संजय शर्मा@ BHOPAL.
सात चरणों की वोटिंग के बाद मंगलवार ( 4 जून) को लोकसभा चुनाव के नतीजे सामने आ जाएंगे ( MP lok sabh elections Results )। साथ ही यह भी साफ हो जाएगा कि देश की सत्ता किसके हाथ होगी। नतीजे उम्मीदवारों के भविष्य भी तय करेंगे। डेढ़ महीने तक चुनावी मैदान में डटे रहने वाले कई दिग्गजों की साख भी जनता के हाथ में है। प्रदेश से लेकर केंद्र की सत्ता और संगठन में अहम मुकाम हासिल करने वाले इन नेताओं की हार- जीत को लेकर भी राजनीतिक गलियारों में चर्चा गरमाई हुई है। वोटिंग के बाद से ही न केवल इन नेताओं के लोकसभा क्षेत्रों में बल्कि पूरे प्रदेश में हर कोई जानना चाहता है कि आखिर यहां परिणाम कैसे आएंगे। आम चुनाव के नतीजे प्रदेश के इन भाजपा- कांग्रेस नेताओं को एक बार फिर खास बनाएंगे या फिर उन्हें नेपथ्य में ले जाकर छोड़ देंगे। फिलहाल यह जानने के लिए मतगणना के नतीजों का इंतजार करना होगा। ( MP lok sabh elections )
वैसे तो हर बार ही लोकसभा का चुनाव खास होता है। चुनाव की घोषणा के साथ ही देश की सत्ता पर काबिज होने के लिए नेता जोर आजमाइश में जुट जाते हैं। लेकिन 2024 का आम चुनाव का परिदृश्य कुछ ज्यादा ही अहम नजर आ रहा है। भाजपा से 17 साल तक प्रदेश में सीएम और पांच बार सांसद रह चुके शिवराज सिंह चौहान, प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए बीजेपी के संगठन को नई ऊंचाई दिलाने वाले वीडी शर्मा, कांग्रेस को पटखनी देकर प्रदेश में भाजपा को सत्तासीन कराने वाले केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे दिग्गज मैदान में हैं। वहीं कांग्रेस के पाले से प्रदेश में 10 साल सीएम रहे दिग्विजय सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिलाल भूरिया का भविष्य और राजनीति ईवीएम में बंद है। 2019 के लोकसभा चुनाव में प्रदेश की इकलौती छिंदवाड़ा सीट पर जीत दर्ज कराने वाले नकुलनाथ के साथ उनके पिता और पूर्व सीएम कमलनाथ की प्रतिष्ठा भी दांव पर है।
परम्परागत सीटों पर साख की चिंता
बीजेपी और कांग्रेस से इस बार भी दिग्गज नेता अपनी परम्परागत सीट पर ही चुनाव मैदान में हैं। कई बार इन सीटों से चुनाव जीतने और क्षेत्र में प्रभाव के बावजूद इन नेताओं को जीत के लिए जोर लगाना पड़ा है। डेढ़ महीने तक लोकसभा क्षेत्रों में सक्रिय रहने वाले ये नेता अब नतीजों और जीत के अंतर को लेकर बेचैन हैं। इस खबर में हम प्रदेश के ऐसे ही धाकड़ नेताओं की चर्चा कर रहे हैं।
बड़े मार्जिन की जीत से जुड़ी शिवराज की प्रतिष्ठा
सीएम के रूप में सबसे लंबी पारी खेल चुके शिवराज सिंह चौहान, विदिशा- रायसेन संसदीय सीट से उम्मीदवार हैं। यह उनकी परम्परागत सीट है और वे यहां से पांच बार सांसद भी रह चुके हैं। 2004 में संसद की सदस्यता छोड़ने के 20 साल बाद वे फिर यहां लौटे हैं। लोकप्रियता की वजह से जीत तो तय मानी जा रही है लेकिन चौहान जीत के बड़े अंतर को लेकर लगातार सक्रिय रहे हैं।
वॉकओवर, इसलिए वीडी को भी चाहिए बड़ी जीत
प्रदेश भाजपा की कमान संभाल रहे वीडी शर्मा खजुराहो सीट से दूसरी बार मैदान में हैं। वे 2019 में पहली बार यहां से सांसद बने थे। यहां कांग्रेस- सपा गठबंधन में चुनाव लड़ रही थी और उनके उम्मीदवार का परचा खारिज हो गया था। वॉकओवर की स्थिति के चलते शर्मा को स्वयं को साबित करने बड़े मार्जिन वाली विजय की जरूरत है।
सिंधिया के सामने हार का दाग मिटाने की चुनौती
ज्योतिरादित्य सिंधिया इस बार फिर गुना सीट से मैदान में हैं। प्रदेश की राजनीति में सिंधिया परिवार का खासा दबदबा रहा है। 2019 में ज्योतिरादित्य गुना सीट पर बीजेपी उम्मीदवार केपी यादव से हार गए थे। तब वे कांग्रेस की ओर से चुनाव लड़ रहे थे। अब वे बीजेपी के टिकट पर मैदान में हैं। इस बार सिंधिया के सामने भी पिछली हार का दाग मिटाने बड़ी जीत हासिल करने की चुनौती है।
छिंदवाड़ा में नकुल के हाथ नाथ की प्रतिष्ठा
पूर्व सीएम कमलनाथ की प्रतिष्ठा 2024 के आम चुनाव में नकुलनाथ की जीत पर निर्भर है। कांग्रेस ने 2019 में नकुलनाथ को छिंदवाड़ा से उम्मीदवार बनाया था। इस चुनाव में कांग्रेस प्रदेश की 29 में से केवल इसी सीट पर जीत पाई थी। इस बार मुकाबला कड़ा है और नकुलनाथ की जीत के साथ उनके पिता और कांग्रेस का बड़ा चेहरा कमलनाथ की प्रतिष्ठा भी जुड़ गई है।
दिग्गी के सामने किला बचाने का सवाल
प्रदेश के पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह लंबे अरसे बाद अपनी परम्परागत सीट राजगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं। इस सीट पर उनका खासा प्रभाव है। उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी यहां से सांसद रह चुके हैं। पिछले दो चुनाव से यह सीट भाजपा के कब्जे में है। दिग्गी के मैदान में आने से यह सीट काफी चर्चा में रही है। यह चुनाव दिग्विजय के साथ उनके किले की राजनीति का भविष्य भी तय करेगा।
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