BHOPAL. द सूत्र.
देवास विधानसभा की बात करें तो 1957 से 1990 के बीच 7 बार हुए विधानसभा चुनाव में छह बार यहां से कांग्रेस जीती थी। सिर्फ 1977 से 1980 तक एक बार यहां से जनता पार्टी को मौका मिला था। किसी जमाने में कांग्रेस का गढ़ कही जाने वाली देवास विधानसभा अब भाजपा के गढ़ में तब्दील हो चुकी है। 1990 से लगातार यहां भाजपा का कब्जा है। पारंपरिक रूप से इसे अब देवास राज परिवार की सीट माना जाता है। राज परिवार के तुकोजीराव पवार यहां से लगातार छह बार विधायक रहे। उनके निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव में उनकी पत्नी गायत्री राजे पवार यहां से विधायक चुनी गईं। इसके बाद 2018 के चुनाव में भी गायत्री राजे पवार ने बड़े अंतर से चुनाव जीत कर राज परिवार का दबदबा कायम रखा है।
विधानसभा का क्षेत्र: देवास शहर का पूरा नगरीय क्षेत्र, जिसमें नागदा, पालनगर, मेंढकी सहित शहर के सभी 45 वार्ड और देवास के उत्तर भाग के सभी 72 गांव इस विधानसभा क्षेत्र में आते हैं इनमें आगरोद, विजयागंज मंडी, दत्तोतर मंडी, पटलावदा और सुनवानी गोपाल जैसे बड़े गांव इस विधानसभा क्षेत्र में आते हैं।
महिला मतदाता: 123772
पुरुष मतदाता: 131600
कुल मतदाता:255379
साक्षरता का प्रतिशत: 81.58℅
सामाजिक/धार्मिक समीकरण: इंदौर से 35 किलोमीटर की दूरी पर स्थित देवास में मुख्यत: जैन, वैश्य और सिंधी समाज के लोग व्यवसाई हैं।
आर्थिक समीकरण: देवास मध्य प्रदेश के मशहूर शहरों में एक है। मालवा का बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यहां सैकड़ों कंपनियां हैं। देवास में अधिकांश लोग नौकरीपेशा और मजदूर वर्ग से हैं। देवास विधानसभा के उत्तर भाग में अधिकतर मतदाता कृषि और किसानी से जुड़े हैं।
विधानसभा सीट पर मतदान का ट्रेंड कब और कितना (सर्वाधिक और न्यूनतम मतदान):देवास विधानसभा में सर्वाधिक मतदान वर्ष 2018 में 75.95% रहा। अब तक का न्यूनतम मतदान वर्ष 1957 में 44.30% रहा।
विधानसभा क्षेत्र की खास पहचान: देश की करेंसी छापने का कारखाना बैंक नोट प्रेस देवास में ही है।
विधानसभा क्षेत्र का इतिहास: वर्ष 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के फलस्वरुप 1 नवंबर 1956 को अस्तित्व में आए मध्य प्रदेश में वर्ष 1957 के चुनाव में देवास विधानसभा सीट क्रमांक 36 वजूद में आई। उस समय देवास विधानसभा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित थी। उस दौरान देवास में 2 सीटों के लिए चुनाव हुए। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस से पटवर्धन अनंत सदाशिव 17808 मत प्राप्त कर विजयी हुए। वहीं अनुसूचित जाति आरक्षित सीट से बापूलाल 18133 मत प्राप्त कर विजयी घोषित किए गए। उस समय हुए चुनाव में 44.3% मतदान हुआ था।
1957 में वजूद में आई देवास विधानसभा 1962 तक अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित रही जो परिसीमन के बाद सामान्य सीट हो गई। वर्ष 1967 में देवास विधानसभा सीट क्रमांक 256 हुई। वर्ष 1977 में देवास विधानसभा सीट का कुछ हिस्सा और बागली विधानसभा क्षेत्र का कुछ हिस्सा मिला कर हाटपिपलिया विधानसभा सीट वजूद में आई। इसके बाद देवास विधानसभा सीट क्रमांक 276 हो गया। मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ का विभाजन होने के बाद 2003 में देवास विधानसभा सीट क्रमांक 186 हुआ जो वर्ष 2008 में विधानसभा क्रमांक 171 हुआ जो अभी तक यथावत है।
विधानसभा क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज: वर्ष 1957 में वजूद में आई देवास विधानसभा अपने शुरुआती दौर में कांग्रेस का गढ़ हुआ करती थी। 1957 से 1985 तक के साथ चुनाव में सिर्फ एक बार इमरजेंसी के बाद 1977 में जनता पार्टी से शंकर कानूनगो चुनाव जीते थे। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह को 5951 मतों से पराजित किया था, लेकिन 1980 और 1985 में फिर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के चंद्रप्रभाष शेखर यहां से विधायक बने। वर्ष 1990 में देवास राज परिवार के तुकोजीराव पवार भाजपा से चुनाव लड़े और कांग्रेस के सुरेंद्र सिंह जामगोद को 16152 मतों से बड़ी शिकस्त दी। 1990 से 2013 तक लगातार छह चुनाव तुकोजीराव पवार ने जीते और देवास को भाजपा के गढ़ में तब्दील कर दिया। वह प्रदेश सरकार में कैबिनेट मंत्री भी रहे। उनके निधन के बाद 2015 में हुए उपचुनाव में भाजपा ने तुकोजीराव पवार की पत्नी गायत्री राजे पवार को प्रत्याशी बनाया। इनके सामने कांग्रेस ने पंडित जयप्रकाश शास्त्री को चुनाव मैदान में उतारा। देवास में ब्राह्मण समाज का बड़ा वोट बैंक है। इसी रणनीति के तहत चुनावी मैदान में उतारे गए पंडित जयप्रकाश शास्त्री को गायत्री राजे पवार ने 30 हजार से अधिक मतों से पराजित कर इस विधानसभा क्षेत्र में राज परिवार का दबदबा कायम रखा। वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में दोबारा गायत्री राजे पवार विधायक चुनी गईं। उन्होंने कांग्रेस के दिग्गज नेता जयसिंह ठाकुर को करीब 28 हजार मतों से शिकस्त दी। देवास में सत्ता और संगठन अलग-अलग गुटों में होने के बावजूद सत्ता के केंद्र राजपरिवार का देवास में वर्चस्व कायम रहता आया है।
देवास मालवा का बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यहां की कई मिले और फैक्ट्रियां बंद हो चुकी हैं, तो कई नई औद्योगिक इकाइयां स्थापित भी हुई हैं। कई स्थापित होने जा रही हैं। ऐसे में पहले जैसे मजदूर आंदोलन अब यहां नहीं बचे। नौकरीपेशा और मजदूर वर्ग का बड़ा हिस्सा भाजपा समर्थक हो गया है। देवास में मुस्लिम समाज का बड़ा वोट बैंक है, जो 20% के लगभग है। देवास में मुस्लिम समाज चाहे भाजपा को पसंद नहीं करता हो, किंतु मुस्लिम समाज का एक बड़ा हिस्सा राज घराने का समर्थक है। इसी तरह देवास में ब्राह्मण समाज भी एक बड़ा वोट बैंक है, जिसका भी बड़ा हिस्सा भाजपा समर्थक है।
विधानसभा क्षेत्र की बड़ी चुनावी उठा-पटक: वर्ष 1990 के बाद भाजपा का गढ़ बन चुकी देवास विधानसभा में हमेशा चुनाव एक तरफा देखने को मिला। राजपरिवार का 15 से 20 हजार मतों से चुनाव जीतना यहां आम बात रही। किंतु सबसे बड़ी चुनावी उठापटक देखने को मिली वर्ष 1998 के चुनाव में, जब कांग्रेस ने यहां से रतनलाल चौधरी को प्रत्याशी बनाया। देवास विधानसभा क्षेत्र में खाती समाज का बड़ा वोट बैंक होने के चलते उन्होंने भाजपा के तुकोजीराव पवार को कड़ी टक्कर दी। देवास के इतिहास का यह पहला मौका था जब राज परिवार को यह चुनाव जीतने के लिए कड़ी मेहनत करना पड़ी। इस चुनाव में काफी मशक्कत के बाद तुकोजीराव पवार 6103 मतों से चुनाव जीते। उसके बाद देवास में उन्होंने अपना वोट बैंक बढ़ाया और जब परिसीमन हुआ तो देवास विधानसभा क्षेत्र से खाती समाज के वोट बैंक का बड़ा हिस्सा हाटपिपलिया विधानसभा क्षेत्र में चला गया। उसके बाद देवास विधानसभा भाजपा का अभेद्य गढ़ बन गई। जहां जीत का अंतर 25 से लेकर 50 हजार तक जा पहुंचा है।
कब कौन जीता: वर्ष 2003 से वर्ष 2013 तक यहां राजघराने के तुकोजीराव पवार चुनाव जीते 1990 से लेकर वह लगातार 2013 तक छह बार देवास से विधायक चुने गए
विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे: देवास के औद्योगिक क्षेत्र में कई उद्योग बंद हुए और नए स्थापित उद्योगों में स्थानीय युवाओं को रोजगार नहीं मिलना, देवास शहर की बदहाल यातायात व्यवस्था, देवास में सिटी बसों के संचालन की लंबित मांग, देवास जिला अस्पताल की लचर व्यवस्था, शिक्षा के क्षेत्र में इंदौर पर निर्भरता, देवास में प्रतिदिन पेयजल का वितरण न होना, पैकी प्लाट और नजूल की समस्या यहां के प्रमुख मुद्दे हैं।
पिछले चुनाव (2018) में समीकरण: वर्ष 2018 के विधानसभा चुनाव में मुख्य मुकाबला भाजपा की गायत्रीराजे पवार और कांग्रेस के जयसिंह ठाकुर के बीच रहा। कांग्रेस की आपसी गुटबाजी के चलते कांग्रेस के अन्य स्थानीय नेता दिखावे में तो जयसिंह ठाकुर के साथ रहे, किंतु चुनाव जिताने के लिए कोई विशेष प्रयास किए गए हो, ऐसा देखने को नहीं मिला। वहीं भाजपा की गायत्री राजे पवार का चुनावी मैनेजमेंट पुख्ता देखने को मिला। बड़े नेताओं की सभाओं से लेकर सामाजिक स्तर की मीटिंग और घर-घर तक जनसंपर्क और मजबूत चुनावी मैनेजमेंट के चलते उन्होंने जयसिंह को करीब 28 हजार मतों से करारी शिकस्त दी।