ख़त्म होगा MP का 27 साल का इंतज़ार, 15 अगस्त से MP के कुनो में दौड़ेंगे 16 चीते

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Ruchi Verma
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ख़त्म होगा MP का 27 साल का इंतज़ार,
15 अगस्त से MP के कुनो में दौड़ेंगे 16 चीते

Bhopal: वैसे तो 15 अगस्त का दिन ऐसे ही बहुत मायने रखता है पर इस बार यह दिन टाइगर स्टेट कहलाने वाले मध्य प्रदेश के लिए और भी ज्यादा ख़ास होने वाला है। क्योंकि, 70 साल बाद गणतंत्र दिवस के दिन से राज्य में चीतों की दहाड़ एक बार फिर से गूंजेगी। केंद्र के महत्वकांक्षी चीता प्रोजेक्ट के तहत 15 अगस्त,2022 को 16 अफ्रीकन चीतों को मध्य प्रदेश के श्योपुर स्थित  कुनो पालपुर नेशनल पार्क में छोड़ा जाएगा। इसके बाद मध्य प्रदेश देशभर में अफ्रीकी चीतों के बसने वाला पहला राज्य बन जाएगा। पता हो कि वर्ष 1952 में चीता को भारत से विलुप्त घोषित कर दिया गया था। कुनो नेशनल पार्क में चीतों की बसाहट को केंद्र 'आजादी का अमृत महोत्सव' अभियान के हिस्से के रूप में पेश करना चाहता है। 



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10 नर व 6 मादा चीते लाए जाएंगे, 2026 तक 64 चीतों के प्लानिंग



सूत्रों के अनुसार - 1 डिप्टी फील्ड डायरेक्टर, 1 रेंजर और 1 डॉक्टर - 3 अधिकारियों की एक टीम टेक्निकल ट्रेनिंग के लिए दक्षिण अफ्रीका/नामीबिया रवाना हो चुकी है। वन विभाग के अनुसार अफ्रीकी चीते दक्षिण अफ्रीका एवं नामीबिया से पहले ग्वालियर लाए जाएंगे। फिर यहां से सड़क मार्ग के जरिए इन्हें  कुनो राष्ट्रीय उद्यान पहुंचाया जाएगा। 16 अफ्रीकी चीतों में 6 मादा चीता होंगी और 10 नर चीता होंगे। इनमे से 8 चीता नामीबिया से लाए जाएंगे और 8 साउथ अफ्रीका से। अफ्रीकन चीतों का यह पहला जत्था है जो भारत के कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान में लाया जाएगा।  जानकारी के मुताबिक, इन 16 चीतों के कुनो लाने के बाद का पहला साल ट्रायल अवधि होगी।अगर सब कुछ ठीक रहा तो इसके बाद वर्ष 2023 में 16, वर्ष 2024 में 16 और वर्ष 2025 में भी 16 चीतों को जोड़ा जाएगा। इस तरह कुछ 64 चीतों को मध्य प्रदेश में बसाने की तैयारी है। 



होगा 'सॉफ्ट-रिलीज़'



वरिष्ठ वन विभाग अधिकारी जे एस चौहान ने बताया कि चीतों को रेडियो-कॉलर्ड किया जाएगा जिससे उनपर नज़र रखी जा सके। चीतों को सॉफ्ट-रिलीज़ किया जाएगा जिससे उनके राष्ट्रीय उद्यान की सीमा से बाहर जाने की संभावना कम हो। नर और मादा चीतों को राष्ट्रीय उद्यान में खुला छोड़ने से पहले कुछ वक़्त के लिए अलग-अलग पर आसपास के बाड़ों में रखा जाएगा। 1-2 महीने बाद नर चीतों को बाड़े से खुले राष्ट्रीय उद्यान में छोड़ा जाएगा। नर चीतों को खुला छोड़ने के 1 से 4 हफ्ते बाद मादा चीतों को खुला छोड़ा जाएगा।



100 से भी ज्यादा का है करोड़ का है चीता प्रोजेक्ट




  • चीता एक्शन प्लान, जनवरी 2022 के अनुसार चीतों के कुनो पार्क में छोड़े जाने के बाद प्रोजेक्ट के सिर्फ पहले 5 साल की लागत ही 91.65 करोड़ रुपये होने का अनुमान है। वहीं अगर प्रोजेक्ट पर हुए अब तक के खर्च की बात की जाए तो वरिष्ठ वन विभाग अधिकारी जे एस चौहान ने द सूत्र को बताया कि पिछले 25 सालों में इस प्रोजेक्ट पर 40 करोड़ रुपए के करीब खर्च हो चुकें हैं और आगे भी 60 करोड़ खर्च होने की संभावना है। चौहान का कहना है कि असली खर्च हर साल बदल सकता है।


  • पर अगर अन्य रिपोर्ट्स के हिसाब से देखें तो शेर और चीतों की इस योजना पर पिछले 25 सालों में यानी कि वर्ष 1996 से अब तक लगभग 87 करोड़ की राशि खर्च हो चुकी है जिसमें 24 विस्थापित गांवों का रिहैबिलिटेशन खर्च - 76.50 करोड़ रुपए और चीतों को लाने की तैयारी का खर्च - 10.50 करोड़ रुपए शामिल है।

  • वहीं लोकसभा में एक सवाल के जवाब में, पर्यावरण राज्य मंत्री अश्विनी कुमार चौबे ने कहा था कि वर्ष 2021-22 और वर्ष 2025-26 के बीच चीता परियोजना के लिए प्रोजेक्ट टाइगर से 38.70 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।



  • प्रोजेक्ट की सफलता के लिए 50% चीतों का जीवित रहना जरूरी



    वैसे तो चीता प्रोजेक्ट को किसी तय समय सीमा में नहीं बाँधा गया है,और इसको एक कॉन्टिनियस प्रोसेस की तरह देखा जा रहा है...फिर भी परियोजना के पहले चरण के लिए पाँच साल की अवधि तय की गई है। चीता एक्शन प्लान के अनुसार, परियोजना की सफलता के अल्पकालिक पैरामीटर के अनुसार पहले वर्ष के लिए पेश किए गए 50% चीतों का जीवित रहना जरूरी होगा।



    कूनो पार्क ही क्यों?



    चौहान ने बताया कि मध्य प्रदेश के कुनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान (KNP) को चीतों के लिए चुनने के तीन मुख्य कारण हैं - चीतों को रखने के लिए आवश्यक स्तर की सुरक्षा, शिकार और आवास। हर चीते को रहने के लिए 10 से 20 वर्ग किमी का एरिया चाहिए होता है, और कुनो उनके प्रसार के लिए पर्याप्त जगह देता है। कूनो पालपुर राष्ट्रीय उद्यान 750 वर्ग किमी में फैला है जो कि 6,800 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैले बड़े श्योपुर-शिवपुरी खुले जंगल का हिस्सा है। ज्यादातर समतल जमीन वाले इस अभ्यारण में इंसानों की किसी भी तरह की बसाहट भी नहीं है । इसके अतिरिक्त, एशियाई शेरों को मध्य प्रदेश के कुनो में लाने के असफल प्रोजेक्ट के तहत इस साइट पर पहले से ही बहुत सारी तैयारियां और निवेश किए जा चुके हैं जो कि चीतों के लिए एकदम उपयुक्त है।



    बब्बर शेर से शुरू और अफ्रीकन चीते पर ख़त्म MP का 27 साल का इंतज़ार




    • दरसल, कुनो राष्ट्रीय उद्यान (पहले वन्य प्राणी अभ्यारण्य) में चीता लाना मध्य प्रदेश सरकार की प्राथमिकता नहीं थी...क्योंकि वर्ष 1996 में यहाँ गिर के बब्बर शेर बसाने की बात तय हुई थी - जिसके लिए बाकायदा 'सिंह परियोजना बनाई गई थी। पर गुजरात सरकार मामले में लम्बे वक़्त तक टालमटोल करती रही। इसलिए  वर्ष 2003 में मध्य प्रदेश सरकार मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट पहुंची जहाँ वर्ष 2013 केस चलता रहा।


  • आखिरी में 15 अप्रैल, 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात को मध्यप्रदेश जूनागढ़ के पास स्थित गिर नेशनल पार्क से बब्बर शेर देने को कहा। इसके लिए गुजरात को को 6 महीने का समय दिया गया। SC के निर्णय के बाद गुजरात सरकार ने भी MP सरकार के सामने शेर देने के लिए तरह-तरह की शर्तें/ बहाने रख दी - पहले वन विभाग, गुजरात ने कुनो राष्ट्रीय उद्यान का क्षेत्रफल बढ़ाने के लिए कहा। इसके बाद शिकारियों को रोकने के लिए विशेष प्रबंध करने के लिए कहा गया। फिर गुजरात सरकार MP सरकार से अंतरराष्ट्रीय मापदंड पूरे करने की बात कह रही है जबकि एक ही देश के एक से दूसरे राज्य में वन्यजीवों को लाने के लिए अंतरराष्ट्रीय मापदंड पूरे करने की आवश्यकता नहीं होती है।

  • बब्बर शेर को लाने की तैयारी में वर्ष 2018 में मध्य प्रदेश सरकार ने कुनो को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा प्रदान किया। साथ ही कूनो का क्षेत्रफल 344 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल बढ़ाकर कुल क्षेत्रफल 748 वर्ग किलोमीटर कर दिया। इसमें 24 गांवों का विस्थापन किया गया जिनके रिहैबिलिटेशन में करीब 76.50 करोड़ की राशि खर्च की गई। शिकारियों को रोकने के लिए कुनो राष्ट्रीय उद्यान में सशस्त्र पूर्व सैनिकों की तैनाती कर दी गई। पर मध्य प्रदेश सरकार की इतनी सारी तैयारियों और कई कोशिशों के बाद भी गुजरात सरकार ने बब्बर शेर नहीं दिए।

  • थक-हारकर वर्ष 2019 में मध्य प्रदेश सरकार ने कुनो में अफ्रीकी चीते बसाने की योजना बनाई। वर्ष 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने नेशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी को इसकी मंजूरी दी। जिसके बाद 2 साल COVID-19 के रहते निकल गए....लेकिन फिर वर्ष 2021 में प्रोजेक्ट ने तेज़ी पकड़ी। पहले  MP सरकार राज्य के स्थापना दिवस यानी 1 नवंबर को चीतों को कुनो नेशनल पार्क में लाना चाहती थी, लेकिन केंद्र सरकार से तारीख नहीं मिल पाने के कारण चीते नहीं आ सके।



  • चीता प्रोजेक्ट के सामने चैलेंज




    • तेंदुओं और टाइगर के साथ प्रतिस्पर्धा: सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या अफ्रीकन चीते बाकी जानवर जैसे तेंदुओं के साथ रह पाएंगे? अफ्रीकन चीतों को मध्य प्रदेश के कुनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया जाना है जहाँ पहले से ही लगभग 30 तेंदुएं रहते हैं। माना जाता है कि कुनो से 140 किमी दूर राजस्थान में रणथंभौर टाइगर रिजर्व के बाघ भी कुनो पार्क में आ जाते हैं। अब एक ही इकोसिस्टम में तीन शिकारी जानवरों की निकटता मुश्किलें पैदा कर सकती हैं।  वन्यजीव एक्सपर्ट्स का कहना है कि कुनो में चीता, टाइगर, तेंदुओं  के बीच इंट्रागिल्ड प्रतियोगिता होगी। इंट्रागिल्ड प्रतियोगिता यानि ऐसी प्रतियोगिता जिसमे जानवर समान संसाधनों या विभिन्न संसाधनों का समान तरीके से दोहन करता है। कुनो के केस में बाघ और तेंदुए जैसे अधिक आक्रामक शिकारी जानवर चीतों के साथ प्रतिस्पर्धा करेंगे। यह चीतों के लिए एक खतरा है।


  • मानव-वन्यजीव संघर्ष: चीता, तेंदुआ और टाइगर के बीच आपसी प्रतिस्पर्धा के कारण चीते कुनो पार्क के बाहरी इलाके में जा सकते हैं, जिसके कारण एक दूसरी बड़ी समस्या आ सकती है - मनुष्यों के साथ संघर्ष।

  • बीमारियाँ: एक चिंताजनक विषय है आने वाले अफ्रीकन चीते ऐसी बीमारियाँ भी ला सकते हैं -जो वैसे तो कम हैं - पर जो कुनो और आसपास मौजूद अन्य वाइल्ड कैट प्रजातियों के लिए खतरा पैदा कर सकती हैं। स्थानीय बाघों की आबादी में अगर यह फैली तो मुश्किल हो सकती है।



  • चीता प्रोजेक्ट एक प्रयोग, जिसके लिए कोई गारंटी नहीं दी जा सकती: लॉरी मार्कर, WHO, चीता कंज़र्वेशन फण्ड, नामीबिया की हेड



    लॉरी मार्कर, WHO, चीता कंज़र्वेशन फण्ड, नामीबिया की हेड, का कहना है कि चीता प्रोजेक्ट एक तरह से यह एक प्रयोग होगा। जिसके लिए कोई गारंटी नहीं दी जा सकती। यह प्रोजेक्ट असल में एक नंबर गेम है जिसको सफल बनाने के लिए कई जानवरों/चीतों की जरुरत होगी। और यह सक्सेस इस पर डिपेंड करेगा कि चीतों का प्रजनन कैसा होता है और इसमें से कितने ऐसे होंगे जो जीवित रहेंगे। तंज़ानिया के सेरेनगेटी नेशनल पार्क जैसे आदर्श स्थिति देने वाले क्षेत्रों में भी चीतों की लगभग 90 प्रतिशत शावकों की मौत हो जाती है।'


    Madhya Pradesh शिवराज सिंह चौहान SHIVRAJ SINGH CHOUHAN Kuno National Park मध्य प्रदेश South Africa Cheetah Project NTCA Ministry of Environment Forest and Climate Change मध्य प्रदेश वन विभाग African Cheetah अफ्रीकी चीता आजादी का अमृत महोत्‍सव Azadi ka amrit mahotsav Namibia नामीबिया mpforest.gov.in कुनो राष्ट्रीय उद्यान दक्षिण अफ्रीका चीता परियोजना