क्या आप जानते हैंः 1947 से पहले देश के कौन से शहर अंग्रेजों की हुकूमत से हो गए थे आजाद !

author-image
एडिट
New Update
क्या आप जानते हैंः 1947 से पहले देश के कौन से शहर अंग्रेजों की हुकूमत से हो गए थे आजाद !

देश में 75 वें स्वतंत्रता दिवस (Independence Day) से आजादी के अमृत महोत्सव का आगाज हो गया है। अगले स्वतंत्रता दिवस यानी 15 अगस्त 2022 को हम सब आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मनाएंगे। सब जानते हैं कि हमें अंग्रेजी हुकूमत (British Rule) की गुलामी से 14-15 अगस्त 1947 की दरमियानी रात को आजादी मिली थी। लेकिन कम ही लोगों को यह बात पता होगी कि हमारे देश के कई इलाके 1947 से पहले ही आजाद हो गए थे। आइए आपको बताते हैं देश की उन पांच जगहों की कहानी जहां के लोगों ने अंग्रेज शासन के खिलाफ बगावत का बिगुल बजाकर अपने इलाके को 1947 से कई साल पहले ही खुद को आजाद करा लिया।

बलिया

देश आजाद होने के 5 साल पहले 8 अगस्त 1942 के समय देशभर में अंग्रेज भारत छोड़ो आंदोलन जोरशोर से चल रहा था। देश में आजादी हासिल करने की जबरदस्त लहर दौड़ गई थी। आंदोलन का असर बढ़ता देख ब्रिटिश सरकार ने गांधी-नेहरु के साथ कई बड़े नेताओं को अरेस्ट कर लिया। इन गिरफ्तारियों का देश में जमकर विरोध हुआ। उत्तरप्रदेश के बलिया (Balia) में भी प्रदर्शन हुआ।  बलिया रेलवे स्टेशन से करीब 5 किलोमीटर दूर स्थित हनुमानगंज से ऐतिहासिक  प्रदर्शन की  शुरुआत हुई। इसके चलते बलिया में भी कई गिरफ्तारियां हुई। यहां आंदोलन का रूप इतना व्यापक हो गया  कि उसके सामने गांव के चौकीदार से लेकर जिले के कलेक्टर तक को नतमस्तक होना पड़ा। इलाके में 8 अगस्त को शुरू हुए अहिंसक आंदोलन से अंग्रेज शासन के सभी गढ़ ढह गए औऱ 19 अगस्त 1942 के दिन बलिया  के लोगों ने खुद को अंग्रेजों की गुलामी से आजाद घोषित कर दिया। हालांकि उन्हें ये आजादी  सिर्फ 3 ही दिनों के लिए मिली। अंग्रेंजों ने साजिश रचकर 22 अगस्त को फिर से बलिया पर कब्जा जमा लिया था। 

सुल्तानपुर

पहले स्वतंत्रता संग्राम के चलते देश के कई हिस्सों में आजादी की मांग बुलंद हुई, इसका एक उदाहरण उत्तरप्रदेश का सुल्तानपुर (Sultanpur)  भी बना। अवध प्रांत के खास जिलों में से एक सुल्तानपुर में पुलिस लाइन में हिंदुस्तानी सिपाहियों ने विद्रोह कर दिया। विद्रोह ने ऐसा रूप धारण कर लिया कि ब्रिटिश फौज के मुखिया कर्नल फिश, कैप्टन गिविंग्स सहित कई अंग्रेजों को हिंदुस्तानी सिपाहियों ने मौत के घाट उतार दिया। इसके बाद उन्होंने जिले को आजाद घोषित कर दिया।  हालांकि सुल्तानपुर सिर्फ एक साल तक ही आजाद रह सका। बाद में अग्रेंजी हुकूमत ने फिर से सुल्तानपुर पर कब्जा कर लिया। 

आरा

1857 की क्रांति की आग ने आरा (Ara)  में भी विद्रोह की शुरुआत करवाई। उस समय 80 साल के महाराज वीर कुंवर सिंह ने अपने सेनापति के साथ मिलकर आजादी के लिए जंग लड़ी। क्रांति के प्रमुख केंद्र मेरठ, दिल्ली, कानपुर, झांसी थे, लेकिन आरा ही एकमात्र ऐसा शहर था जहां क्रांतिकारियों के खिलाफ मुकादमा दर्ज हुआ। कुंवर सिंह को जिंदा या मुर्दा पकड़वाने के लिए 10 हजार का इनाम भी रखा गया। उन्होंने 27 अप्रैल को दानापुर के सिपाहियों के साथ मिलकर आरा पर कब्जा कर जगदीशपुर रिसायत का झंडा फहरा दिया। कुछ समय बाद ब्रिटिश हुकूमत ने फिर से आरा पर कब्जा कर लिया।

हिसार

हरियाणा का हिसार( Hisar)  भी एक ऐसा स्थान था जो कुछ समय के लिए अंग्रेजों के शासन से आजाद हो गया था। 29 मई 1857 के दिन हिसार के  क्रांतिकारियों ने डिप्टी कलेक्टर विलियम वेडरबर्न समेत कई अंग्रेज सैनिकों को मारकर नागोरी गेट पर आजादी की पताका फहरा दी। इसके बाद हिसार 73 दिनों तक आजाद रहा। इसके बाद अंग्रेजों ने फिर उस पर कब्जा कर लिया।

रोचक किस्से rock rochak khabrein azadi ki rochak khabrein independence stories independence intresting stories आजादी की रोचक बातें rochak stories about indian indepedence story brfore the independence of india