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ग्वालियर रियासत के पूर्व महाराजा जीवाजी राव सिंधिया (माधवराव सिंधिया के पिता) और देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के बीच गहरी मित्रता थी। देश आजाद आजाद होने और ग्वालियर रियासत के भारत में विलय के बाद अस्तित्व में आए मध्यभारत प्रांत के राजप्रमुख के रूप में जीवाजी राव सिंधिया को नेहरू ने ही शपथ दिलाई थी। दोनों के बीच दोस्ती इतनी गहरी थी कि नेहरू जब भी मध्यभारत के दौरे पर आते तो जीवाजी राव खुद कार ड्राइव कर उन्हें घुमाते थे। लेकिन कुछ ही दिनों के बाद एक ऐसा वाकया हुआ जिससे दोनों में अनबन हो गई। आइए, जानते हैं कि दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ जिससे उनकी मित्रता में दरार पड़ गई।
भाषण के बाद नहीं बजी कोई ताली और नाराज हो गए नेहरू
बात उन दिनों की है जब भारत नया-नया आजाद हुआ था और देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू को देखने और सुनने के लिए लोग मीलों पैदल चल जाया करते थे। देश आजाद होने के बाद नेहरू सरदार पटेल साथ एक सभा को संबोधित करने के लिए ग्वालयिर आए। जीवाजी राव सिंधिया पहले से ही इस सभा में मौजूद थे। जैसे ही जीवाजी राव भाषण देने के लिए खड़े हुए मंच के नीचे बैठी जनता ने उनके लिए नारे और तालियां बजाना शुरु कर दिया। सिंधिया के संबोधन के बाद जब जवाहर लाल नेहरु भाषण देने के लिए उठे, तो कोई ताली नहीं बजी और न ही उनके समर्थन में कोई नारे लगाए गए। नेहरु को यह बात चुभ गई। वे अपनी नाराजगी को दबा नहीं पाए और भाषण के दौरान ही नाराजगी जाहिर करते हुए बोले "जमाना बदल चुका है, देश के लोगों को आज का सच स्वीकार करना चाहिए। मैं देश में जहां भी जाता हूं लोग मेरा भाषण सुनने के लिए उतावले रहते है लेकिन आपके ग्वालियर में ऐसा कुछ नहीं है। जाहिर सी बात है, ग्वालियर के लोग आज भी अतीत में जीते हैं।‘’
तालियां बजाने और नारा लगाने के लिए मंच के पास बैठाए लोग
नेहरू के चेहरे औऱ शब्दों में तल्खी देख-सुनकर जीवाजी राव, उनका गुस्सा भांप गए। ग्वालियर अंचल में भविष्य में ऐसा दोबार न हो इसके लिए उन्होंने अपने व्यवस्थापकों को ध्यान रखने के निर्देश दिए। इस वाकये के बाद जब भी नेहरु या कांग्रेस का कोई बड़ा नेता कभी ग्वालियर आता जीवाजी राव अपने 100-200 समर्थकों को सभा के मंच के आस-पास बैठा देते थे जिससे नेता का भाषण शुरू होने से पहले और बाद में तालियां बजें और समर्थन में नारे लग जाएं।