इंदौर हाईकोर्ट की कमेटी के सामने भूमाफियाओं की पहुंची 271 शिकायतें, भूमाफिया जवाब देने के लिए ही तैयार नहीं, पीड़ित भटक रहे

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The Sootr
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इंदौर हाईकोर्ट की कमेटी के सामने भूमाफियाओं की पहुंची 271 शिकायतें, भूमाफिया जवाब देने के लिए ही तैयार नहीं, पीड़ित भटक रहे

संजय गुप्ता, INDORE, इंदौर हाईकोर्ट बेंच द्वारा तीन कॉलोनियों में भूमाफियाओं से पीड़ितों के निराकरण के लिए बनी हाईकोर्ट के रिटायर जज की कमेटी को निर्देशों को भूमाफियाओं ने ताक पर रख दिया है। इस कमेटी के सामने करीब 271 शिकायतें तीन कॉलोनियों की पहुंच चुकी है लेकिन भूमाफिया जवाब देने के लिए ही तैयारी नहीं है। गिनती के मामले में जवाब दिए गए हैं और कमेटी के बार-बार निर्देश के बाद भी कोई निराकरण करने के लिए तैयार नहीं है। जानकारी के अनुसार कमेटी के सामने कालिंदी गोल्ड़ के 55, सेटेलाइट के 78 तो फिनिक्स कॉलोनी के सबसे ज्यादा 138 मामले पहुंचे हैं।



अब सुनवाई का शेड्यूल ख्तम, निराकरण नहीं तो भेजो जेल



तीनों कॉलोनियों की सुनवाई का शेड्यूल भी खत्म हो चुका है अब पीड़ितों को जवाब और निराकरण चाहिए। पीड़ित हर दिन कमेटी के सामने पेश हो रहे हैं और दोपहर तीन बजे से पहुंच जाते हैं और शाम छह बजे तक इसी उम्मीद में बैठते हैं कि आज भूमाफिया उन्हें सही निराकरण देंगे या राशि लौटाने की बात कहेंगे, लेकिन हर दिन वह निराश लौट रहे हैं। अब उन्हें भी निराकरण की उम्मीदें धूमिल हो रही है, ऐसे में कई पीड़ितों का कहना है कि बस बहुत हो चुका जब यह सुप्रीम कोर्ट, हाईकोर्ट और कमेटी की भी नहीं सुन रहे तो फिर हमे क्या प्लॉट या राशि देंगे, सभी को जेल भेजा जाना चाहिए। 



भूमाफिया कंपनियों के कर्मचारी, नौकरों को ही भेज रहे



कमेटी में हर दिन ले-देकर महावीर जैन, निकुल कपासी, रजत बोहरा पहुंचते हैं, जो मूल रूप से कंपनी के कर्मचारी और नौकर है। लोगों को सबसे ज्यादा उलझाने वाला भूमाफिया चंपू अजमेरा मुश्किल से तीन बार ही कमेटी के सामने पहुंचा है। वहीं चिराग शाह एक बार, हैप्पी धवन दो बार कमेटी के सामने पहुंचे वहीं नीलेश अजमेरा, योगिता अजमेरा, सोनाली अजमेरा, पवन अजमेरा के कोई पते ही नहीं है, केवल उनके अधिवक्ता ही सामने आते हैं। कमेटी के बार-बार बुलाने के बाद भी यह सामने नहीं आए हैं। कमेटी चंपू को भी बोल चुकी है, कि आपके जिम्मेदारी लेने से काम नहीं चलेगा अजमेरा परिवार के बाकी सभी आरोपियों को भी आना होगा। 



तीनों ही कॉलोनियों में अभी तक के निराकरण का कोई मतलब ही नहीं



कालिंदी गोल्ड- इस कॉलोनी के पीडितों का निराकरण हो सकता है, क्योंकि यही इकलौती कॉलोनी है जहां कोई तकनीकी पेंच नहीं फंसा है। लेकिन यहां पर सभी भूमाफिया एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डालने में लगे हैं। सबसे बड़े जमीन के जादूगर चंपू अजमेरा इसमें अपना किसी केस में हाथ नहीं होने की बात कहकर निराकरण नहीं कर रहा है, वहीं कंपनी के बाकी डायरेक्टर चंपू पर जिम्मेदारी डाल कर बच रहे हैं। डायरियों के सौदों को नकली बताया जा रहा है, जिसमें अलग जांच की बात उठ रही है कि साइन की सच्चाई निकाली जाए कि डायरी पर असली है या नकली। इससे एक अलग मुद्दा उठ रहा है। 



सेटेलाइट हिल- सेटेलाइट हिल में नक्शा ही गलत पास हुआ है क्योंकि जिन किसानों की जमीन बताई गई है, उनका सौदा भूमाफियओं ने पूरा किया ही नहीं। यहां जमीन का कब्जा जिन्हें प्रशासन की कमेटी ने दिया भी था, तो वह भी परेशान हो रहे हैं क्योंकि किसान उन्हें वहां से भगा देते हैं, कोई नई सिरे से रजिस्ट्री तो हुई ही नहीं, जिसमें प्लाट की सीमा तय की गई हो। ऐसे में कब्जा लेने वाले भी परेशान हो रहे हैं। क्योंकि यह केवल निराकरण की कागजी कार्रवाई साबित हो रही है। यहां कैलाश गर्ग के बैंक लोन का अलग मुद्दा चल रहा है। कुल मिलाकर यहां के पीड़ित पूरी तरह से अधर में हैं।



फीनिक्स- सबसे ज्यादा शिकायतें इसी कॉलोनी की आई जो पूरी तरह से चंपू अजमेरा का खेल है। एक करोड़ का लोन लेकर कंपनी को डिफाल्टर घोषित कराया जा चुका है। अब केस लिक्विडेटर के पास आया है, चंपू ने सैकड़ों नोटिस के बाद औऱ् कमेटी के दबाव के बाद लिक्विडेटर के पास बयान तो दिए है लेकिन खातों की अभी भी पूरी जानकारी नहीं दी कि किससे कितना रूपए कहां और कैसे लिया? कंपनी के डिफाल्टर होने के साथ यहां भी जमीन को लेकर विवाद है, किसानों से यहां भी आधा-अधूरा सौदा हुआ है जिससे जमीन उलझी हुई है और नक्शा गलत पास हुआ है। जिन लोगों ने भूमाफियों से डील कर या फायनेंस कर जमीन ली और राशि दी, उनके पास बड़े जमीन के टुकड़े हैं जो वह अब देने के तैयार नहीं है, ऐसे में पीडितों को देने क लिए प्लाट नहीं मिल रहे हैं। जहां दे रहे हैं वहां भी कब्जे को लेकर विवाद हो रहे हैं।



ऐसे नहीं होगा हल, सीधे आदेश दीजिए अलग जमीन लेकर दो सभी को प्लॉट



जानकारों का कहना है कि इस पूरे मामले में कोशिश ही गलत दिशा में चल रही है, भूमाफियाओं और किसान, बैंक वालों के बीच के जो विवाद है वह बेवजह कमेटी सुलझाने का काम कर रही है, जबकि कमेटी का काम पीड़ितों का निराकरण करना है ना कि भूमाफिया और उनके आपसी विवाद सुलझाने की जिम्मेदारी है। सेटेलाइट, फिनिक्स, कालिंदी के कानूनी विवाद भूमाफिया खुद सुलझाए, कमेटी को साफ बोलना चाहिए कि जितने भी रजिस्ट्री धारक है, उन सभी को प्लाट नहीं मिल रहे तो सभी भूमाफिया मिलकर अलग जगह एक जमीन लें, प्रशासन उसे विकास मंजूरी दे और सभी पीडितों को एक साथ वहां प्लाट दिए जाए। जिनके सौ फीसदी पेमेंट हो उन्हें भी प्लाट का हक दिया जाए। बाकी पेमेंट करने वाले जो राशि वापस लेने को तैयार है, उन्हें एक तय ब्याज दर से राशि देना तय कर दें। बाकी कॉलोनियों के कानूनी केस भूमाफिया खुद निपटे, प्रशासन या हाईकोर्ट क्यों उन्हें सुलझाएगा, यह काम उनका नहीं है। जरूरत पड़े तो भूमाफिया की संपत्तियों की कुर्की करे और राशि लेकर प्रशासन खुद यह सख्त कदम उठाए, सभी पीडितों को भुगतान कर दें, जब चिटफंड मामले में सहारा ग्रुप या अन्य कंपनियों को लेकर कोर्ट इस तरह आदेश दे सकती है तो फिर कॉलोनियों के मामले में भी यह कदम उठाए जा सकते हैं।


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