ग्वालियर में भगवान कार्तिकेय का 400 साल पुराना मंदिर खुला, साल में सिर्फ एक दिन होते हैं दर्शन

author-image
Shivasheesh Tiwari
एडिट
New Update
ग्वालियर में भगवान कार्तिकेय का 400 साल पुराना मंदिर खुला, साल में सिर्फ एक दिन होते हैं दर्शन

देव श्रीमाली, GWALIOR. प्रथम आराध्य भगवान गणेश के भाई, भगवान शिव और पार्वती के पुत्र कार्तिकेय स्वामी का देश का सबसे प्राचीन और संभवतः  इकलौता मंदिर ग्वालियर में स्थित है। इस मंदिर के पट साल में केवल एक बार मात्र चौबीस घंटे के लिए कार्तिक पूर्णिमा के दिन खुलते हैं। ऐसा देश के किसी भी मंदिर मे नहीं होता है, इसलिए इस मंदिर को देखने के लिए आधी रात के बाद से ही भीड़ लगना शुरू हो जाती है। पहली बार है जब इसके पट पूर्णिमा से एक दिन पहले ही खोले गए क्योंकि पूर्णिमा को चंद्र ग्रहण के चलते मंदिरों के पट बंद रहेंगे।



चार सौ वर्ष पुराना है यह मंदिर



ग्वालियर के जीवाजी गंज स्थित भगवान कार्तिकेय का यह मंदिर देश में सबसे प्राचीन और इकलौता माना जाता है। इस मंदिर के लगभग अस्सी वर्षीय पुजारी पंडित जमुना प्रसाद शर्मा का कहना है कि यह मंदिर करीब चार सौ वर्ष से भी ज्यादा प्राचीन है। जब ग्वालियर में सिंधिया राजाओं का शासन हुआ तो उन्होंने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। तब से लागातार यहां पूजा अर्चना चल रही है।



वर्ष में सिर्फ एक बार होते हैं दर्शन



भगवान कार्तिकेय मंदिर के पट साल में सिर्फ एक बार कार्तिक पूर्णिमा को खुलते हैं। खास बात ये भी है कि सामान्यतया सभी मंदिरों के पट अलसुबह खुलते हैं और पूजा-अर्चना के साथ दर्शन शुरू होते हैं। जबकि भगवान कार्तिकेय के मंदिर के पट कार्तिक पूर्णिमा को मध्यरात्रि ठीक बारह बजे खुलते हैं और इसी के साथ दर्शन शुरू हो जाते हैं।



एक दिन पहले खुले पट



इस बार पूर्णिमा को चन्द्र ग्रहण है, जिसके चलते मंगलवार को सुबह ही सभी मंदिरों के पट बंद हो जाएंगे। इसलिए पंचांग अनुसार इस बार एक दिन पहले कार्तिक पूर्णिमा संबंधी पूजा की जाएगी। इसी के चलते कार्तिकेय भगवान के मंदिर के पट भी एक दिन पहले यानी 6 नवंबर की मध्यरात्रि को बारह बजे ही खोले गए और तभी से दर्शनों का सिलसिला जारी है।



देश के कोने -कोने से पहुंचते हैं श्रद्धालु



इस मंदिर के दर्शन करने न केवल एमपी, यूपी और राजस्थान जैसे पड़ौसी राज्यों से बल्कि महाराष्ट्र, गुजरात, दिल्ली के साथ देश के दूरस्थ राज्यों से भी भक्त ग्वालियर पहुंचते हैं। भगवान कार्तिकेय की पूजा अर्चना और दर्शन का सुख प्राप्त करते हैं। श्रद्धालुओं का कहना है कि यहां दर्शन करने से भक्तों की हर मनोकामना पूरी होती है। इस मंदिर में प्रसाद बांटने वाले राजेन्द्र शिवहरे का कहना है कि वे बीस वर्षों से यहां प्रसाद का वितरण करते हैं। बीस साल पहले जब उनकी मनोकामना पूरी हुई तो उन्होंने पांच किलो प्रसाद वितरित किया था लेकिन मेरे परिवार में खुशियां आती गईं और मात्रा बढ़ती गई । इस वर्ष वे एक कुंटल 11 किलो का प्रसाद वितरित कर रहे हैं।



साल में एक बार ही क्यों होते हैं भगवान कार्तिकेय के दर्शन



भगवान कार्तिकेय के दर्शन साल में सिर्फ एक दिन ही क्यों होते हैं? इनके दर्शन बाकी दिनों में क्यों नहीं होते हैं? यह सवाल सभी के दिमाग में आना लाजिमी है। इसकी कथा मंदिर के पुजारी जमुना प्रसाद शर्मा ने शास्त्रों के हवाले से बताई। उनका कहना है कि महादेव शिव और माता पार्वती ने जब अपने पुत्र गणेश और कार्तिकेय के विवाह की सोची तो दोनों के सामने शर्त रखी कि जो ब्रह्मांड की परिक्रमा करके सबसे पहले लौटेगा उसका विवाह सबसे पहले करेंगे। इसके बाद कार्तिकेय अपने वाहन गरुण पर सवार होकर ब्रह्मांड परिक्रमा करने निकल गए। गणेश ने बुद्धिमत्ता का प्रदर्शन करते हुए अपने माता-पिता की परिक्रमा की और सामने आकर बैठ गए। उनका विवाह हो गया। यह बात नारदमुनि के जरिए कार्तिकेय को पता चली तो वे क्रोधित हो गए। यह पता चलने पर शिव पार्वती उन्हें मनाने पहुंचे तो उन्होंने श्राप दे दिया कि जो भी उनके दर्शन करेगा, वह सात जन्मों तक नरक भोगेगा। लेकिन माता -पिता के बहुत मनाने पर वे अपने श्राप को थोड़ा परिवर्तन करने को राजी हुए। उन्होंने वरदान दिया कि उनके जन्मदिन कार्तिक पूर्णिमा पर जो भी भक्त उनके दर्शन करेगा, उसकी हर मनोकामना पूर्ण होगी। तभी से उनके वर्ष में एक बार दर्शन की प्रथा शुरू हुई।


कार्तिक पूर्णिमा उत्सव ग्वालियर का प्राचीन मंदिर भगवान कार्तिकेय का मंदिर Kartik Purnima festival MP News Ancient temple of Gwalior Temple of Lord Kartikeya एमपी न्यूज