BHOPAL. आर्ट को बढ़ावा देने के लिए दुनियाभर में हर साल 15 अप्रैल को वर्ल्ड आर्ट डे यानी विश्व कला दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन कला में रुचि रखने वाले कई लोग अपनी कला का प्रदर्शन करते हैं। साथ ही इस दिन लोगों अपने बीच अलग-अलग कलाओं के प्रति जागरूकता बढ़ाने का काम किया जाता है। इस दिन को मनाने की शुरूआत 15 अप्रैल, 2012 से हुई थी। तब से इस खास दिन पर लोग अलग-अलग जगहों पर प्रदर्शनी लगाते हैं और कला प्रेमी इस दिन को उत्सव के रूप में मनाते हैं। यूनेस्को 2023 में इस खास दिन को 'कला स्वास्थ्य के लिए अच्छी है' थीम पर सेलिब्रेट कर रहा है। इस दिवस को चित्रकार लिओनार्दो विंची को सम्मान देने के लिए मनाया जाता है।
कलाओं के प्रति लोगों को करते है अवेयर
इस दिन ना सिर्फ कला प्रेमी बल्कि कई संगठन भी एकजुट होते हैं। कला के क्षेत्र में लोगों की रुचि बढ़ाने पर भी विचार किया जाता है। साथ ही साथ कला से जुड़े कई मुद्दों पर भी चर्चा की जाती है। इस दिन कई जगह प्रतियोगिताओं का भी आयोजन किया जाता है। कला के प्रति लोगों को बढ़ावा देने के लिए कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं। इस दिन जगह-जगह पेटिंग्स की भी प्रदर्शनी लगाई जाती है। हर साल कला प्रेमी इस दिन के आने का बेसब्री से इंतजार करते हैं।
12 साल की उम्र से एसएच रजा कर रहे पेंटिंग
मध्यप्रदेश के मंडला जिले में 22 फरवरी 1922 जन्मे सैयद हैदर रजा को बचपन से ही पेंटिंग करने का शौक था। उन्होंने 12 साल की उम्र से वह पेंटिंग बनाना सीख गए थे। हाई स्कूल के बाद वह आर्ट स्कूल और मुंबई के Sir JJ स्कूल ऑफ आर्ट से पेंटिंग की जानकारी ली। जिसके बाद उन्होंने रंगों के ताल-मेल का बेजोड़ नमूना पेश किया। उनके चित्रों में इंडियन कल्चर की बारीकियों को देखा जा सकता है। उन्हें 2007 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। 23 जुलाई 2016 को नई दिल्ली में उनकी मृत्यु हो गई थी।
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सिनेमा के होर्डिंग बनाने से शुरू किया करियर
महाराष्ट्र के पंढरपुर में जन्मे मकबूल फिदा हुसैन की प्रारंभिक शिक्षा इंदौर से हुई। जिसके बाद वह पेंटिंग की विभिन्न कलाओं को सीखने मुंबई पहुंचे। वहां उन्होंने सिनेमा के होडिंग बनाने से अपना करियर शुरू किया। जिसके बाद 1947 में उन्हें प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप में जगह मिली। हुसैन की एक पेंटिंग क्रिस्टीज 20 लाख अमेरिकी डॉलर में बिकी थी। उन्हें पद्म विभूषण,पद्म श्री और पद्म भूषण से सम्मानित किया जा चुका है।
प्राकृतिक प्रेमी से राम
शिमला में 23 सितंबर 1924 को जन्मे राम कुमार प्राकृतिक प्रेमी है, उनको स्कूल टाइम से ही पेंटिंग में रूचि थी। नई दिल्ली के शारदा उकील स्कूल ऑफ आर्ट से पढ़ाई पूरी की। राम अपने चित्रों में नेचर की सुंदरता को निखारने के लिए रंगों का उपयोग करते थे। राम की पहचान भूमि, आसमान और भवन के पेंटिंग्स से सदा के लिए जुड़ गई।
करोड़ों में बिकी तैयब मेहता की पेंटिंग
तैयब मेहता का जन्म 26 जुलाई 1925 को गुजरात के खेड़ा जिले में हुआ था। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए बंटवारे का भयावय सीन अपनी आंखों से देखा था। विभाजन दौरान और उसके बाद हुए दंगों को राम ने अपने रंगों से जीवंत किया। उन्होंने अपनी पेंटिंग में मुंबई में एक व्यक्ति को पत्थर से पीट-पीट कर मार डालने की घटना को कैनवास पर उतारा, जो उनके निधन के बाद 17 करोड़ रुपए से ज्यादा कीमत पर बिकी। उनकी एक अन्य पेंटिंग 'गर्ल इन लव’ लगभग 4.5 करोड़ रुपए में बेची गई थी।
नग्न चित्र बनाने पर स्कूल से निकाला
अमृता शेरगिल का जन्म 30 जनवरी 1913 को बुडापेस्ट में हुआ था। उन्होंने इटली के फ्लोरेंस नगर में पेंटिंग की शिक्षा ली। वहां उन्होंने महिला का नग्न चित्र बनाया था। इसी वजह से उन्हें स्कूल से निकाल दिया गया। 1934 में भारत आने के बाद उन्होंने भारतीय कला को जानने के लिए पूरे देश का दौरा किया। उनकी पेंटिंग्स में इंडियन सेंटीमेंट साफ तौर पर देखा जा सकता था।
सोशल मुद्दों को फ्रांसिस ने बनाया मुद्दा
फ्रांसिस न्यूटन सूजा का जन्म 2 अप्रैल 1924 को गोवा के सालिगाव में हुआ था। उन्होंने अपनी पेंटिंग की पढ़ाई मुम्बई के फेमस जे जे स्कूल ऑफ आर्ट से की थी। उन्होंने अपनी पेंटिंग्स में बलात्कार, युद्ध और मृत्यु जैसे मुद्दों को बखूबी दिखाया। सूजा को शेप आर्टिस्ट के नाम से भी जाना जाता है। 2005 में उनकी पेंटिंग 'बर्थ' क्रिस्टी की नीलामी में 11.3 करोड़ रूपए में बिकी थी।
चटक रंगों का इस्तेमाल करते थे मनजीत बावा
मनजीत बावा का जन्म 1941 में पंजाब के ढुरी गांव में हुआ था। उन्होंने दिल्ली के कॉलेज ऑफ आर्ट्स और लंदन स्कूल ऑफ प्रिंटिंग से चित्रकारी के गुण सीखें। उन्होंने इंडियन पेंटिंग को ग्रे कलर की दुनिया से बाहर निकाला। वे अपनी पेंटिंग में चटक कलर्स का बड़े पैमाने पर इस्तेमाल करते थे। उनके काम को काफी सराहा भी गया। मनजीत खासतौर पर लाल रंग का इस्तेमाल करते थे।
अंधविश्वास और पाखंड पर विकास भट्टाचार्जी का प्रहार
विकास भट्टाचार्जी का जन्म का जन्म 21 जून 1940 को कोलकाता में हुआ था। उन्होंने अपनी पेंटिंग में अंधविश्वासों, पाखंड और भ्रष्टाचार पर तगड़ा प्रहार किया। उन्होंने बंगाल के साधारण मिडिल क्लास को बखूबी दिखाया। उनके पेंटिंग्स का पहला सोलो एग्जिबिशन 1965 में हुआ। विकास को उनके काम के लिए कई अवॉर्ड भी मिले। उन्हें 1971 और 1972 में ललित कला अकादमी का नेशनल अवॉर्ड दिया गया। 1988 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
जैमिनी राय ने दिया लोक कला को बढ़ावा
11 अप्रैल 1887 को जन्मे जैमिनी राय का पूरा बचपन गांव में ही बीता। इसी वजह से उनकी पेंटिंग्स में गांवों की झलक दिखती है। 1903 में 16 वर्ष की उम्र में वह कोलकाता के 'गवर्नमेंट स्कूल ऑफ आर्ट्स' चले गए। यहां उन्होंने अवनिंद्रनाथ टैगोर से पेंटिंग की बारीकियां सीखीं। जैमिनी राय ने गांवों की खूशबू को अपने चित्रों में जगह दी। उन्होंने अपनी कारीगरी से मिट्टी के मंदिरों और लोक कला को दुनियाभर में पहचान दिलाई। 1954 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण देकर सम्मानित किया।
तंजौर कला में हासिल की महारत
राजा रवि वर्मा का देश के महान चित्रकार रहें। उनका जन्म 29 अप्रैल 1848 को केरल के किलिमानूर शहर में हुआ था। उन्होंने चित्रकला की शिक्षा मदुरै के चित्रकार अलाग्री नायडू तथा विदेशी चित्रकार श्री थियोडोर जेंसन से हासिल की। उन्होंने तकरीबन 30 साल तक भारतीय पेंटिंग्स कला को अपनी सेवा दी। रवि वर्मा ने तंजौर कला में महारत हासिल की। फिर यूरोपीय कला में भी अपना परचम लहराया। रवि वर्मा ने अपनी पेंटिंग में प्रमुख रूप से हिंदू महाकाव्यों और धर्मग्रंथों का इस्तेमाल किया।