Lok Sabha elections : ग्वालियर- चंबल में बीएसपी की धमक, हाथी ने उलझाए कांग्रेस - बीजेपी के समीकरण

उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे ग्वालियर - चंबल अंचल में बीएसपी का प्रभाव है। BSP का असर लोकसभा चुनाव में देखने को मिल रहा है। बसपा ने बीजेपी और कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए हैं।

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Marut raj
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In the Lok Sabha elections BSP has spoiled the equations of Congress and BJP in Gwalior Chambal region
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संजय शर्मा, BHOPAL. ग्वालियर- चंबल में सियासत का पारा बीएसपी ( BSP ) के ताल ठोकने से और चढ़ गया है। ग्वालियर, भिंड, मुरैना, गुना और राजगढ़ लोकसभा सीटों पर कहीं मुकाबला त्रिकोणीय हो गया है, तो कुछ सीटों पर बीजेपी - कांग्रेस का गणित बिगड़ा -बिगड़ा नजर आ रहा है। कुछ दिन तक प्रचार में कांग्रेस को काफी पीछे छोड़ने से ओवरकॉन्फिडेंट दिख रही बीजेपी अब बदले समीकरण साधने में जुटी है। वहीं, कांग्रेस उम्मीदवार भी बीएसपी की सक्रियता से परेशान हैं। हालत यह है कि अब तक अपने - अपने समीकरण जमाकर जीत के प्रति आशान्वित बीजेपी-कांग्रेस का विक्ट्री प्लान गड़बड़ा गया है और दोनों ही दलों को नई जमावट करनी पड़ रही है। 

लोकसभा चुनाव : ग्वालियर चंबल अंचल की ग्राउंड रिपोर्ट

प्रदेश की राजनीति में ग्वालियर- चम्बल की गहरी पैठ रही है। सरकार किसी भी पार्टी की बनी हो, इस अंचल के सियासी छत्रपों की धमक को नकारा नहीं गया। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी ( Former PM Atal Bihari Vajpayee ) ,राजमाता विजयाराजे सिंधिया, माधवराव सिंधिया ( Madhavrao Scindia ) की बात हो या अब नरेंद्र सिंह तोमर या ज्योतिरादित्य सिंधिया का रसूख। ग्वालियर- चंबल सियासी पकड़ वाले नेताओं का गढ़ रहा है। यही वजह है कि चुनाव आते ही इस अंचल का सियासी पारा गरमा जाता है। लोकसभा चुनाव को लेकर भी इन अंचल में सरगर्मी तेज है, लेकिन भोपाल और दिल्ली के बीच के इस अहम गढ़ पर काबिज होने सत्तासीन बीजेपी ही नहीं प्रदेश में सिमट कर रह गई कांग्रेस भी पूरा जोर लगा रही है। क्या है ग्वालियर चंबल की सियासी तासीर और इस आम चुनाव में वे क्या खास समीकरण हैं जो बीजेपी- कांग्रेस को परेशान कर रहे हैं। 

ग्वालियर सियासत में बीएसपी के हाथी की हलचल :

पहले बात करते हैं इस अंचल की राजनीतिक केंद्र ग्वालियर सीट की। ग्वालियर सीट 2004 के बाद से बीजेपी के खाते में है। इससे पहले यहां सिंधिया परिवार के माधवराव सिंधिया एक अरसे तक सांसद रहे हैं। इस सीट से बीजेपी की संस्थापकों में शामिल राजमाता सिंधिया और पूर्व प्रधानमंत्री भी सांसद चुने जा चुके हैं। इन दिग्गजों के इस सीट से चुनाव लड़ने से यहां से राजनीतिक रसूख का अंदाजा लगाया जा सकता है। इस सीट से सांसद उम्मीदवार के रूप में बीजेपी ने भारत सिंह कुशवाहा को मैदान में उतारा है। भारत सिंह हाल ही में विधानसभा का चुनाव हार गए थे। लेकिन लोकसभा के गणित और मोदी के चेहरे पर भारत सिंह फिर जोर आजमा रहे हैं। वहीं कांग्रेस ने भी विधानसभा में शिकस्त खा चुके पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को टिकट दिया है। वैसे तो मुकाबल बीजेपी और कांग्रेस के बीच था, लेकिन इस सीट पर कांग्रेस छोड़कर बीएसपी के हाथी पर सवार हुए कल्याण सिंह कंसाना ने समीकरण पलट दिए हैं। ग्वालियर सीट पर कुशवाहा, राजपूत और ब्राह्मण के साथ गुर्जर वोटर निर्णायक भूमिका में हैं। ग्वालियर ग्रामीण, सेवड़ा, भांडेर, करेरा सीट पर बीएसपी विधानसभा का चुनाव पहले के सालों में जीत चुकी है। यानी इन क्षेत्रों में इस दल के समर्थक बड़ी संख्या में हैं और यही बीजेपी-कांग्रेस की चिंता का कारण है। 

मुरैना में बागी उद्योगपति ने बिगाड़े समीकरण :

इसी अंचल की प्रमुख सीट मुरैना सियासी महत्व रखती है। अब इस सीट के समीकरण पर नजर डालते हैं। जातिगत समीकरण की बात करें तो इस सीट पर दलित वर्ग के अलावा गुर्जर, राजपूत और ब्राह्मण मतदाताओं का बाहुल्य है। लोकसभा में श्योपुर, विजयपुर, सबलगढ़, जौरा, सुमावली, मुरैना, दिमनी और अम्बाह विधानसभा सीट शामिल हैं। आठ सीटों में से पांच विधानसभाएं कांग्रेस के पास हैं। कांग्रेस ने यहां से विधायक सतीश सिकरवार के भाई नीतू सत्यपाल सिकरवार को टिकट दिया है। वहीं बीजेपी के शिवमंगल सिंह तोमर मैदान में हैं। कांग्रेस से टिकट न मिलने से नाराज उद्योगपति रमेशचंद्र गर्ग बीएसपी के हाथी की सवारी कर रहे हैं। गर्ग बीजेपी में भी रह चुके हैं और अंचल के वैश्य समाज के अलावा, उद्योग जगत में उनकी अच्छी पैठ है। इसी वजह से कांग्रेस और बीजेपी उम्मीदवार गर्ग के मैदान में आने से संकट में पड़ गए हैं। मुरैना सीट पर बीएसपी से चुनाव लड़ रहे गर्ग की वजह से मुकाबला कड़ा और रोचक हो गया है। जबकि उनकी उम्मीदवारी से पहले बीजेपी और कांग्रेस अपने -अपने समीकरणों के आधार पर जीत का दावा कर रहे थे। 

गुना की गहरी राजनीति में भी बीएसपी की धमक : 

सिंधिया परिवार का ग्वालियर- चंबल अंचल की राजनीति में गहरा दखल रहा है। राजमाता के बाद उनके पुत्र माधवराव सिंधिया कांग्रेस तो पुत्री यशोधरा राजे बीजेपी से जीतकर प्रदेश और केंद्र में अहम पदों पर काबिज रह चुकी हैं। अब माधवराव सिंधिया के पुत्र ज्योतिरादित्य सिंधिया ( Jyotiraditya Scindia ) परिवार की सियासत को संभाल रहे हैं। 2019 में लोकसभा चुनाव हारने के बाद अब वे बीजेपी के टिकट पर गुना सीट से मैदान में हैं। उनके सामने कांग्रेस से राव यादवेंद्र सिंह यादव चुनाव लड़ रहे हैं। राव यादवेंद्र सिंह मुंगावली के पूर्व विधायक और बीजेपी के दिवंगत नेता राव देशराज सिंह के पुत्र हैं। वहीं इस सीट पर भी बीएसपी के टिकट पर मैदान में आए धनीराम चौधरी ने बीजेपी- कांग्रेस के समीकरण बिगाड़ दिए हैं। 25 साल से दलित समाज में सक्रीय धनीराम बीएसपी के शिवपुरी जिला अध्यक्ष भी हैं। इस अंचल में बहुजन समाज में उनका प्रभाव भी है। वे गुना के दलित वोटर्स को लुभाकर कांग्रेस और बीजेपी दोनों को ही नुकसान पहुंचा रहे हैं। सिंधिया क्षेत्र से अपने परिवार के रिश्ते और मोदी सरकार के कामों को लेकर तो कांग्रेस यादव बाहुल्य वोटर्स के सहारे कैंपेन चला रही है। समीकरण इतने उलझे हुए हैं कि दोनों ही दल प्रचार में बहुत सतर्कता बरत रहे हैं। 

भिंड लोकसभा की तासीर भांप रही बीजेपी-कांग्रेस

अनुसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित भिंड सीट पर कांग्रेस से बगावत कर बीएसपी के हाथी पर बैठे युवा नेता देवाशीष जरारिया ने सरगर्मी बढ़ा दी है। देवाशीष कांग्रेस के हाथ पर साल 2019 का लोक सभा चुनाव लड़ चुके हैं और इस बार फिर टिकट मांग रहे थे। टिकट न मिलने पर वे हाल ही में बीएसपी में शामिल हो गए थे। जरारिया पांच साल से भिंड- दतिया सीट पर सक्रीय हैं, ऐसे में कांग्रेस के फूलसिंह बरैया और बीजेपी से संध्या राय को कड़ी चुनौती दे रहे हैं। भिंड लोकसभा सीट पर पहले से ही बीएसपी का ख़ासा प्रभाव है। ऐसे में जरारिया की उम्मीदवारी प्रमुख प्रतिद्वंदियों को मुश्किल में डाल रही है। वैसे भी भिंड जिले की तासीर बीएसपी को सपोर्ट करती रही है और इस लोकसभा में शामिल भिंड, सेवड़ा, भांडेर विधानसभा सीटों पर  बीएसपी काबिज रह चुकी है।

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