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Indore. पार्षद हारे, फिर ऐसे चले कि चार बार से विधायक हैं, मंत्री भी बने

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Lalit Upmanyu
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Indore. पार्षद हारे,  फिर ऐसे चले कि चार बार से विधायक हैं, मंत्री भी बने

Indore. एक ऐसा नेता जो छोटे चुनाव में इतना असफल हुआ कि लगा आगे की राजनीति मुश्किल हो जाएगी लेकिन ऊपर वाले ने कुछ और ही कहानी लिख रखी थी। छोटे चुनाव की पहली असफलता देखने और पार्टी की नजर में कमजोर साबित होने के बावजूद वो डटा रहा। नतीजा यह निकला कि वो न केवल बड़े चुनाव जीत रहा है, बल्कि मंत्री तक बन चुका है।



ये नेता है विधायक महेंद्र हार्डिया ( Mahendra Hardiya) उर्फ बाबा। इनकी राजनीतिक का चाल-चलन इतना ऊबड़-खाबड़ है कि कोई और नेता हो तो नेतागीरी ही छोड़ दे लेकिन बाबा की बाबागीरी के आगे आखिर राजनीति को भी उनके पक्ष में राजी होना पड़ा। कहानी 1995 के इंदौर नगर निगम के चुनाव की है। तब भाजपा मैदान में नए खून को आगे बढ़ाने में लगी थी। महेंद्र हार्डिया, गोपी नेमा (Gopi Nema), कैलाश विजयवर्गीय (Kailsh Vijayvergiya) जैसे नाम तब युवा भाजपा की राजनीति में स्थापित हो चुके थे या किए जा रहे थे। गोपी नेमा और विजयवर्गीय तो 1983 में पार्षद बनने के बाद विधायक बन गए थे। महेंद्र हार्डिया का पुनर्वास बाकी था सो पार्टी ने 1995 के निगम चुनाव में उन्हें पार्षद बनाने की तैयारी की। पार्टी की मंशा उन्हें महापौर बनाने की भी थी। चूंकि तब पार्षद ही महापौर चुनते थे लिहाजा महापौर का पार्षद होना जरूरी होता था। जीवन का पहला मैदानी चुनाव लड़ रहे बाबा अपनी पहली परीक्षा में असफलता को प्राप्त हो गए। कांग्रेस (Congress) के छोटे यादव (Chhote Yadav) ने उन्हें हरा दिया। राजनीति की गाड़ी फर्स्ट बैरियर पर ही अटक जाने के बावजूद बाबा ने हार नहीं मानी। 





संगठन में आए और फिर...





पार्षदी हारने के बाद बाबा कुछ साल संगठन में डटे रहे। वे करीब दस साल पार्टी के नगर अध्यक्ष रहे।  कभी पूरे, कभी कार्यवाहक। इस दौरान उन्होंने अपनी टीम बनाई, मैदानी राजनीति की सच्चाई को परखा और फिर उतरे नई तैयारी के साथ। भाग्य देखिए जो नेता पार्षद का चुनाव हार गया था उसे पार्टी ने सीधे पांच नंबर विधानसभा से विधायक का टिकट दे दिया।  ये बात 2003 की है। उस समय यह विधानसभा प्रदेश में सबसे बड़ी कहलाती थी जिसमें शहर के पॉश एरिया से लेकर सुदूर ग्रामीण इलाके तक शामिल थे। शहरी और ग्रामीण इलाकों की दूरी 25 किमी तक थी। खैर, नगर निगम के असफल बाबा यह चुनाव धूमधाम से जीतकर विधायक बन गए। जिन्होंने उन्हें विधायक बनते देखा उसमें कई इसे तुक्का मान रहे थे लेकिन पहली बार जीतने के बाद बाबा ने इलाके का दिल इस कदर जीता कि 2003 से शुरू हुआ जीत का सिलसिला 2008, 2013 और 2018 तक जारी था। पार्षद हारे, महापौर का टूटा सपना लिए बाबा चार बार से विधायक  तो हैं ही, शिवराज सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं।





जिसने हराया वो आज तक पार्षद ही है





पार्षद चुनाव में बाबा को हराने वाले छोटे यादव तब अचानक चर्चा में आ गए थे।  महापौर उम्मीदवार को जो हराया था।  तब कांग्रेस को भी उनमें संभावनाएं नजर आ रही थीं लेकिन वो संभावनाएं पार्षद तक ही सीमित होकर रह (या रख दी गई) गईं। छोटे यादव उसके बाद अलग-अलग वार्ड से पार्षद के लगातार पांच चुनाव जीत चुके हैं लेकिन इससे आगे उनकी राजनीति बढ़ ही नहीं पा रही है। जिन्हें हराकर वे चर्चा में आए थे वे चार बार विधायक होकर मंत्री तक पहुंच गए। कहते हैं राजनीति में कर्म और योग्यता के साथ भाग्य का भी हाथ होता है। इस कहानी में कुछ-कुछ ऐसा लगता है। 



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