सांची विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, भाजपा के डॉ. प्रभुराम चौधरी हैं विधायक

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सांची विधानसभा क्षेत्र अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है, भाजपा के डॉ. प्रभुराम चौधरी हैं विधायक

BHOPAL.द सूत्र.

 नए बने (अविभाजित) मध्यप्रदेश में यह सीट पहली बार 1957 में अस्तित्व में आई। इस सीट का चरित्र मिला जुला रहा है। पहले विधानसभा चुनाव में यह दोहरे आरक्षण में थी। 1957 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर आरक्षित वर्ग में राजा दौलत सिंह तो सामान्य वर्ग में खुमान सिंह जीते थे।1962 में यह सीट सामान्य हो गई। तब सांची सीट पर सोशलिस्ट पार्टी के गुलाबचंद तामोट जीते थे। सांची सीट पर अब तक हुए 14 चुनावों में से कांग्रेस सिर्फ 4 बार चुनाव जीत पाई है, जबकि यहां से सर्वाधिक 7 बार चुनाव डॉ. गौरीशंकर शेजवार जीते। एक बार जनता पार्टी से तो 6 बार भाजपा से। मोटे तौर पर इस सीट का चरित्र भाजपाई है। हालांकि 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने डॉ. शेजवार का टिकट काटकर उनके पुत्र मुदित शेजवार को दिया, लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस डॉ. प्रभुराम चौधरी ने मुदित को 10 हजार 813 वोटों से पराजित कर दिया था।

विधानसभा क्षेत्र: सांची विधानसभा क्षेत्र के तहत रायसेन जिले का उत्तर पश्चिमी इलाका आता है। मुख्य कस्बा सांची है। इसके अलावा गैरतगंज, खरबई, दीवानगंज, सलामतपुर आदि महत्वपूर्ण गांव।

महिला मतदाता:115608

पुरुष मतदाता: 131015

कुल मतदाता: 246634

साक्षरता का प्रतिशत:82.07 %

धार्मिक समीकरण:हिंदू बहुल सीट। दलित वोट निर्णायक

आर्थिक समीकरण: मुख्‍यत: कृषि और पर्यटक अर्थव्यवस्था का आधार

विधानसभा सीट पर मतदान का ट्रेंड कब और कितना (सर्वाधिक और न्यूनतम मतदान):सर्वाधिक 2018:75.32 , न्यूनतम 1962: 39.26 %

विधानसभा क्षेत्र का इतिहास: नए बने (अविभाजित) मध्यप्रदेश में यह सीट पहली बार 1957 में अस्तित्व में आई। इस सीट से गैर कांग्रेसी उम्मीदवार ज्यादा जीते हैं। पहले विधानसभा चुनाव में यह दोहरे आरक्षण में थी। 1957 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर आरक्षित वर्ग में राजा दौलत सिंह तो सामान्य वर्ग में खुमानसिंह जीते थे।1962 में यह सीट सामान्य हो गई। तब सांची सीट पर सोशलिस्ट पार्टी के गुलाबचंद तामोट जीते थे। उन्होंने कांग्रेस के विजयसिंह को 579 वोटों से हराया था। सांची सीट पर अब तक हुए 14 चुनावों में से कांग्रेस सिर्फ 4 बार चुनाव जीत पाई है। जबकि यहां से सर्वाधिक 7 बार चुनाव डॉ. गौरीशंकर शेजवार जीते। 2018 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने डॉ. शेजवार का टिकट काटकर उनके पुत्र मुदित शेजवार को दिया, लेकिन उस चुनाव में कांग्रेस डॉ. प्रभुराम चौधरी ने मुदित को 10 हजार 813 वोटों से पराजित कर दिया था। डॉ. शेजवार और डॉ. चौधरी पांच चुनावों में आमने सामने हुए। चुनाव जीतने पर दोनों ही मंत्री भी बने। 2008 के विधानसभा चुनाव के डेढ़ साल बाद हुए उपचुनावों में प्रभुराम चौधरी भाजपा के टिकट पर लड़े और उन्होंने यह चुनाव मदनलाल चौधरी को हराकर जीता।

विधानसभा क्षेत्र की खास पहचान: ऐतिहासिक सांची स्तूप



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विधानसभाा क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज:

इस क्षेत्र का राजनीतिक मिजाज मोटे तौर पर गैर कांग्रेसी ही रहा है। शुरूआती दौर में सोशलिस्ट पार्टी फिर जनसंघ, जनता पार्टी और बाद में भाजपा ही यहां से ज्यादातर चुनाव जीतती रही है। अभी भी यह सीट भाजपा के पास ही है। 1962 में यह सीट अनारक्षित थी। यहां से सोशलिस्ट पार्टी के गुलाबचंद तामोट जीते थे, जो बाद में मंत्री भी बने। उन्होंने कांग्रेस के विजय सिंह को हराया था। 1967 के विधानसभा चुनाव में इस सीट पर भारतीय जनसंघ के मदनलाल जीते थे। 1972 में यहां से कांग्रेस के दुलीचंद विजयी हुए। 1977 में डॉ. गौरीशंकर शेजवार पहली बार जनता पार्टी के टिकट पर लड़े और जीते। वो 1980 में भी जीते, लेकिन 1985 में पहली बार कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी ने उन्हें पराजित किया। उसके बाद डॉ. शेजवार चार चुनाव लगातार जीते, लेकिन 2008 में उन्हें कांग्रेस के डॉ. प्रभुराम चौधरी ने फिर पराजित किया। 2013 में डॉ. शेजवार पुन: बीजेपी के टिकट पर जीते और 2018 में पार्टी ने उनका टिकट ही काट दिया।

विधानसभा क्षेत्र की बड़ी चुनावी उठा-पटक:

पिछले कुछ चुनावों से यहां डॉ. प्रभुराम चौधरी और डॉ. गौरीशंकर शेजवार ही प्रमुख प्रतिद्वंद्वी रहे हैं। चुनाव में ज्यादातर शेजवार ही जीतते रहे हैं, लेकिन इस विधानसभा क्षेत्र में बड़ी चुनावी उठापटक 2018 के विधानसभा चुनाव में हुई, जब भाजपा ने डॉ. गौरीशंकर शेजवार का टिकट काटकर उनके बेटे मुदित शेजवार को दिया। उस चुनाव में डॉ. प्रभुराम चौधरी कांग्रेस पत्याशी थे और उन्हें ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे का माना जाता है। कांग्रेस का कर्ज माफी का वादा काम कर गया और डॉ. प्रभुराम चौधरी चुनाव जीत गए और शेजवार के पुत्र मुदित हार गए। दूसरा बड़ा उलटफेर तब हुआ जब डॉ. प्रभुराम चौधरी ने सिंधिया के साथ पाल बदलकर भाजपा ज्वाइन कर ली और मंत्री भी बने। भाजपा ने डॉ. प्रभुराम को कमल निशान पर चुनाव लड़ाया और वो फिर जीत गए। इस समूचे घटनाक्रम ने शेजवार परिवार को आगे टिकट मिलने की संभावनाएं धुंधला दी हैं।

2003 से 2018 तक के विधानसभा चुनाव में कौन जीता-कौन हारा: दो बार कांग्रेस व दो बार भाजपा जीती

विधानसभा क्षेत्र के मुद्दे : बेरोजगारी, ग्रामीण क्षेत्रों में अक्षम नल जल योजना, भारी बिजली बिल, प्रधानमंत्री सड़क योजना में ठेकेदारों की मनमानी से ग्रामीण सड़कें बदहाल।

पिछले चुनाव (2018) में समीकरण:

भाजपा ने डॉ. शेजवार का टिकट काटकर उनके पुत्र मुदित शेजवार को टिकट दिया। वे हार गए। प्रभुराम चौधरी ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे के हैं। 2020 में दलीय पाला बदलने के बाद शिवराज सरकार में भी मंत्री हैं। उन्होंने 2020 में भाजपा के टिकट पर विधानसभा उपचुनाव जीता।

चुनाव से जुड़े मशहूर किस्से:

 2008 के विधानसभा चुनाव में हारने के बाद 2013 के चुनाव में डॉ. गौरीशंकर शेजवार ने वोटरों को प्रभावित करने का नया पैंतरा अपनाया। वो हर सभा में खुद को दलित कहकर पेश करते। नीचे जमीन पर बैठते और अलग कप में चाय पीते। उनका यह तरीका काम कर गया और उनकी अक्खड़ छवि के विपरीत मतदाताओं में सहानुभूति हासिल करने में कामयाब रहा। इसी प्रकार 2020 में ऐसी विचित्र ‍स्थिति बनी कि दो परंपरागत प्रतिद्वंद्वियों डॉ. प्रभुराम चौधरी और डॉ. गौरीशंकर शेजवार को एक मंच पर आना पड़ा। क्योंकि डॉ. प्रभुराम भाजपा से ही चुनाव लड़ रहे थे। डॉ. शेजवार ने भी दिल पर पत्थर रखकर चुनाव सभाओं में डॉ. प्रभुराम को जिताने की अपील की, जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रभुराम 65000 के रिकॉर्ड अंतर से चुनाव जीत गए।

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