कल यानी 4 अक्टूबर को कालिदास जयंती थी। आज आपको उन्हीं की कहानी सुना रहा हूं। आज की अपनी कहानी को मैंने नाम दिया है- सिद्धि से सिद्ध हुए कालिदास....।
बहुत से विद्वान महाकवि कालिदास का जन्म उज्जैन में हुआ मानते है। कुछ विद्वानों का कहना है कि उनका जन्म उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के कविल्ठा या कविल्का गांव में हुआ था। हालांकि प्रमाण के साथ उनके जन्म स्थान का दावा अभी तक नहीं किया गया। कालिदास के माता-पिता का उल्लेख कहीं नहीं मिलता।
कालिदास नाम का शाब्दिक अर्थ है, 'काली का सेवक' परंतु वे शिव के परम भक्त थे। यह भी कहा जाता है कि पत्नी के धिक्कारने के बाद वे कहीं चले गए थे और ठान लिया था कि अब पंडित बनकर ही लौटेंगे। इस दौरान वे मा कालिका के भक्त बन गए थे। मां कालिका के आशीर्वाद से ही उन्होंने अद्भुत साहित्य की रचना की थी। कालिदास के बारे में कहा जाता है कि वे अपने प्रारंभिक जीवन में अनपढ़ और मूर्ख थे। 18 वर्ष की उम्र तक वे कुछ भी नहीं जानते थे। लोगों ने देखा कि वे जिस पेड़ पर बैठे हैं, उसी की डाल काट रहे हैं। किंवदंतियों के अनुसार कालिदास शारीरिक रूप से बहुत सुंदर थे।
कालिदास की शादी मालव राज्य की अत्यंत बुद्धिमान और रूपवती राजकुमारी विद्योत्तमा से हुई थी। राजकुमारी का प्रण था कि वह उसी युवक से विवाह करेगी जो उसे शास्त्रार्थ में हरा देगा। दूर-दूर से आए विद्वान उससे हार गए तो उन विद्वानों के मन में ग्लानि और ईर्ष्या हुई। राजकुमारी से बदला लेने के लिए उन्होंने एक चाल चली और मूर्ख युवक को खोजना शुरू किया। तब एक जंगल में उन्हें एक झाड़ की डाल पर बैठा एक युवक नजर आया, जो उसी शाखा को काट रहा था। यही युवक कालिदास थे। विद्वानों ने कालिदास को सिखाया पढ़ाया और कहा कि जहां ले जा रहे हैं तो मौन में ही उत्तर देना। उन्होंने उससे कहा यदि तुम मौन रह सकोगे तो तुम्हारा विवाह एक सुंदर राजकुमारी से हो जाएगा। इसके बाद कालिदास को सुंदर वस्त्र पहनाकर उसे विद्वाने के रूप में राजमहल में शास्त्रार्थ के लिए प्रस्तुत कर दिया। विद्योत्तमा से कहा गया कि युवक मौन साधना में रत होने के कारण संकेतों में शास्त्रार्थ करेगा। विद्योत्तमा मान गईं और शास्त्रार्थ शुरू हुआ।
विद्योत्तमा ने अंगुली उठाई। उसका तात्पर्य था, 'ईश्वर एक है और वह अद्वैत है।' कालिदास ने समझा कि यह मेरी आंख फोड़ना चाहती है तो उसने भी तक्षण दो अंगुली उठा दी। यानी तुम तो एक आंख फोड़ने की बात कर रही हो, मैं तुम्हारी दोनों आंखें फोड़ दूंगा। पंडितों ने कालिदास की ओर से राजकुमारी को समजाया कि 'ईश्वर एक है। आपने ठीक कहा, पर प्रकृति और विश्व के रूप में वही अन्य रूप धारण करता है। अतः पुरुष और प्रकृति, परमात्मा और आत्मा दो-दो शाश्वत हैं। विद्योत्तमा इससे प्रभावित हुई और फिर विद्योत्तमा ने हथेली उठाई। पांचों अंगुलियां ऊपर की ओर उठी थीं। उनका तात्पर्य था, 'आप जिस प्रकृति, जगत् जीव या माया के रूप में द्वैतवाद को स्थापित कर रहे हैं, उसकी रचना पंचत्तत्व से होती है। ये पंचतत्त्व हैं- पृथ्वी, पानी, पवन, अग्नि और आकाश। ये सभी तत्त्व भिन्न और अलग हैं, इनसे सृष्टि कैसे हो सकती है?
कालिदास की ने समझा की यह राजकुमारी मुझे थप्पड़ मारना चाहती है। इसीलिए कालिदास ने थप्पड़ के जवाब में मुक्का दिया दिया। विद्वानों ने राजकुमारी को बताया कि इनके कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक पंचतत्त्व अलग-अलग रहेंगे, सृष्टि नहीं होगी। पंचतत्त्व करतल की पंचांगुलि है। सृष्टि तो मुष्टिवत है। मुट्ठी में सभी मिल जाते हैं तो सृष्टि हो जाती है। यह सुनकर सभा-मंडप की दर्शक दीर्घा से फिर तालियां बजने लगी। विद्योत्तमा को अंततः अपनी हार माननी पड़ी और उसने कालिदास से विवाह कर लिया।
एक मत ये कहता है कि जब पत्नी को यह पता चला तो उन्होंने कालिदास को संस्कृत की शिक्षा दी। शिक्षा, कल्प, छंद, व्याकरण, निरुक्त, ज्योतिष छहों वेदांग, षड्दर्शन- न्याय, योग, सांख्य, वैशेषिक, पूर्व मीमांसा और उत्तर मीमांसा आदि सभी की शिक्षापूर्ण करने के बाद कालिदास राजा विक्रमादित्य के दरबार में उनके नवरत्न में से एक बन गए। एक कथा ये भी है कि विवाह के बाद राजकुमारी को पता चला कि कालिदास तो अनपढ़ और मूर्ख है तो उन्होंने उसे घर से निकाल दिया। और कहा एक विद्वान बनकर ही घर वापस आना। कालिदास को बहुत बुरा लगा और वे मां काली के मंदिर में उनकी भक्ति करने लगे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर मां काली ने उन्हें विद्या का आशीर्वाद दिया और कालिदास एक उच्चकोटि के विद्वान बने। इसके बाद वे घर लौटकर आकर अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। इस प्रकार उन्हें मां काली के आशीर्वाद के फलस्वरूप मिला था। उसके बाद कालिदास के कई गुरु हुए और उनकी विद्वता में उत्तरोत्तर वृद्धि होती गई।
महाकवि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के समय हुए थे या कि वे गुप्तकाल के चंद्रगुप्त विक्रमादित्य के समय हुए, इस पर विवाद है। विक्रम संवत अनुसार विक्रमादित्य आज (2022) से 2293 साल पहले हुए थे। 101 ईसा पूर्व सम्राट उज्जैन चंद्रगुप्त विक्रमादित्य का जन्म हुआ। उन्होंने 100 साल तक राज किया। अधिकांश विद्वानों का ये भी मानना है कि कालिदास शुंग वंश के शासनकाल में थे।
कालिदास का उल्लेख बाण भट्ट की हर्षचरित में मिलता हैं, जो छठी शताब्दी की रचना हैं। मतलब यह कि कालिदास उससे पूर्व हुए थे। कालिदास के नाटक 'मालविकाग्निमित्र' में अग्निमित्र का वर्णन मिलता हैं, जो 170 ईसवी पूर्व का शासक था। कालिदास के नाटक `मालविकाग्निमित्र' से ज्ञात होता है कि सिंधु नदी के तट पर अग्निमित्र के लड़के वसुमित्र की मुठभेड़ यवनों से हुई और भीषण संग्राम के बाद यवनों की पराजय हुई। यवनों के इस आक्रमण का नेता संभवत: मिनेंडर था। इस राजा का नाम प्राचीन बौद्ध साहित्य में मिलिंद मिलता है।
महाकवि कालिदास की मृत्यु कैसे हुई, यह अभी भी अज्ञात है। कहा जाता है कि उनकी मृत्यु उज्नैन में ही हुई थी। एक शिलालेख के अनुसार, महाराज विक्रमादित्य के आश्रय में कार्तिक शुक्ल एकादशी को 95 वर्ष की आयु में कवि कालिदास ने अपने प्राण त्यागे थे। कालिदास की यात्रा के कुछ साक्ष्य बिहार के मधुबनी जिला के उच्चैठ स्थान पर भी मिलते हैं। माना जाता है कि विद्योतमा से शास्त्रार्थ के बाद कालिदास यहीं कहीं गुरुकुल में रुके। कालिदास को यहीं उच्चैठ भगवती से ज्ञान का वरदान मिला था।
महाकाव्य
रघुवंशम - यह महाकाव्य रघुकुल के राजाओं की जीवन गाथा पर लिखा गया है, रघुकुल में कई महाप्रतापी राजा हुए उनमें से एक भगवान श्रीराम भी है।
कुमारसम्भवम - यह महाकाव्य माँ पार्वती तथा भगवान शिव के जीवन सम्बन्धी घटनाओं से सम्बंधित है। इसमें माँ पार्वती तथा भगवान शिव से सम्बंधित कई घटनाओ का वर्णन है, जैसे की कार्तिकेय का जन्म आदि।
खंडकाव्य
मेघदूत -मेघदूत मेघ से सम्बंधित घटनाओं से सम्बंधित है, इसमें मेघ द्वारा यक्ष का सन्देश उसकी प्रियतमा तक ले जाने की प्रार्थना का वर्णन मिलता है।
ऋतुसंहार - ऋतुसंहार में समस्त ऋतुओं का वर्णन है, सभी ऋतुओं में होने वाले परिवर्तन का आमोद-विनोद वर्णन यहां मिलता है।
नाटक
मालविकाग्निमित्रम् - मालविकाग्निमित्रम् शुंग वंश के शासक अग्निमित्र के जीवन से संबंधित एक घटना है। इसमें अग्निमित्र, एक लड़की मालविका की फोटो से प्रेम करने लगता है। मालविका एक नौकर की कन्या थी। बाद में पता चलता है कि वह एक राजकुमारी थी। मालविकाग्निमित्रम् कालिदास का पहला नाटक है।
अभिज्ञान शाकुंतलम- इस नाटक में महाराज दुष्यंत और शकुंतला की प्रेम कहानी है। शकुंतला, ऋषि विश्वामित्र और अप्सरा मेनका की बेटी थीं।
विक्रमोर्वंशीयम- कवि कालिदास के इस नाटक में स्वर्ग लोक की अप्सरा उर्वशी तथा पुरुरवा की प्रेम कहानी तथा इंद्र के श्राप का वर्णन मिलता है। इसके बाद में महाकवि कालिदास की अन्य रचनाएं भी हैं। उन्होंने करीब 40 रचनाएं की हैं। बस यही थी आज की कहानी...