 में मध्य प्रदेश के कैलाश सत्यार्थी संयुक्त विजेता बने





2014 में मध्य प्रदेश के विदिशा से ताल्लुक रखने वाले और बचपन बचाओ आंदोलन से जुड़े कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया था।





गांधीजी 5 बार नॉमिनेट हुए थे, लेकिन नोबेल नहीं मिला





महात्मा गांधी 1937, 38, 39, 47, 48 में नोबेल कमेटी द्वारा नॉमिनेट हुए थे। इसके बावजूद उन्हें अवॉर्ड नहीं मिल पाया था। इसकी वजह भारत में अंग्रेजों का शासन माना जाता है। 1948 में खुद मानवाधिकार आंदोलनकर्ता क्वेकर ने इस पुरस्कार के लिए गांधी का नाम प्रस्तावित किया था(क्वेकर को 1947 में नोबेल मिला था )। नामांकन की लास्ट डेट के महज 2 दिन पहले गांधी की हत्या हो गई थी। इस समय तक नोबेल कमेटी को गांधी के पक्ष में पांच सिफारिशें मिल चुकी थीं। लेकिन तब समस्या यह थी कि उस समय तक मरणोपरांत किसी को नोबेल पुरस्कार नहीं दिया जाता था। तब नोबेल कमेटी ने कहा था कि हम किसी भी जिंदा उम्मीदवार को इस लायक नहीं समझते कि पुरस्कार दिया जाए, इसलिए इस साल का नोबेल इनाम किसी को भी नहीं दिया जाएगा।





इन भारतीयों को मिला है नोबेल





भारत के नोबेल पुरस्कार विजेताओं के नाम- वेंकट रामाकृष्णन, मदर टेरेसा, रविंद्रनाथ टैगोर, हरगोविंद खुराना, सीवी रमण, वीएएस नायपॉल, कैलाथ सत्यार्थी, आरके पचौरी, सुब्रमष्यम चंद्रशेखर और अमर्त्य सेन।





नोबेल के लिए कैसे भरे नामांकन और क्या है चयन प्रक्रिया?





नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो नामांकन मानदंडों को पूरा करे वह भर सकता है। नामांकन भरने के लिए निमंत्रण पत्र की जरूरत नहीं है। नामांकन करने वाले व्यक्ति की जानकारी 50 साल बाद तक भी गुप्त रखा जाता है। नॉर्वेजियन नोबेल समिति नामांकन किए गए लोगों में से नोबेल शांति पुरस्कार विजेताओं का चयन करती है। सितंबर महीने से नामांकन भरने की प्रक्रिया शुरू होती है।  1 फरवरी से पहले नामांकन भेजा जा सकता है।





इसके बाद समिती इन नामों पर चर्चा करती है और फरवरी से मार्च महीने के बीच एक लिस्ट तैयार की जाती है। इसके बाद इसे मार्च से अगस्त तक एडवाइजर रिव्यू के लिए भेजा जाता है। अक्टूबर में समिति नाम का चयन करती है। चयन, समिति के सभी सदस्यों के वोटिंग के आधार पर होती है। इसके बाद विजोताओं के नाम की घोषणा होती है। 





मोहम्मद जुबैर कौन हैं?





मोहम्मद जुबैर का जन्म 29 दिसंबर 1988 को बेंगलुरु (कर्नाटक) में हुआ। उन्होंने रमैया प्रौद्योगिकी संस्थान से शिक्षा प्राप्त की। जुबैर ने टेलीकॉम कंपनी नोकिया में सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में 10 साल से अधिक काम किया।मोहम्मद जुबैर और प्रतीक सिन्हा ऑल्ट न्यूज नामक एक वेबसाइट चलाते हैं। ये वेबसाइट सोशल मीडिया पर फैलाई जाने वाली कथित फेक न्यूज का फैक्ट चेक करती है। मालूम हो कि इस साल जून महीने में मोहम्मद जुबैर को साल 2018 में किए गए एक ट्वीट के लिए दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया था। जुबैर की गिरफ्तारी का मामला पूरी दुनिया में छाया था, जिसका कई संस्थाओं ने विरोध किया था। दिल्ली पुलिस ने उन पर धर्म के आधार पर विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने और धार्मिक भावनाओं को आहत करने के लिए जानबूझकर काम करने का आरोप लगाया था। इस मामले में एक सोशल मीडिया यूजर द्वारा एफआईआर दर्ज करवाई गई थी। गिरफ्तारी के बाद लगभग महीनेभर जेल में बिताने के बाद जुबैर को सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई थी। जानकारी के मुताबिक इंस्टाग्राम पर जुबैर के लगभग 26.3 हजार से ज्यादा फॉलोअर्स हैं। जबकि ट्विटर प्रोफाइल में उनके 547.7 हजार से अधिक फॉलोअर्स हैं।





कौन हैं प्रतीक सिन्हा ? 





मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, ऑल्ट न्यूज के एडिटर प्रतीक सिन्हा एक फॉर्मर सॉफ्टवेयर इंजीनियर हैं। जो की फिजिसिस्ट, लॉयर और ह्यूमन राइट एक्टिविस्ट मुकुल सिन्हा (Mukul Sinha) के बेटे हैं। मुकुल सिन्हा की पार्टी जन संघर्ष मंच (Jan Sangharsh Manch) समाज के वंचित लोगों के अधिकारों के लिए काम करती है। अपनी पार्टी (JSM) में मुकुल सिन्हा अध्यक्ष पद पर कार्यरत हैं। दुनिया की बड़ी सॉफ्टवेयर कंपनियों में से एक गूगल ने प्रतीक को Google NewsLab के एशिया-प्रशांत शिखर सम्मेलन के लिए आमंत्रित किया था, जहां उन्होंने फेक न्यूज़ को रोकने के लिए अपने सुझाव गूगल के सामने रखे और गूगल द्वारा प्रतीक के सुझावों को काफी पसंद किया गया था। इसके बाद 2017 में प्रतीक की मुलाक़ात उनके साथी मोहम्मद जुबैर से हुई, जिसके बाद दोनों ने मिलकर ऑल्ट न्यूज़ की स्थापना की।



 



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