लोकसभा चुनाव 2024: इन कारणों के चलते हर बार बदलते रहते हैं गठबंधन

मोटे तौर पर जो परपंरा रही है, वह यह कि फलां पार्टी का बीजेपी से गठबंधन हुआ और बाद में या अगले चुनाव में बीजेपी से टूट गया। इसके लिए जो तर्क दिए जाते हैं, वह इतने सतही होते हैं, जनता उन्हें मंजूर करे या न करे, गठबंधन का खेल चलता रहता है।

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Dr Rameshwar Dayal
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द सूत्र
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New Delhi: भारत में चुनावों के दौरान मतदाताओं ( voters )का बदलता मूड, जातीय व धार्मिक समीकरण के अलावा कुछ ऐसे मुद्दे या मसले भी होते हैं, जिनको पार कर जीतने के लिए राजनीतिक दलों ( political parties )को खासी मशक्कत करनी पड़ती है। इसकी कड़ी में वे विभिन्न दलो से गठबंधन ( alliance ) भी करते हैं ताकि वोटरों को किसी न किसी तरह से साधा जाए। मजेदार बात यह है कि कुछ पार्टियों का यह आपसी गठबंधन हर चुनाव में बदलता रहता है। पिछली बार जिस पार्टी से उसने गलबहियां डाल रखी थी, तो अगले चुनाव में वह उसे दुश्मन सरीखा नजर आता है। हम आपको बताते हैं गठबंधन की मजेदार कहानी। 

मोटे तौर पर जो परपंरा रही है, वह यह कि फलां पार्टी का बीजेपी से गठबंधन हुआ और बाद में या अगले चुनाव में बीजेपी से टूट गया। इसके लिए जो तर्क दिए जाते हैं, वह इतने सतही व हलके होते हैँ, जनता उन्हें मंजूर करे या न करे, गठबंधन का खेल चलता रहता है। अगर कोई पार्टी देश या राज्य में बीजेपी से गठबंधन करती है तो उसका तर्क होता है चुनाव को टालने और लोगों की सेवा करने के लिए उसे बीजेपी से गठबंधन करना पड़ रहा है। जब बीजेपी से गठबंधन तोड़ा जाता है तो कहा जाता है कि देश या राज्य में सांप्रदायिक शक्तियों को रोके रखने और समाज में सौर्हादता बनाए रखने के लिए बीजेपी से अलग हो गए। यह बयान आज भी दिए-लिए जा रहे हैं। इसी का परिणाम यह रहा कि मध्यप्रदेश के शुक्ला बंधु और बिहार के नेता रामविलास पासवान हमेशा ही सत्ता सुख भोगते रहे।

कैसा है गठबंधन का सिस्टम

देश में अब गठबंधन का सिस्टम धीरे-धीरे रिफाइन हो रहा है, लेकिन उसकी धुरी बीजेपी बन गई है। पहला गठबंधन है बीजेपी का उसकी सहयोगी पार्टियों के साथ, जिसे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन ( NDA ) कहा जा रहा है। इस बार विपक्षी पार्टियों ने एक बड़ा गठबंधन किया है, इसमें कांग्रेस व अन्य कई विपक्षी पार्टी हैँ और इसका नाम I.N.D.I.A. है। यह अलग बात है कि इसमें लगातार जोड़तोड़ चल रही है। एक तीसरा ग्रुप है, जिसे न्यूट्रल कहा जा सकता है। यानी यह दल न तो एनडीए में है और न ही इंडिया में। यह दल जब मौका मिल जाता है, तब गठबंधन कर लेते हैं, लेकिन आज तक इनकी नीति ‘एकला चलो रे’ वाली है। आगामी दिनों में क्या हो जाए, यह पता नहीं है।

कुछ पार्टियां ‘एकला चलो’ का राग गा रही हैं

विशेष बात है कि ये दल किसी गठबंधन में नहीं रहते लेकिन क्षेत्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर बहुत की ताकतवर होते हैं और वोटरों में इनकी पैठ बनी रहती है। इनमें इनमें पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की टीएमसी, उत्तर प्रदेश में मायावती की बहुजन समाज पार्टी, केरल में वामपंथी दल, ओडिशा में नवीन पटनायक की पार्टी बीजेडी, तमिलनाडु में एआईडीएमके, आंध्रप्रदेश में सीएम जगन की पार्टी वाईएसआर कांग्रेस, तेलंगाना में केसीआर की पार्टी बीआरएस और असदुद्दीन औवेसी की एआईएमआईएम और दिल्ली-पंजाब में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी शामिल है।

वर्तमान में समीकरणों का क्या हाल है

पिछले लोकसभा चुनाव और आने वाले लोकसभा चुनाव में दलों का गठबंधन कई करवटें ले चुका है। पिछली बार जो गठबंधन बना हुआ था कुछ में वह टूट गया है और पिछली बार जो गठबंधन टूटा हुआ था, वह इस बार बन गया है। इनमें उत्तरप्रदेश में जयंत चौधरी की आरएलडी, बिहार में उपेंद्र कुशवाहा और जीतनराम मांझी की पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव में एनडीए के साथ है, जबकि पिछले चुनाव में यह छिटकी हुईं थी। टीडीपी भी अब साथ में है, जबकि पिछले चुनाव में वह अलग थी। मजेदार बात यह है कि कुछ पार्टियों में टूट पड़ गई और उनका एक धड़ा एनडीए से जुड़ गया है, इों शिवसेना और एनसीपी उदाहरण हैं।

 

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