विदिशा में अजीब बीमारी वाले 3 भाई-बहन, चौपायों की तरह चलते हैं, पूंछ के अवशेष भी

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Aashish Vishwakarma
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विदिशा में अजीब बीमारी वाले 3 भाई-बहन, चौपायों की तरह चलते हैं, पूंछ के अवशेष भी

विदिशा. दुनिया में ऐसी अजीबोगरीब चीजें होती है, जिनपर कई बार यकीन करना आसान नहीं होता है। विदिशा जिले के एक परिवार के तीन सगे भाई-बहन भी एक ऐसी ही अजीब बीमारी से जूझ रहे हैं। परिवार ग्यारसपुर विकासखंड अंतर्गत आने वाले मोहम्मदगढ़ गांव में रहता है। युवा होने के बावजूद भी ये बच्चों की तरह व्यवहार करते हैं, अभी भी खिलौने से खेलते हैं। वो न खड़े हो पाते हैं और नाही पैरों से चल पाते हैं। ये अपने हाथ और पैरों का इस्तेमाल करके चौपायों की तरह चलते हैं। इनकी बोली भी साफ नहीं है। इनमें से एक के तो पूंछ के अवशेष भी साफ दिखाई देते हैं। 



जैनेटिक बीमारी से जूझ रहे: मोहम्मदगढ़ गांव में शफीक खान का परिवार मजदूरी करता है। शफीक के सात बच्चे हैं, जिनमें से सबसे बड़े 32 वर्षीय रफीक, 22 वर्षीय जुबेर और 12 वर्षीय अमरीन बचपन से ही बीमारी से जूझ रहे हैं। सभी इन्हें पीलियों पीड़ित मानते आ रहे हैं। लेकिन डॉक्टरों का मानना है कि ये दुर्लभ बीमारी है जो जैनेटिक डिसऑर्डर के कारण होती है। इन पीड़ितों की केस स्टडी करने वाले भोपाल के डॉ. जीशान हनीफ ने बताया कि इस केस का मैंने अध्ययन किया है और यह उनरटेन डिसआर्डर का केस है। जो वंशागत होता है। 2005 में टर्की में भी इस तरह के केस सामने आए थे। 



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सारे काम माता-पिता करते हैं: जब ये बात करते हैं तो लगता है कि कोई बच्चा या अल्पविकसित मस्तिष्क का व्यक्ति बोल रहा है। यहां तक कि इनको नहलाने और शौच का काम भी माता-पिता ही कराते हैं। परिवार पेशे से मजदूरी करता है। लिहाजा बच्चा का किसी अच्छे अस्पताल में इलाज नहीं करा पाए। माता शकीला बी ने बताया कि मजदूरी करके किसी तरह परिवार पाल रहे हैं। बड़े अस्पताल में दिखाने कहां ले जाएं। वहीं, सरपंच शेख सैयाद ने बताया कि सरकारी योजना के अनुसार ट्राइसिकल दिला दी है, विकलांग पेंशन भी मिलने लगी है, लेकिन फिर भी गरीबी के कारण गुजारा संभव नहीं है।



डॉक्टरों ने ये बताया: AIIMS के पूर्व निदेशक डॉ. सरमन सिंह कहते हैं कि माता-पिता के क्रोमोसोम्स में गड़बड़ी के कारण ये स्थिति बनती है। प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग को इस पर ध्यान देना चाहिए। विदिशा के वरिष्ठ अस्थिरोग विशेषज्ञ डॉ. सचिन गर्ग ने बताया कि निश्चित तौर पर ये जैनेटिक डिसऑर्डर ही है। इसका असर पैरों से लेकर ब्रेन तक रहता है। ऐसे में सैरीब्रल पैल्सी हो जाती है। अगर सही समय पर इलाज मिल जाए तो सुधार की संभावना है। गांव में पोलियो जैसी विकलांगता के तीन और बच्चे हैं। लेकिन वो सिर्फ निशक्तता से पीड़ित है, लेकिन उन्हें चलने के लिए इतना संघर्ष नहीं करना पड़ता। 


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