BHOPAL.आज वर्ल्ड टॉयलेट डे है। हर साल 19 नवंबर को वर्ल्ड टॉयलेट डे मनाया जाता है। इसका उद्देश्य शौचालय और स्वच्छता के बारे में लोगों में जागरुकता लाना है। हमारे देश में दो तरह की टॉयलेट सीट इस्तेमाल की जाती हैं। एक इंडियन और दूसरी वेस्टर्न टॉयलेट सीट। इंडियन टॉयलेट सीट पर उकड़ू बैठा जाता है लेकिन कई लोग ये नहीं जानते की वेस्टर्न टॉयलेट सीट पर बैठने का सही तरीका क्या है। आज वर्ल्ड टॉयलेट डे पर टॉयलेट के इतिहास से लेकर वेस्टर्न टॉयलेट सीट पर बैठने के सही तरीके के बारे में हम आपको पूरी जानकारी देंगे।
टॉयलेट का इतिहास
पहला साधारण टॉयलेट पुरातत्व वैज्ञानिकों को मेसोपोटामिया में मिला था। ये टॉयलेट करीब 6 हजार साल पुराना था। रोम में सन 315 तक 144 सार्वजनिक शौचालय बनाए जा चुके थे। टॉयलेट का इस्तेमाल एक सामाजिक चलन बन गया था। 1592 में ब्रिटेन के जॉन हैरिंगटन ने पहला फ्लश वाला टॉयलेट बनाया। इसे द एजैक्स नाम दिया गया। टॉयलेट पहले लग्जरी माने जाते थे लेकिन प्लंबिंग के विकास के साथ ही बड़े पैमाने पर टॉयलेट बनाए जाने लगे। धीरे-धीरे टॉयलेट घर-घर तक पहुंच गए।
भारत में टॉयलेट पर उकड़ू बैठने की व्यवस्था
भारत और आसपास के पड़ोसी देशों में टॉयलेट पर उकड़ू ही बैठा जाता है। पश्चिमी सभ्यता के आने के बाद टॉयलेट सीट और बैठने की व्यवस्था में बदलाव हुआ। लोगों को वेस्टर्न टॉयलेट सीट का इस्तेमाल ज्यादा सुविधाजनक लगा। लोग उन वैज्ञानिकों के तर्कों को एकदम भूल गए जिन्होंने वेस्टर्न टॉयलेट के डिजाइन पर सवाल खड़े किए थे।
वैज्ञानिकों को पसंद नहीं आया तरीका
यूरोपीय डॉक्टरों की टीम 20वीं सदी के मध्य में अफ्रीका के ग्रामीण इलाकों में लोगों की सेहत के बारे में जानने पहुंची। वैज्ञानिकों का अनुमान था कि वहां के लोग शारीरिक रूप से कमजोर होंगे क्योंकि उन्हें खानपान और रहन-सहन का तरीका नहीं जानते लेकिन उन्हें इसका उल्टा देखने को मिला। अफ्रीका के ग्रामीणों को पाचन और पेट से जुड़ी समस्याएं ना के बराबर थीं, जबकि ब्रिटेन में ये आम समस्याएं थीं। अफ्रीका जैसे दूसरे विकासशील देशों में भी लोगों को पाचन और पेट से जुड़ी बीमारियां नहीं थीं। डॉक्टरों ने पता लगाया कि सिर्फ खाने-पीने की वजह से नहीं, मल त्याग करते वक्त बैठने के तरीके में अंतर की वजह से ये अंतर आया है।
टॉयलेट में बिताने वाले वक्त में अंतर
अलग-अलग सर्वे से पता चला कि पश्चिमी देशों में लोग एक बार टॉयलेट जाते हैं तो वहां 114 से 130 सेकंड का वक्त बिताते हैं। वहीं विकासशील देशों में लोग उकड़ू बैठकर मल त्याग करने हैं और उन्हें सिर्फ 51 सेकंड का वक्त लगता है।
यूरोपीय टॉयलेट के डिजाइन को नकारा
1960 के मध्य में कोर्नेल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एलेक्जेंडर किरा ने यूरोपी टॉयलेट को सबसे बुरा डिजाइन कहा। डॉ. हेनरी एल. बोकस ने 1964 में अपनी किताब गैस्ट्रोएंट्रोलॉजी में दावा किया कि उकड़ूं बैठना आदर्श मल त्याग करने का तरीका है। 1966 में डॉ. एलेक्जेंडर कीरा ने अपनी किताब 'द बाथरूम' में तर्क दिया कि दीर्घशंका के लिए उकड़ूं बैठना इंसानी फितरत है। इस पोजिशन में मल त्यागने के लिए शरीर को कम जोर लगाना पड़ता है।
डॉ. डोव सिकिरोव की स्टडी
2003 में डॉ. डोव सिकिरोव ने एक स्टडी की। इसकी रिपोर्ट में उन्होंने बताया कि टॉयलेट पर उकड़ू बैठने की तुलना में टांगें नीची करके बैठने पर बहुत ज्यादा जोर लगाना पड़ता है। इस पोजिशन में समय भी ज्यादा लगता है। वैज्ञानिकों ने सलाह दी कि उकड़ू बैठकर टॉयलेट इस्तेमाल करते वक्त आपकी टांगें शरीर से 35 डिग्री के एंगल पर होनी चाहिए। 35 डिग्री का एंगल वेस्टर्न टॉयलेट में संभव नहीं था, इसलिए उसके डिजाइन को सिरे से नकार दिया गया।
टॉयलेट पर बैठने का सही तरीका क्या है ?
आप इंडियन या वेस्टर्न कोई भी टॉयलेट इस्तेमाल करें लेकिन उस पर सही पोजिशन में बैठने का तरीका जान लें। वेस्टर्न टॉयलेट पर बैठने के दौरान हमारी गुदा नालिका 90 डिग्री के एंगल पर होती है। पेट और मल का सारा भार मलाशय और उसके आसपास की नसों पर आता है। ज्यादा जोर लगाने से नसों में सूजन आ सकती है। आपको कब्ज, अमाशय में गड़बड़ी, हर्निया और बवासीर की शिकायत हो सकती है। मशहूर अमरीकी कलाकार एल्विस प्रेस्ले के डॉक्टर का कहना था कि जिस दिल के दौरे से एल्विस की मौत हुई थी, वो उन्हें टॉयलेट में ज्यादा जोर लगाने की वजह से पड़ा था।
टॉयलेट पर उकड़ूं बैठने पर बड़ी आंत की अंदरूनी गुहाओं में दबाव बनता है। इस पोजिशन में पेट साफ होने में परेशानी नहीं होती। उकड़ूं बैठने से टांगें आपके शरीर से 35 डिग्री के कोण पर होती हैं। आपकी मांसपेशियां पेट पर दबाव डालती हैं और आसानी से पेट साफ हो जाता है।
अगर आप इंडियन टॉयलेट इस्तेमाल कर रहे हैं तो उकड़ू बैठने से स्वभाविक रूप से 35 डिग्री का एंगल बनेगा। अगर आप वेस्टर्न टॉयलेट इस्तेमाल कर रहे हैं तो एक छोटा पायदान इस्तेमाल करें जिस पर पैर रखकर 35 डिग्री का एंगल बना लें। 90 डिग्री के एंगल पर टॉयलेट इस्तेमाल करने से बचें।