35 हजार एमटी गेहूं खराब, इतने में 88 लाख गरीबो को मिल जाता राशन

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Rahul Sharma
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35 हजार एमटी गेहूं खराब, इतने में 88 लाख गरीबो को मिल जाता राशन

Bhopal.



मध्यप्रदेश में 6 सालों में करोड़ों का 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं सड़ गया है। इतने में प्रदेश के 88 लाख 24 हजार गरीबों को 1 महीने के लिए 4 किलो गेहूं मिल जाता। दरअसल खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की वेबसाइट के अनुसार प्रदेश में सरकारी राशन दुकानों यानी पीडीएस दुकानों से राशन लेने वाले पात्र परिवारों की संख्या 1.15 करोड़ है और इन पात्र परिवारों की जनसंख्या 5.37 करोड़ है। वैसे तो 22396 पीडीएस दुकानों से राशन लेने के लिए अलग—अलग कार्ड है और इसके अनुसार राशन लेने की पात्रता भी अलग है, पर हम यहां यदि सभी प्राथमिक राशन कार्डधारी ही माने तो एक व्यक्ति को हर माह 4 किलो गेहूं मिलता है। इस दृष्टिकोण से अधिकारियों की लापरवाही से जो गेहूं सड़ा है उतना तो प्रदेश के 88 लाख 24 हजार पात्र हितग्राहियों को 1 माह का 4—4 किलो गेहूं मिल जाता। राज्य सरकार वर्तमान में किसानों से 2015 रुपए क्विंटल की दर से गेहूं खरीद रही है, यदि यह गेहूं आज सुरक्षित रहता तो इसकी कीमत 71 करोड़ 12 लाख रुपए होती।







उंचे दामो पर खरीदकर औने—पौने दाम पर बेचने की तैयारी





प्रदेश के किसानों का गेहूं उंचे दामों पर खरीदकर अब इसे औने—पौने दामों में बेचने की तैयारी है। यह गेहूं इतना खराब हो चुका है कि अब इंसानों के खाने के लायक नहीं रह गया है। इसके चलते अब इसे पशुओं के खाने और इंडस्ट्रिंयल उपयोग के लिए सरकार इस गेहूं को खुले बाजार के लिए नीलाम करेगी। प्रदेश के विभिन्न जिलों में खराब हुए इस गेहूं को बेचने के लिए नागरिक आपूर्ति निगम ने ग्लोबल टेंडर जारी किए थे। कुल सौ बिड इस गेहूं को खरीदने के लिए आई है। इनमें से जो कंपनियां जिस जिले के गेहूं को अधिकतम दाम पर खरीदने को तैयार होंगी उन्हें यह गेहूं बेचा जाएगा।







टेक्यपेयर के 60.53 करोड़ कर दिए बर्बाद





प्रदेशभर में वर्ष 2015 से लेकर वर्ष 20-21 के बीच खरीदा गया गेहूं 390 स्थानों पर रखरखाव के अभाव में खराब हुआ। यह गेहूं अब डेढ़ से दो रुपए किलो के भाव से निजी कंपनियां खरीदेंगी। यदि गेहूं का हम अधिकतम भाव 3 रूपए प्रति किलो भी ले लें तो इसका मतलब यह हुआ कि 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं 10.58 करोड़ का बिकेगा, जबकि यदि गेहूं अच्छा होता तो आज इसकी कीमत 71.12 करोड़ से अधिक होती, मतलब टेक्सपेयर की गाढ़ी कमाई के 60.53 करोड़ यूं ही बर्बाद हो गए।  







अब तक इस तरह खराब हुआ गेहूं





छिंदवाड़ा जिले के ओपन कैप चंदनवाड़ा चैरई में वर्ष 20-21 में खरीदकर रखा 10 हजार 980.105 टन गेहूं, हरेराम काटन इंडस्ट्री और गोपीनाथ वेयरहाउस में रखा वर्ष 20-21 का 951.489 टन गेहूं, छिंदवाड़ा के एमपी डब्ल्यूएलसी में वर्ष 16-17 में रखा 5.36 टन गेहूं, इसके अलावा कटनी में वर्ष 19-20 में खरीद कर रखा गया 1 हजार 619.15 टन गेहूं और इसी तरह वर्ष 20-21 में छिंदवाड़ा के ओपन कैप चंदनवाड़ा चैरई में रखा गया 4 हजार 685 मीट्रिक टन गेहूं और भोपाल, होशंगाबाद में वर्ष 2019 से 20 तक खरीदा गया गेहूं, सीहोर, राजगढ़, रायसेन, सागर, श्योपुर, सतना जिलों में वर्ष 2015 से वर्ष 2020-21 के बीच खरीदा गया। कुल मिलाकर 35 हजार 297 मीट्रिक टन गेहूं खराब हो गया है।







रखरखाव, परिवहन पर खर्च हो चुके करोड़ों रुपए





राज्य सरकार समर्थन मूल्य पर खरीदे गए गेहूं का परिवहन कर उन्हे निजी गोदामों, भारतीय खाद्य निगम के गोदामों और अन्य गोदामों में रखती है। एक मीट्रिक टन गेहूं के रखरखाव पर सालाना 27 रुपए प्रति मीट्रिक टन प्रति वर्ष का खर्च आता है। इसी तरह गोदामों तक गेहूं पहुंचाने के लिए भी हर साल करोड़ों रुपए का खर्च होता है। इस हिसाब से परिवहन और भंडारण पर भी पांच साल में करोड़ों रुपए खर्च हो चुके है।







खराब गेहूं की बनाई पांच प्रकार की क्वालिटी





राज्य सरकार ने खराब हो चुके इस गेहूं को पांच तरह की क्वालिटी बनाई है। फीड एक और दो का उपयोग पशु आहार के लिए किया जा सकेगा। तीसरी फीड का उपयोग पोल्ट्री आहार के लिए किया जा सकेगा। वहीं एक क्वालिटी इंडिस्ट्रियल यूज और मैन्योर के लिए उपयोग की जा सकेगी। वहीं पांचवी क्वालिटी केवल मैन्योर के उपयोग में की जा सकेगी।







गेहूं खराब हुआ या किया !





किसान संगठनों से गेहूं खराब होने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है। किसान जागृति संगठन प्रमुख इरफान जाफरी ने कहा कि यह पूरा रैकेट काम कर रहा है। पहले गेहूं खराब करो फिर उसे औने पौने दाम पर कॉर्पोरेट या लिकर किंग को बेचो। इसलिए सवाल खड़ा होता है कि गेहूं खराब हुआ या किया गया। 6 साल से गेहूं खराब हो रहा है, सरकार क्या कर रही है, जिम्मेदारों पर कार्रवाई क्यों नहीं की जाती। पूरा खेल जनता के पैसों को लूटने का है।



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