SATNA. सरदार वल्लभ भाई पटेल शासकीय जिला चिकित्सालय के विशेष नवजात चिकित्सा इकाई (SNCU) में नवजातों की मौत का आंकड़ा घटने की बजाय बढ़ता ही जा रहा है। साल भर में औसतन 12 फीसदी डेथ रेशियो से हेल्थ डिपार्टमेंट के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आई हैं। समीक्षा बैठकों के दौरान यह बात सामने भी आ चुकी है। जिला अस्पताल में संचालित आउट और इन बॉर्न के आंकड़े देखे जाय तो एक साल के अंदर 341 नवजात एसएनसीयू में दम तोड़ चुके हैं। इन नवजातों की जान लाइफ सपोर्ट वेंटिलेटर भी नहीं बचा पाया। भर्ती बच्चों के अनुपात में हुई 341 नवजातों की मौत का रेशियो 11.73 फीसदी है। साल भर में 124 बच्चों को रीवा मेडिकल कॉलेज रेफर किया गया जबकि एसएनसीयू में उपचार के बाद ठीक होकर 2423 नवजात अपने-अपने घरों को गए। 20 परिजन ऐसे रहे जो बगैर डॉक्टरों को बताए अपने बच्चों को ले गए। सतना के एसएनसीयू के इन आंकड़ों के सामने आने के बाद लोक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग (public health and family welfare department) भी सकते में है, यही वजह है कि हाल ही में क्षेत्रीय स्वास्थ्य संचालक डॉ. पीके पाठक ने जिला अस्पताल में नवजातों की मौत के कारणों की समीक्षा की थी। मानक कहते हैं कि एसएनसीयू में भर्ती नवजातों में से सिर्फ 10 फीसदी मौत ही स्वीकार्य है।
इनबॉर्न से ज्यादा आउट बार्न में भर्ती
2021-22 के आंकड़े कहते हैं कि इन बॉर्न (inborn) से ज्यादा आउट बॉर्न यूनिट में बीमार बच्चों को भर्ती किया गया। साफ है कि जिला अस्पताल में पैदा होने वाले नवजात कम बीमार पड़े जबकि पेरीफेरल के प्रसव केंद्र में पैदा हुए नवजात ज्यादा बीमार होकर एसएनसीयू में भर्ती हुए। साल भर में यहां 2908 बच्चे एडमिट हुए जिसमें 1261 इनबॉर्न और 1647 बच्चों को भर्ती कराया गया। एक बात और भर्ती होने वाले बच्चों में सर्वाधिक मेल जेंडर (male gender) हैं।
दो तरह भर्ती होते हैं यहां
एसएनसीयू में दो तरह से नवजातों (newborn) को एडमिट किया जाता है। दरअसल, यहां दो यूनिट हैं जिनमें अलग-अलग नवजातों को भर्ती किया जाता है। आउट बॉर्न (outborn) में उन बीमार नवजात बच्चों को भर्ती किया जाता है जो जिले के अलग-अलग डिलेवरी प्वाइंट्स में पैदा होते हैं, जबकि इन बॉर्न में भर्ती होने वाले नवजात जिला अस्पताल में पैदा हुए होते हैं। पैदा होने के 30 दिन के अंदर बीमार होने वाले बच्चों को विशेष नवजात चिकित्सा इकाई में एडमिट किया जाता है। एसएनसीयू में उन्हीं नवजातों को भर्ती किया जाता है जो पैदाइशी बीमार होते हैं। मसलन, पैदा होने के बाद सांस लेने में परेशानी, गर्भ में गंदा पानी गटक जाना, पीलिया होने आदि की समस्याएं शामिल हैं।