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GWALIOR. शहर के बीचोंबीच से बीते दो दशक में 15 से ज्यादा पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं और ज्यादातर पहाड़ियों पर कब्जा हो चुका है तो कुछ पहाड़ियों को माफिया ने खुर्द-बुर्द कर दिया है. शहर में 15 प्रमुख पहाड़ियां हैं. राजस्व और वन विभाग के अंतर्गत आने वाली ये पहाड़ियां गायब हो चुकी हैं. इन पहाड़ियों पर माफिया या बाहर से आए लोगों ने कब्जा कर लिया है. खास बात ये कि अब इन पहाड़ियों को लेकर न तो राजस्व विभाग जुबान खोलने को तैयार है न वन विभाग के अफसर आइए हम बताते हैं कुछ खास पहाड़ियां किस हाल में हैं. पहाड़ियों के गायब होने का खामियाजा ग्वालियर शहर के नागरिक भी लगातार भुगतने को मजबूर हैं। यहां प्रदूषण बढ़ रहा है और तापमान भी। बरसात का स्तर भी अनियमित हो गया है।
महलगांव पहाड़ी : यह पहाड़ी हाउसिंग बोर्ड को रहवासी क्षेत्र विकसित करने के लिए दी गई थी. इसके बाद नीचे क्षेत्र में निजी कॉलोनी बसा दी गई.इस पर पांच सौ से ज्यादा मकान है जिनमे अब लगभग छह हजार लोग रहते हैं।
कैंसर पहाड़ी : कैंसर हॉस्पिटल और शोध संस्थान को यहां चिकित्सीय कार्य और औषधीय पौधों का विकास करने की लीज दी गई थी. पहाड़ी पर हॉस्पिटल सिर्फ एक क्षेत्र में है. बाकी की 40 फीसदी दूसरी जगह अतिक्रमण में है. मांढरे की माता के आसपास के अवैध आवासीय क्षेत्र को हटाने के लिए कई बार आदेश निर्देश हो चुके हैं, लेकिन राजनीतिक दबाव और अफसरों की लापरवाही ने अतिक्रमण को और बढ़ावा दिया है. यहां सैकड़ो मकान तो अब पक्के बन चुके है जबकि बड़ी संख्या में कच्चे मकान भी है। यहां सड़क, बिजली,पानी सब इंतजाम है।
मोतीझील कृष्णानगर पहाड़ी : इस पहाड़ी पर भूमाफिया ने 1.50 लाख से 4 लाख तक की कीमत के प्लॉट विक्रय किए हैं. 2016 में कोर्ट के आदेश पर यहां से 250 अतिक्रमण हटाए गए थे. लेकिन बाद में राजस्व और नगर निगम के अधिकारी द्वारा ध्यान न दिए जाने से दोबारा से अतिक्रमण हो गया. इस पहाड़ी पर अब बाकायदा कॉलोनियां विकसित हो गई है।
रहमत नगर पहाड़ी : पहाड़ी पर भूमाफिया ने लॉटरी के जरिए 50 हजार से 2 लाख तक की कीमत में प्लॉट बिक्री किये हैं. 2016 में कोर्ट के आदेश पर यहां से 400 अतिक्रमण हटाए गए थे. लेकिन बाद में राजस्व नगर निगम के अधिकारी द्वारा ध्यान न दिए जाने की जाने से द्वारा अतिक्रमण हो गया.
सत्यनारायण की टेकरी : शहर के बीच मौजूद इस पहाड़ी पर तीन से चार हजार अतिक्रमण हैं. कोर्ट इस पहाड़ी पर बसावट को अवैध घोषित कर चुका है। इस पहाड़ी पर मंदिर के बहाने कब्जे की शुरुआत हुई और अब कॉलोनियों से घिरकर पहाड़ी गायब ही हो गई।
गोल पहाड़िया : बीते दो दशक में इस पहाड़ी पर वैध व अवैध बसावट हुई है. घर बनाने के लिए पूरी पहाड़ी काट दी गई है. यहां लगभग 5000 मकान बने है। अब इसका सिर्फ नाम ही पहाड़ी है लेकिन मौके पर पहाड़ का अस्तित्व ही खत्म हो गया है।
वन विभाग की भूमिका संदिग्ध : ग्वालियर शहर की इन 15 पहाड़ियों पर करीब डेढ़ लाख से ज्यादा लोग कब्जा कर बैठे हैं. वहीं ये आंकड़ा बढ़ता जा रहा है. वहीं, फॉरेस्ट विभाग के अफसरों पर पहाड़ियों पर अतिक्रमण रोकने की जिम्मेदारी है क्योंकि इनका स्वामित्व उसी का है। वह खामोश है. यहां तक मीडिया में भी नहीं बोल पा रहे हैं, क्योंकि उन पर पहाड़ियों पर पैसा लेकर कब्जा कराने के आरोप भी लगते रहे हैं. उसके अफसर इसके लिए राजस्व अमले को जिम्मेदार मानते है। डीएफओ ब्रिजेन्द्र श्रीवास्तव कहते है जब भी अतिक्रमण की खबर मिलती है हम उसे तत्काल तोड़ते हैं । वे पहाड़ियों के अतिक्रमण पर चुप्पी साध जाते हैं।जबकि राजस्व अधिकारी कहते है कि वन अफसर जब अतिक्रमण हटाने के लिए अमला मांगते है ,हम तत्काल देते हैं। उनके कहने पर दो वर्ष पहले कलेक्ट्रेट के आगे की पहाड़ी पर कब्जा होने से तत्काल रोका ।
भाजपा व कांग्रेस के अपने तर्क :
मंत्री ने कहा कार्यवाही होगी
शिवराज सरकार में उद्यानिकी मंत्री भारत सिंह कुशवाह का कहना है कि सरकार गरीबों को पट्टे देने का काम कर रही है लेकिन कई दशकों से जो पहाड़ियों पर अतिक्रमण करके बैठे हैं या उनके पास मकान होने के बावजूद भी अतिक्रमण कर रहे हैं तो ऐसे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी. वहीं शहर की पहाड़ियों पर अतिक्रमण बढ़ता जा रहा है. पहाड़ियां सरकारी नक्शे से गायब होती जा रही हैं. इस पर कांग्रेस का कहना है कि शिवराज सरकार के शासनकाल में लगातार माफिया हावी है और वह सरकारी जमीन और पहाड़ियों पर लगातार कब्जा कर रहे हैं.
तीन पहाड़ियों से अतिक्रमण हटाने का प्लान : बहरहाल, पहाड़ियों पर अतिक्रमण देखकर जिले की शहरी क्षेत्र और आसपास मौजूद पहाड़ियों और सरकारी जमीनों पर भू माफिया के लगातार बढ़ती कब्जे को देख हाल में ही 3 स्थानों पर मौजूद पारियों को चिन्हित किया है. जहां से जल्द ही अतिक्रमणकारियों से जमीन को मुक्त कराने का प्लान है, लेकिन सबसे बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर पहाड़ियों पर ऐसे कब्जाधारी है, जिन्होंने धार्मिक स्थान पर कब्जा करने की शुरुआत की है, ऐसे में प्रशासन के सामने मौजूदा वक्त में मुश्किल थोड़ी ज्यादा है.
ज्यादातर के मामले कोर्ट में लंबित
इन अतिक्रमणों को लेकर अनेक बार कोर्ट तोड़ने का आदेश दे चुका है लेकिन अपील के बाद ये फिर लंबित हो जाते है । राजस्व विभाग के अफसर हो या वन विभाग के वे भी कोर्ट में पक्ष रखने नही जाते लिहाजा मामले लटककर ही रह जाते है।
एक दूसरे की तरफ फेंकते हैं गेंद
नगर निगम अधिकारी कैमरे के सामने तो कुछ नही बोलते लेकिन निजी बातचीत में कहते हैं कि ज्यादातर अतिक्रमण या तो वन विभाग की पहाड़ियों पर है या राजस्व विभाग की लेकिन न तो तहसीलदार और न ही डीएफओ इसके लिए पहल करते हैं। नगर निगम उन्हें साधन उपलब्ध कराता है लेकिन प्रक्रिया तो उन्हें ही पूरी करनी पड़ेगी जबकि राजस्व और वन से जुड़े अफसर इसका ठीकरा निगम पर फोड़ते हुए कहते है सब निगम की मिली भगत से ही होता है।
क्या कहते है एक्सपर्ट
ग्वालियर में नगर निगम कमिश्नर और लंबे समय तक एडीएम रहे सेवा निवृत्त आईएएस विनोद शर्मा कहते है इसके लिए सबसे ज्यादा जिम्मेदार राजनीति है। सरकार अतिक्रमण कर्ताओं को पट्टे, देने जैसी योजनाएं बनाती है सो माफिया पहाड़िया घिरवाते हैं और फिर नेता यह लाईट, पानी ,सड़क ,सीवर की व्यवस्था करते है । सत्यनारायन की पहाड़ी ,केंसर पहाड़ी ,रक्कश पहाड़ी सब पर हर सुविधा उपलब्ध है हजारों घर और वोट है अब इनको उजाड़ पाना क्या आसान है। अफसर भी रिट पिटीशन पेंडिंग होने की बात कहकर अपना समय काटकर चलते बने हो जाते है।
राजनेता भी एक दूसरे को ठहराते है जिम्मेदार
इस मामले में राजनेताओं की हालत भी अफसरों जैसी है। वे भी इसका ठीकरा दूसरे के सिर फोड़ने पर आमादा रहते है । बीजेपी के जिला महामंत्री हरीश मेवाफरोश कहते है इन पहाड़ियों के गायब होने के लिए कांग्रेस के नेता जिम्मेदार है जिन्होंने वोट बैंक के लालच में लोगों को वहां बसाया और उनके लिए अधोसंरचना भी कराई। अब वर्षो से रह रहे हजारों परिवारों को उजाड़ना न आसान है ,न मानवीय । अनेक मामले कोर्ट में लंबित है । हालांकि यह विस्तार न हो इस पर ही काम हो जाये इसके लिए प्रयास हो रहे हैं।
इसके उलट कांग्रेस के पूर्व प्रवक्ता आरपी सिंह कहते है कि प्रदेश में पन्द्रह साल बीजेपी की सरकार रही तो भूमाफिया और बीजेपी नेताओ के गठजोड़ से पहाड़िया बेची गई। इनमे गैर कानूनी ढंग से सुविधाएं दी गई । चूंकि इसमें सरकार के लोग शामिल थे लिहाजा प्रशासन बेवस होकर देखता रहा और पहाड़िया गायब हो गई।