BHOPAL. पूर्वोत्तर राज्य मणिपुर में बीते दिनों हुई हिंसा में मध्यप्रदेश के करीब 30 छात्र इंफाल में फंसे हुए हैं। पंधाना से बीजेपी विधायक राम दांगोरे ने इन छात्रों के रेस्क्यू की मांग करते हुए सीएम शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखा है। पत्र में उन्होंने- मणिपुर में चल रही हिंसा के लगातार बढ़ने के चलते वहां पर फोन तथा इंटरनेट सुविधा बंद कर दी गई है और भारतीय सेना को तैनात कर दिया गया है। इम्फाल के NSU विश्वविद्यालय में मध्यप्रदेश के लगभग 30 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं, जिनमें खंडवा के 3 विद्यार्थी शामिल हैं। अतः आपसे मध्यप्रदेश के अन्य विद्यार्थियों को एयरलिफ्ट करवाकर रेस्क्यू कर वापस मध्यप्रदेश लाए जाने का अनुरोध है।
मणिपुर में थमी हिंसा
मणिपुर में 7 मई को हिंसा अब थम चुकी है। हालांकि हालात सामान्य होने में वक्त लगेगा। चूराचांदपुर जिले में रविवार सुबह 7 बजे से 10 बजे तक के लिए कर्फ्यू हटाया गया, ताकि लोग अपनी जरूरत का सामान खरीद सकें। 10 बजे के बाद सेना और असम राइफल्स ने पूरे जिले में फ्लैग मार्च किया।
27 अप्रैल को हुई थी हिंसा
मणिपुर के चूराचांदपुर जिले से 27 अप्रैल को हिंसा शुरू हुई थी। इस हिंसा में अब तक 54 लोगों की मौत हो चुकी है। वहीं, 100 से ज्यादा लोग घायल हैं। सेना के मुताबिक, अब तक सभी समुदायों के 23 हजार से ज्यादा लोगों का रेस्क्यू कर सेना के कैंप में भेजा गया है। राज्य में सुरक्षाबलों की 14 कंपनी तैनात की गई हैं। केंद्र सरकार 20 और कंपनी राज्य में भेजने वाली है।
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छात्रों को निकालने मुहिम तेज
मणिपुर में हिंसा थमने के बाद अब देश के बाकी राज्यों ने मणिपुर में मौजूद छात्रों को रेस्क्यू करने की मुहिम तेज कर दी है। सिक्किम ने रविवार को 128 स्टूडेंट्स को मणिपुर से निकाला। वहीं, महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे ने बताया कि राज्य के 22 छात्रों को मणिपुर से निकालने के लिए स्पेशल एयरक्राफ्ट का इंतजाम किया गया है।
मैतेई समुदाय जनजाति नहीं
बीजेपी विधायक डिंगांगलुंग गंगमेई ने कहा- मैतेई समुदाय एक जनजाति नहीं है और इसे कभी इस रूप में मान्यता भी नहीं दी गई है। ये आदेश देना हाईकोर्ट के अधिकार क्षेत्र में नहीं है। इस पर सिर्फ राज्य सरकार फैसला ले सकती है। ये आदेश अवैध है और इसे रद्द किया जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट को यह समझना चाहिए था कि ये राजनीतिक मुद्दा है और इसमें हाईकोर्ट की कोई भूमिका नहीं है। हाईकोर्ट के इस फैसले से आदिवासियों के बीच गलतफहमी पनपी और तनाव बढ़ा। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से हाईकोर्ट के इस आदेश पर स्टे लगाने की मांग की है।